Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ अशुचि टुगंध को । व० ॥ ४ ॥ विविध उपदेश देव जन तास्या, हवारी जाउ विश्वानन्द की ॥ ब० ॥५॥ परम दयाल गोवाल कृपानिधि, तुज जम माला आनंद की ॥ ब० ॥ ६ ॥ सम्बत् उगणीसै आसू वदी एकमा शान्ति लना मुख कन्द कौ ॥ ब० ॥ ७॥ श्री कुन्थु जिन स्तवन । बाल्हो तो भावना रो भूखो एदेशी) , . . कंथ जिनेचर करुणा सागर, त्रिभुवन शिर टीको ?' प्रभु को समरस कर नौको रे ॥१॥ अमृत रूम अनुपम कंथु निन, दर्शन जग पीयको रे ॥ प्र० ॥ २॥ वाणी मुधा सम उपशम रसन्नी, बालहो जग बौकोरे ॥ प्र० ॥ ३ ॥ अनुकम्पा दोय श्री जिन दाखौ, धर्म यो समदृष्टि को रे ॥ प्र० ॥ ४ ॥ असंयनी रो जीवगा बांछे, ते सावय तह तौको रे ॥ प्र० ॥ ५॥ निरवद्य करुमा करौ जन ताया, धर्म ए जिनजी को रे ॥ प्र० ॥६॥ सम्वत् उगणीसै आसू वदी एकम, शरणो साहेवजी की रे ॥ प्र० ॥ श्री पर जिन स्तवन । (देवो सहियां धनरोप नेम कुमार पदेशो) अर जिन कर्म अरी नां हंता, जगत उडारण । जिहाज । मोमे प्याग लागे के जी ।। अर जिनराज ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89