Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ ।-प्र० ॥ ४ ॥ स्त्री स्नेह पाशा दुर्दन्ता, कह्या नरक निगोद तणा पन्था। इह भव परभव दुःखदागी ॥प्र० ॥ ५ ॥ गज कुम्भ दलै मृगगज हणी, पिण दोहिलौ निज आत्मा दमणौ । इम सुण बहु जीव चेत्या जाणी ॥ प्र० ॥ ६ ॥ भाद्रवौ पूनम उगणोसो, कर जोड़ नमं वासुपूज्य दूसो। प्रभु गांतां रोम राय हुलसायो ।प्र०॥७॥ श्रो बिमल जिन स्तवन । काय न माँगा काय न मांगा हो राणाजी मांगा पूर्ण प्रीत बीज .. (काय न मांगा एदेशी ) शरगणे तिहार हो विमल प्रभु, सेवक नौ अरदाश । आयो शरण तिहार हो, विमल करण प्रभु विमलनाथजी॥ विमल आप मल रहीत. विमल ध्यान धरतां हुवे निर्मल। तन मन लागी प्रोत, साहेव शरगो तिहार हो ॥ १॥ विमल ध्यान प्रभु श्राप ध्याया, तिण सू हुआ विमल नगदीश । विमल ध्यान वलि जे कोई ध्यासी, होसौ विमल सरीस ॥ सा० ॥ २ ॥ विमल - गृहवासे द्रव्य जिनेन्द्र था, दीक्षा लियां भाव साध । केवल उपना भावे जिनेश्वर,भाव विमल आगध सा० ॥३॥ नाम स्थापना द्रव्य विमल थी. कारन न सर कोय। भाव विमन्न ची कारज मुधर, भाव जप्यां शिव होय ॥.स.

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