Book Title: Jain Bhajan Mala
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 12
________________ ( १० ) प्रभु नरेन्द्र पद पामे सही, चरण सहित ध्यान तन मन हो । प्रभु अहमिन्द्र पद पावै वलि, कियां निश्चल थारी भजन हो ॥ प्रभु० ॥ ५॥ हो प्रभु शरण आयो तुज साहिवा, तुम ध्यान धरूं दिन रयन हो। तुज मिलवा मुझ मन उमह्यो, तुम शरणा स्यूँ सुख चैन हो ॥प्रभु० ॥ ६ ॥ संवत उगगौसे ने भाद्रवे, सुदि तेरस ने बुधवार हो । प्रभु चन्द्र जिनेश्वर समरिया, हुमो आनन्द हर्ष अपार हो ॥ प्रभु० ॥ ७ ॥ श्री सुविधि जिन स्तवन । (सोही तेरा पंथ पावं हो एदेशी) __सुविधि करि भजिये सदा, सुविधि जिमेश्वर स्वामी हो। पुष्प दन्त नाम दूसरो, प्रभु अन्तरजामी हो । सुविधि भजिये सिरनामौ हो ॥ १॥ ए आंकड़ी ॥ श्वेत वरण प्रभु शोभता, वारू वाण अमामी हो। उपशम रस गुण अागली, मेटम भव भव खामी हो ॥ सु० ॥२॥ समवसरण विच फावता, त्रिभुवन तिलक तमामो हो। इन्द्र धको ओपै घणां, शिवदायक खामी हो ॥ मु० ॥ ३ ॥ सुरेन्द्र नरेन्द्र चन्द्र ते, इन्द्रागो अभिरामी हो। निरग्ड निरख धापै नहीं, एहयो रुप मामी हो ॥सु० १४ ॥ मधु मकरन्द तगो परें, सुर ना करत सलामी

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