Book Title: Jain Bhajan Mala Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 8
________________ ए मांकड़ी ॥ दुःकर करणी हो कौधौ पाप दयाल, ___ ध्यान सुधा रस सम दम मन गलौ, संग त्याग्यो हो जाणो माया जाल ॥ १० ॥२॥ बौर रसे करी हो कौधौ तपस्या विशाल, अनित्य अशरण भावन अशुभ निरदली। जग झूठो हो जाण्यो भाप कृपाल ॥ अ० ॥ ३ ॥ आत्म मन्त्री हो सुखदाता सम परिणाम, एहिज अमित्र अशुभ भावे कलकली। एहवी भावन हो भाया जिन गुण धाम ॥ अ० ॥ ४ ॥ लोन संवेगे हो ध्याया शुक्ल ध्यान, क्षायक श्रेणी चढी हुपा केवलौ। प्रभु पाम्या हो निरावरण सुज्ञान ॥ प. ॥ ५॥ उपशम रस भरी हो वागरौ प्रभु बाग, तन मन प्रेम पाया जन सांभली। तुम वच धारी हो पाम्या परम कल्याण ॥ अ० ॥ ६ ॥ जिन पभिनन्दन हो गाया तन मन प्यार, सम्बत् उगणीसै ने भादवे अघदली । मुदि इग्यारस हो हुओ हर्ष अपार ॥ अ० ॥ ७ ॥ श्री सुमति जिन स्तवन । (मुरख जीवड़ा रे गाफल मत रहे एदेशो) मुमति जिनेश्वर साहेव शोभता, सुमति करण संसार। सुमति जप्यां थी सुमति बधै घगो, मुमति मुमति दातार ॥ मु० ॥१॥ ए आंकड़ी ॥ ध्यान सुधारस निर्मल ध्याय ने, माम्या केवल नाण। वामPage Navigation
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