Book Title: Jain Bhajan Mala Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ T " ) सकल कलेश हो ॥' हो प्रभु तुम हौं दायक शिव मंधना ॥ १ ॥ अहो प्रभु उपशम रस भरी चापरी, वाणी सरस विशाल हो । श्रहो प्रभु मुगत निसरणी महा मनोहरु, सुख्खां मिटे भ्रमजाल हो ॥ २ ॥ अहो प्रभु उभय बन्धण आप आखिया, राग द्वेष विकराल हो । अहो प्रभु हेतु ए नरक निगोदना, राच्या सूरख वाल हो ॥ ३ ॥ अहो प्रभु रमणी राक्षसणी समौ कही, विष बेलि मोह जाल हो । अहो प्रभु काम मे भोग़ किम्पाक सा, दाख्या दीन दयाल हो ॥ ४ ॥ अहो प्रभु विविध उपदेश देई करो, तें ताखा नर नार हो । अहो प्रभु भवसिन्धु पोत तूंही सही, तूंही जगत् आधार' हो ॥ ५ ॥ अहो प्रभु शरण आयो तुज साहिबा, " वस रह्या होया मांहि हो । अहो प्रभु श्रागम वयण अङ्गो करौ, रह्यो ध्यानः तुज ध्याय हो ॥ ६ ॥ अहो प्रभु सम्वत् उगणीसै ने भाद्रवे, दशमी 'आदित्यवार हो । ग्रहो प्रभु आम तगा गुण गाविया वर्त्या जय जयकार हो ॥ ७ ॥ ... D श्री संभव जिन स्तवन । (हं बलिहारी हो जादव पदेशी ) संभव माहिव समरीय, धायो हो निग निरमल ध्यान के ॥ इक पुद्गल दृष्टि घामने ॥ कोधो हे मनPage Navigation
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