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प्रागर्य चरितावली और नगर का सकट दूर किया। भद्रवाहु कृत नियुक्तिया भी मिलती है। इतिहासजो की राय मे निमित्तनानी भद्रवाहु और नियुक्तिकार भद्रवाहु भिन्न-भिन्न माने गये है ।।२२।।
॥ लावणी ॥ द्वादश वत्सर दुष्काली जब आई, साधकगरण को भिक्षा की कठिनाई । फिर सुकाल में श्रमरण सभा भरवाई, श्रु तरक्षा को लगन रही मन छाई।
करी वाचना अंग इग्यारह धारी लेकर०॥२३॥ अर्थ:-जिस समय मगध मे वारह वर्ष लंबी दुप्काली पडी, उस भीपण दुप्काली मे त्यागी श्रमण-श्रमणियो को भिक्षा दुर्लभ हो गई । भद्रवाहु उस समय नेपाल गये हुए थे। पीछे प्रमुख संतो के नेतृत्व मे सुकाल के समय पटना में शास्त्रवाचना हेतु श्रमणो की एक परिपद भरी गई। सव के मन मे श्रुत-रक्षा को प्रवल भावना होने से वाचना मे ग्यारह अंगो के पाठ स्थिर किये गये। जिनको जो अभ्यास था उसे मिलाकर पाठो का संकलन किया गया। यही प्रथम वाचना, 'पाटलीपुत्र वाचना" कही जाती है ॥२३॥
॥ लावणी ॥ दृष्टिवाद के ज्ञाता नहि कोई उनमें, भद्रवाह नैपाल गये साधन में । पागम रक्षा हित संदेश पठाया, युगल साधु जा कर सदेश सुनाया।
महाप्राण की मैने की तैयारी ॥ लेकर० ॥२४॥ अर्थ:-उपस्थित श्रमणो मे कोई दृष्टिवाद का ज्ञाता नही था, क्योकि भद्रवाहु महाप्राण ध्यान के साधन हेतु नेपाल गये हुए थे अतः दृष्टिवाद श्रुत का सरक्षण कैसे किया जाय ? सघ ने भद्रवाहु को सदेश भेजकर वुलवाने का निर्णय किया। प्रागम-रक्षा के लिये सघ ने दो मुनियो के साथ उनके पास सदेश भेजा । भद्रबाहु ने मुनियो द्वारा सघ का सदेश