Book Title: Jain Acharya Charitavali
Author(s): Hastimal Maharaj, Gajsingh Rathod
Publisher: Jain Itihas Samiti Jaipur

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Page 148
________________ आचार्य चरितावली १४१ (७) पूज्य श्री महासिहजी महाराज (जो सवत् १८६१ में सथारा कर के स्वर्ग सिधारे) (८) पूज्य श्री कुशलचन्द्रजी महाराज (६) छजमलजी छजमलजी , (१०) , रामलालजो , (११) , अमरसिहजी , (१२) , रामबक्स जी , (१३) मोतीरामजी , (१४) , सोहनलालजी , (१५) , काशीरामजी , (१६) ', आत्मारामजी महाराज जो वर्तमान श्रवणसंघ के आचार्य थे। श्री हरिदासजी लाहोरी, लोकागच्छ के यति थे और बड़े आत्मार्थी थे। किसी समय ये संयोगवश गुजरात आए । वहां पर उनका और सोमजी ऋषि का समागम हुमा । परस्पर धर्म-चर्चा से सतोष हो जाने पर हरिदास जी ने सोमजी के पास शुद्ध जैन धर्म दीक्षा धारण कर ली। कुछ समय गुरु सेवा मे ज्ञान सम्पादन करके फिर ये पंजाव चले गये। वहां उनके शिष्यो की संख्या मे बडी वृद्धि हुई। दूसरे समुदाय की प्राचार्य परम्परा Mixtury if १. पूज्य श्री लवजी ऋषि २. , सोमजी ,, ३. , कानजी , ४. ,, ताराचन्द जी । काला ऋपि जी ६ " बक्सु धन्ना , (पृथ्वी ऋषि जी) तिलोक ,

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