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आचार्य चरितावनी
वर्तमान मे मधुरव्याख्यानी श्री सोभागमलजी महाराज आदि विद्यमान है।
६ छठा समुदाय यह समुदाय पूज्य श्री धर्मदासजी महाराज के नाम से ही प्रसिद्ध है । इसमें प्रवर्तक ताराचन्द्रजी महाराज आदि विद्यमान है। इसका एक विभाग पूज्य श्री रामरतनजी महागज की समुदाय और दूसरी श्री ज्ञानचन्दजी महाराज की समुदाय के नाम से, भी प्रचलित है । जिनमे श्री मुनि मोतीलालजी महाराज धनचन्द्र जी महाराज तया श्री रतनचन्द्रजी व सिरेमलजी महाराज, श्री पूरणमलजी महाराज व श्री इन्द्रमलजी महाराज हुए। प० बहुश्रुत समर्थमलजी महाराज आदि अाज विद्यमान है ।
गुजरात के इतिहास और पट्टावली मे ऐसा उल्लेख मिलता है कि धर्मदासजी महाराज के समय में “वावीस" समुदाय नामक धार्मिक सस्था का आविर्भाव हुमा । श्री धर्मदासजी महाराज और उनके शिष्य २२ विद्वान् मुनिगे ने सत्य सनातन जैन धर्म का रक्षण किया जिससे लोग उसे वावीस समुदाय के नाम से सम्बोधित करने लगे।
श्री जीवराजजी महाराज, लवजी ऋषि और धर्मसिहजी आदि की समुदाय इन २२ से पृथक थी किन्तु उनकी श्रद्धा व प्ररूपणा समान होने से वे भी अाज वाईस समुदाय के नाम से ही पहिचानी जाने लगी। मौलिक २२ मे से केवल ५ प्राचार्यों की ही समुदाये आज विद्यमान है। उनकी शाखाप्रो और उपशाखाप्रो मे से मात्र १२ समुदाये होती है। वैसे अन्य ४ महापुरुपो की ११ समुदायो को मिलाने से २३ होती है। फिर पहले और दूमरे वर्ग की ६ उप समुदायो को मिला दिया जाय तो २८ होती
सादडी ( मारवाड ) सम्मेलन के बाद राजस्थान की बहुत सी सम्प्रदाय श्रमणसव मे विलीन हो गई । सौराष्ट्र श्रमणसंघ तव भी अलग रहा और मारवाड़ मे पूज्य ज्ञानचन्दजी महाराज की परम्परा के सत भी