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आचार्य चरितावली
___ सं० १८४४ तक समूचे काठियावाड में पूज्य धर्मदास जी महाराज का एक हो समुदाय था। कहा जाता है कि उसमें तीन सौ मुनि थे लेकिन पूज्य अजरामरजी महाराज के समय मे ३२ वोल की मर्यादा बान्धने पर कुछ अन्तरंग कारणो से वह समुदाय छः भागो मे विभक्त हो गया, जो
१. लीमड़ी २ गोडल ३. ध्रागध्रा ४. वरवाला ५. चूड़ा और ६. सायला की गादी के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
. १ लीमड़ी समुदाय पूज्य देवजी स्वामी के समय में स० १६१५ में लीमड़ी समुदाय के दो भाग हो गये । दूसरे विभाग की आचार्य परम्परा इस प्रकार है:१. पूज्य श्री अजरामर जी स्वामी
देवराजजी ,
अविचलदासजी स्वामी ४. , हिमचन्द जी - ,,
गोपाल जी , (आप बडे प्रतापी हुए) ६. , मोहनलाल जी .. __, मणिलाल जी अभी विद्यमान है।
२. गोंडल समुदाय मूलचन्द जी महाराज के दूसरे शिष्य श्री पचांणजी महाराज के शिप्य रतन जी स्वामी हुए। उनके शिष्य डूगरसी स्वामी संवत् १६४५ मे लीमडी से गोंडल पधारे तव से गोडल समुदाय की स्थापना हुई। डूगरसी की मौजूदगी मे ही गोंडल समुदाय के दो भाग हो गये जिनमे से दूसरा भाग संघाणी संघाड़ा (समदाय) के नाम से प्रसिद्ध हो गया।