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आचार्य चरितावली
अर्थः-शय्यांतरी के पास बालक रोता नही बल्कि वहुत प्रसन्न रहता है, यह सुनकर सुनन्दा पुन स्नेहाकुल हो गई और वालक को पुनः प्रिाप्त करने के लिये प्रयत्न करने लगी। वह पुत्र प्राप्ति के लिए राज सभा मे पहुँची । तो राजा ने उसकी पुकार सुनकर शय्यातरी को बुलाया। दोनों ही राजा के पास पहुंच कर अपने-अपने अधिकार को औचित्यता प्रमाणित करने लगी ||६||
दोहा।। नप ने उनकी बात श्रवण कर, न्याय करण मन धारा है। - उभय पक्ष के जोर शोर में, सत्य बाल पर डारा है ॥१७॥
अर्थः-दोनों की बात सुनकर राजा ने न्याय करने की सोची, पर दोनो ओर की युक्तियां सवल थी। उन पर से निर्णय करना संभव नहीं था । अतः राजा ने यही उचित समझा कि वालक पर ही न्याय का भार डाला जाय, जहाँ वह रहना चाहे उसी के पास उसे रहने दिया जाय ।।१७।।
... दोहा।। , ., सुनंदा ने, दिये खिलौने, वज न उन पै ललचाया। धर्म उपकरण देख संघ के, हर्षित मन लेने धाया ॥१८॥
अर्थः-नियत समय पर न्याय लेने दोनो पक्ष जव राज सभा मे उपस्थित हुए, तव सुनन्दा ने पुत्र को आकर्षित करने के लिये खिलौने और मिठाई आदि उसके सामने रखे, पर बालक उधर आकर्पित नही हुआ। पर जव संघ की ओर से शय्यातरी ने छोटा रजोहरण और पात्र प्रस्तुत किये तो तुरत ही वालक ने उन्हे लेने को हाथ बढाया । इस पर से राजा ने घोपित कर दिया कि क्योकि वालक पात्र आदि लेना चाहता है। अत. शय्यातरी ही इसको रख सकती है ॥१८॥
॥ लावणी ॥ . धनगिरि के प्रिय शिष्य वज़ हुए नामी, . ,, सार्थ बना कर देवः परीक्षा धामी। ...
सूक्ष्म मेंढको देख कुटी , में , ठहरे, . ,