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प्राचार्य चरितावली
कुछ प्राचार्य सहसमल से दिगवर मत की उत्पत्ति वतलाते हैं। श्वेताम्बर परंपरा के विशेषावश्यक भाप्य आदि मे इसकी विशेप जानकारी उपलब्ध हैं ॥१३०॥
लावरणी।। समझाया पर नहीं ध्यान में पाया, सूक्ष्म दोष का दिन दिन विष फैलाया । समझ दोष का श्रादि रूप समालो, नहि तो होगा बढ़कर विषधर कालो ॥
हमको अब हित शिक्षा लेना धारी लेकर०॥१३१॥ अर्थः-शिवभूति को समझाने पर भी बात उसके ध्यान मे नही आयी और छोटी सी बात से संघ मे मतभेद का बडा जहर फैल गया।
यदि समझ भेद के प्रारम्भ काल मे ही भ्रम मिटा दिया जाय तो आसानी से काम हल हो जाता है अन्यथा छोटा सा भ्रम भी कालान्तर में वड़ाकाला विपधर हो जाता है । भूत की घटना से हमको वर्तमान मे शिक्षा लेकर चलना चाहिये ।।१३१।।
लावरणो॥ मुक्तिलाभ. अम्बर से रुकता नाही, माहावरण ही सिद्धि रोकता' भाई । कर्माम्बर से दूर पातमा होवे,
सत्य समझ लो तव ही बंधन खोवे ।। ... शुक्ल ध्यान ही श्वेताम्बर मुखकारी ॥१३२।।
अर्थः-वास्तव मे मुक्ति का अवरोध वस्त्र-अम्बर से नही होता । वास्तव मे तो कपाय और मोह का प्रावरण ही मुक्ति को रोकने वाला है।
मोक्ष प्राप्ति के लिये पात्मा से मोह कर्म का अम्वर दूर करना चाहिये, . उसको यदि सर्वथा दूर कर दिया तो निश्चिय समझो कि आत्मा को कर्म वधनो से मुक्ति अवश्यंभावी है।