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प्राचार्य चरितावली
सप्रदायो के एकीकरण का शुभ प्रयास चालू हुआ । व्यावर मे पाच संप्रदायो का एक संघ कायम हुया । जिसका नाम वीर वर्धमान श्रमण सघ रक्खा गया।
लाबपी। नव ऊपर दो सहस सादड़ी नगरे विविध देश से पाये मुनि कई सखरे । सघ ऐक्यहित सबने चर्चा कोनी, बहुमत ने झट ऐक्य करण की चीनी ।
संयुक्त सघ की हमने बात विचारी ॥लेकर०॥१७६।। अर्थः-कुछ काल के बाद सवत् २००६ मे सादड़ी (मारवाड) मे फिर सम्मेलन करने का निश्चय किया गया। देश-देश के वडे-बड़े मुनि इकट्ठे हुए । मालवा, मेवाड, मारवाड और पंजाव की कुल २१ संप्रदायो के सत और इस बार कुछ साध्विया भी पधारी । संघ में ऐक्य निर्माण की सवने चर्चा की। समाज मे संगठन कायम किया जाय इसमे सव एकमत थे। पर कुछ संप्रदायो को रखकर सगठन वनाने के पक्ष मे थे तो कई विचारक संप्रदायो को विलीन कर एक ही सघ वनाया जाय, इस विचार के थे। वयोवृद्ध श्री पन्नालालजी महाराज आदि अनुभवियो का विचार था कि अभी संयुक्त सघ वना लिया जाय और इसका साल छः महीने के प्रयोग से परीक्षण एव स्थिति का अध्ययन कर फिर पूर्ण ऐक्य स्थापित किया जाय । पर वहुमत की यह इच्छा थी कि जो कुछ करना है अभी कर लिया जाय।
लावरणी।। गरण कायम रख भेद विचार घटाना, संघटना कर स्थायी कदम बढ़ाना । नीति भेद ही मूल भेद का जानो, नीति रीति हो एक प्रीति दृढ़ मानो । रीति नीति का एक बनो सहचारी लेकर०॥१८॥