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ग्राचार्य चरितावली
तपस्या की और सं० १७५६ मे ग्रहमदावाद शहर मे आचार्य पद पर विराजमान हुए । अन्तिम चातुर्मास धोराजी में कर के सं० १७६३ की आश्विन कृष्णा ११ के दिन आप स्वर्ग सिधारे ।
(१६) श्री भागचन्द्रजी ऋषि : ग्राप कच्छ भुज के निवासी और श्री सुखमल्लजी के भानजे थे । सं० १७६० की मार्गशीर्ष शुक्ला २ को आप अपनी भोजाई तेजवाई के साथ दीक्षित हुए । सं० १७६४ मे भुज में आपको प्राचार्य पदवी मिली और संवत् १८०५ मे ग्राप स्वर्गवासी हो गये ।
(१७) श्री बालचन्द्रजी : ग्राप फलोदी (मारवाड) के छाजेड गोत्रीय ओसवाल थे । आप अपने दो भाइयो के साथ दीक्षित हुए और सवत् १८० ५मे साँचोर मे ग्रापने पूज्य पदवी प्राप्त की । संवत् १८२६ में आप स्वर्गवासी हो गये ।
(१८) श्री माणकचन्द्रजी : श्राप पाली ( मारवाड) के पास दरियापुर ग्राम के निवासी थे । ग्रापका गोत्र कटारिया, पिता का नाम रामचन्द्र, गौर माता का नाम जीवावाई था । स० १८१५ मे मॉडवी मे आप बालचन्दजी ऋषि के पास दीक्षित हुए । स० १८२६ मे जामनगर मे ग्रापको पूज्य पदवी प्राप्त हुई और सं० १८५४ मे आपका स्वर्गवास हो गया ।
(१९) श्री मूलचन्दजी ऋषि आप जालोर (मारवाड के पास मोरवी गाव के निवासी सियाल गोत्रीय ग्रोसवाल थे | आपके पिता का नाम दीपचन्दजी और माता का नाम अजवा वाई था । सवत् १८४६, ज्येष्ठ शुक्ला १० को पूज्य माणकचन्दजी के पास आपने दीक्षा ग्रहण की आचार्य पद प्राप्त
र सवत् १८५४ फाल्गुन कृष्णा २ को नवानगर में किया । स० १८७६ मे, जैसलमेर नगर मे आपका स्वर्गवास हुआ ।
(२०) जगतचन्दजी महाराज । (२१) रतनचन्दजी महाराज । (२२) श्री नृपचन्दजी महाराज ।