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प्राचार्य चरितावली
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रात को कोई भी नहीं रह पाता था, लेकिन धर्मसिहजी ने अपनी दृढ भावना और आत्मवल से पीर को भी शात कर दिया । उन्होने कुशलतापूर्वक रात दरिया पीर की दरगाह मे विताई।
__ प्रातः काल कुछ दिन चढने के बाद वे कालूपुर के उपाश्रय मे गुरुजी के पास आये और विनय से सव वात कह सुनाई।
___ गुरुजी भी इनकी दृढता और निर्भीकता से प्रसन्न हुए और बोले"भाई! मैं तो वृद्ध हो जाने के कारण कष्ट सहने में लाचार हूँ तथा मुझसे यह गच्छ और यह वैभव नही छूटता । परन्तु तुम्हारी अन्त करण से यही इच्छा है तो जाओ और निर्भय होकर शासन की सेवा करो। तुम्हारा संयम निभ सकेगा।"
गुरु की आज्ञा से संतुष्ट होकर धर्मसिंह जी दरियापुर दरवाजे के बाहर आये और अन्य यात्मार्थी यतियो के साथ स० १६६२ में ईशान कोण के वाग मे शुद्ध नयम स्वीकार किया।
आप ऐसे विलक्षण बुद्धि वाले थे कि एक ही दिन मे आपने और आपके शिष्य मुनि सुन्दरजो ने मिलकर १००० श्लोको के ग्रन्थ को कंठाग्र कर लिया। शारीरिक कारण से भ्रमण कम होने पर भी आपने शासन की अपूर्व सेवा की।
__ पार्श्वचन्द्राचार्य की तरह आपने भी शास्त्रो पर बाल वोघ अर्थ के टव्वे किये । वाडीलाल मोतीलाल शाह ने आपके द्वारा २७ सूत्रो पर टव्वे किये जाने का उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त
१. भगवती, २ पन्नवरणा ३. ठाणाग, ४. रायप्पसेणिय, ५, जीवाभिगम, ६. जम्बूद्वीपपन्नत्ति,
८. सूरपन्नत्ति के यन्त्र, ६. व्यवहार की हुँडी, १०. सूत्र समाधि की हुंडी, ११. सामायिक चर्चा, १२. द्रौपदी की चर्चा, १३. साधु समाचारी,