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प्राचार्य चरितावली
॥ लावणी ॥ पूज्य जवाहर, मन्नालाल गणधारी, ताराचन्द मुनि, धनसुखजी प्रियकारी। खीचन के मुनि पागम रस के रसिया, पन्ना, तारा, तूर्य छगन मरुमुखिया ।
सुज्ञ मुनि से संघ हस्ति सुखकारी ॥ लेकर० ॥१७५।। अर्थ -मालव संप्रदाय के पूज्य जवाहलालजी महाराज, पूज्य मन्ना लालजी महाराज, जैन दिवाकर चौथमलजी महाराज आदि भी थे। धर्मदासजी महाराज की सम्प्रदाय के स्थविर ताराचन्दजी महाराज, किशन मुनि, सौभाग्य मुनि, युवक हृदय धनचंद्र जी और खीचन के श्री इन्द्रमलजी महाराज, समर्थमलजी महाराज आदि भी पधारे थे। राजस्थान के मुनि सवके स्वागत मे तन मन से तैयार थे । पधारे हुए प्रमुख मुनियो मे स्थविर पन्नालालजी महाराज, स्थविर ताराचन्दजी महाराज, श्री चौथमलजी महाराज, श्री छगनलालजी महाराज, स्थविर मुनि सुजानमलजी और श्री भोजराजजी को संग लिये पूज्य हस्तिमलजी महाराज भी थे ।।१७।।
लावरणी॥ मरुधर मत्री, नारायण अरु हेमा, कल्प द्रम सम लगे श्रमरराजन खेमा। मेद पाट से जोधा मोती आये, शीतल वंश के छोगा मुनि लहराये।
सुनि मंडल की जाऊ नित बलिहारी ॥लेकर०॥१७६।। अर्थ.-मरुधर मंत्री मिश्रीलालजी जो स्वागत समिति मे मख्य थे, श्री दयालजी महाराज, मुनि नारायण और मुनि हेमराजजी भी थे। मरुभूमि मे मुनिराजो के डेरे कल्पवृक्ष की तरह शोभायमान थे । मेवाड से पूज्य एकलिग दास जी महाराज के पूज्य जोधराजजी, मुनि मोतीलालजी आदि और शीतलजी के श्री छोगालालजी आदि पधारे हुए थे। उस समय अजमेर मे देव सभा मी शोभा नजर आ रही थी ।।१७६।।