________________
१०२
श्राचार्य चरितावली
||लावणी ॥
रत्नचन्द्र, मणिलाल - नाद मुनि श्रावे, सुख पावे । के रसिया,
नागचंद्र अरु श्याम देख सरना चित्त गुणवान् ज्ञान सत बाल प्रवचन लेखन में कसिया । परिषद् ने सद्भाव बीज दिया डारी ॥ लेकर० ॥
अर्थः- गुर्जर भूमि से शतावधानी श्री रतनचन्द्रजी महाराज, शास्त्रज्ञ मगिलालजी महाराज, कवि नानचन्दजी, पूज्य नागचन्दजी महाराज, श्यामजी महाराज यादि के दर्शन कर वडा हर्प होता था । सभी मुनि सरल चित्त, गुणवान् और ज्ञान के रसिक थे । संत वाल प्रवचन लेखन मे रस लेते । इस प्रकार मुनि परिषद् ने समाज मे सद्भाव के वीज गहरे डाल दिये ।
॥ लावणी ॥
सदियो पीछे ऐसा अवसर आया, श्रमणवर्ग में ऐक्यभाव मन लाया ।
महासभा ने पूरा जोर लगाया, चातुर्मास व्याख्यान को एक
कराया ।
गरण मेलन का शुभ प्रयास या
भारी || लेकर ।। १७८ ।।
श्रर्थः वल्लभीपुर की मुनि परिषद् के बाद इतने बड़े समूह के रूप मे मंगलमूर्ति मुनियो के एक स्थान पर एकत्र होने का यह पहला अवसर था, जो श्रमरणवर्ग मे ऐक्यभाव लाने के लिए सम्पन्न हुग्रा । महा सभा ने एकता के वीज का समय समय पर सिंचन किया । सम्मेलन के वाद एकलविहारी और स्वच्छंद साधु साध्वियों मे बडा प्रातक फैल गया था, श्रावक समाज मे भी जागृति आई । समयातर मे फिरोदिया जी वकील प्रादि के प्रयत्नो से समाज मे एक चातुर्मास और एक व्याख्यान की व्यवस्था कायम की गई ।