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प्राचार्य चरितावली
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लावरणी॥ प्रथम सयमी हुए भारण ऋषि नामी, अनुशासन अरु दृढ़ सयम के कामी। परिग्रहधारी से श्रावक थे रूठे, सत्य मार्ग सुन भविजन सम्मुख ऊठे।
लोकागच्छ की विमल कोति विस्तारी लेकर०॥१५०॥ अर्थः-लोकाशाह के विचारो से प्रभावित हो कर प्रथम भानाजी दीक्षित हुए। वे धर्मानुशासन और दृढ सयम के वडे प्रेमी थे। लोकाशाह दीक्षा के लिए ऐतिहासजो मे मतभेद है । कुछ उनका दीक्षित होना मानते है तो कुछ दीक्षित नही मानते पर गहरी गवेषणा से प्राप्त सामग्री मे लोकाशाह की दीक्षा का उल्लेख भी प्राप्त होता है ।
संभव है १५०८ मे उनके विचारो मे जो क्रान्ति आई, उसने स० १५२४ या १५२८ में मूर्त रूप धारण किया हो । भाणजी आदि ने स० १५३१ मे मुनिव्रत धारण किया । परिग्रहधारी यतियो से श्रावक-समाज पूर्ण रूप से असंतुष्ट था अतः लोकाशाह का सत्य मार्ग सुनकर सब उस और झुकने लगे और लोका गच्छ की निर्मल कीर्ति देश विदेश में फैलने लगो।।१५०॥
॥ लावणी।।
रूप, जीवादि आठ पाट शुद्ध चाले, महिमा पूजा मे हुए फिर मतवाले । निमित्त का उपयोग करण ऋषि लागे, राज-मान आडम्बर मे मन जागे।
आत्मार्थी सतो ने क्रिया उधारी ॥ लेकर० ॥१५१।। अर्थः - लोकाशाह का लक्ष्य शुद्ध श्रमण परम्परा मे आये हए विकारो को दूर करने का था नूतनमत निर्माण की ओर उनका लक्ष्य नही था। यही कारण है कि गच्छ की सुव्यवस्था, मर्यादा एव उसके परिचालन