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आचार्य चरितावली
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लालचन्द मुनि के परिवार मुहाये, नानक सामीदास, श्रमर प्रगटाये।
हुए संत गुणवन्त ज्ञान तपधारी ॥ लेकर० ॥१५३।। अर्थ-- क्रिया उद्धारक पूज्य जीवराजजी महाराज की गुणगाथा गाकर उपलब्ध सामग्री के अनुसार उनकी शिष्य परम्परा के विस्तार को प्रस्तुत करता हूँ। श्री जीवराजजी के शिष्य पूज्य लालचन्दजी के परिवार मे पूज्य दीपचन्दजी से एक नानकरामजी और दूसरी सामीदासजी की परम्परा चली। फिर पूज्य लाल चन्दजी के शिष्य अमरसिहजी की दूसरी परम्परा प्रकट हुई।
हर एक परम्परा मे अच्छे त्यागी, तपस्वी और प्रतिभा-सम्पन्न सत हुए ॥१५३11
लावरणी॥ धन्ना ऋषि से शीतल कुल प्रगटाया, नाथूराम गण पंचनदीय सुनाया। कुलोपकुल के हुए संत कई नामी, किया बड़ा उपकार नमू सिर नामी।
पट्टावली मे शाखा कई विस्तारी॥ लेकर० ॥१५४।। मर्थ:-पूज्य जीवराजजी के द्वितीय शिप्य धनजी महाराज से पूज्य शीतलदासजी की परम्परा चालू हुई। श्री धन्ना ऋपि के द्वितीय शिष्य श्रीमनजी से पूज्य नाथूरामजी की परम्परा चली, इस परम्परा का हरियाणा एव पंजाव मे अधिक प्रचार रहा। इसके अतिरिक्त कई कुल और उपकुल की परम्पराए चली और कई प्रभावशाली संत हुए जिनके महान् उपकार का स्मरण कर हम नतमस्तक हुए विना नही रह सकते। शाखायो का विशेष विस्तार पट्टावली से समझना चाहिये ।।१५४।।
लावरणी॥ धर्मसिंह मुनि लोका गच्छ से आये, दरियापीर को अपने वश मे लाये ।