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प्राचार्य चरितावली
फिर कर्म का बन्धन कैसे होगा? इस प्रकार विध्य आदि मुनियो ने युक्ति से समझाया ।।११५॥
गौष्ठा माहिल का परिचय
लावरणी॥ एक समय गरिग विचरत दशपुर पाये, प्रक्रियवादी मथुरा में सुनवाये । संघ मिला वादी न ष्टि मे पाया, रक्षित पै संघाट नेज कहलाया।
वाद हेतु गोप्ठामाहिल बलधारी ॥ लेकर० ॥११६।। अर्थः-आर्य रक्षितसूरि एक बार दशपुर नगर पधारे । उस समय मथुरा मे अक्रियावादियो का जोर था। संघ एकत्र हुआ पर कोई समर्थ वादी दृष्टिगोचर नहीं हुआ। जो उनको उत्तर दे सकता । तव प्राचार्य रक्षित के पास सदेश भेजकर संघ ने उनको मथुरा बुलवाया । आचार्य स्वयं तो न आ सके, पर अपने योग्य शिप्य गोष्ठामाहिल को वाद के लिए वहाँ भेजा क्योकि उस समय परिस्थिति के अनुसार गुरु ने उसे ही योग्य समझा । गोष्ठामाहिल प्रतिभाशाली थे और वाद मे भी अत्यन्त कुशल थे॥११६||
लावरणी|| गुरु प्राज्ञा से गोष्ठामाहिल जावे, तर्कवुद्धि से वाद विजय कर आवे । भक्तजनो ने हर्षित हो ठहराया, मुनि ने वर्षाकाल वहीं पर ठाया।
गणनायकहित गुरु ने बात विचारी ॥ लेकर० ॥११७॥ अर्थः-गुरु की आज्ञा पाकर गोष्ठामाहिल शास्त्रार्थ हेतु मथुरा गये । अपने तर्कवल पर वाद मे विजयी होकर वे गुरु के पास लौट आये। उनकी विद्वत्ता से प्रभावित हो संघ ने वर्षाकाल के लिये आग्रह किया तो मुनि भी आग्रहवश वही वर्षाकाल के लिये विराज गये। आचार्य आर्य रक्षित ने