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प्राचार्य चरितावली
(१) गुण सुन्दर, (२) आर्य कालक, (३) आर्य स्कदिल, (४) आर्य रेवती मित्र, (५) आर्य धर्म, (६) भद्रगुप्त और (७) श्रीगुप्त
उनमे प्रायं रक्षित भद्रगुप्त प्राचार्य के निर्यामक और श्रुतरक्षण मे बहुत ही दक्ष हो चुके है |८|| फिर राजा विक्रमादित्य के समय मे आर्य खपुट और वृद्धवादी नाम के प्राचार्य भी हुए हैं। सिद्धसेन जैसे ज्योतिर्धर आचार्य भी इसी समय हुए, जिन्होने बड़े बड़े भूपतियो को अपने चरणों मे झुका कर जिन शासन की शोभा बढाई ॥१०॥ प्राचार्य सिद्धसेन का परिचय इस प्रकार है :
. लावणी।। .. विद्यावल । से सिद्धसेन · अकड़ाया वृद्धवादी से चर्चा करने आया। मिले मार्ग गुरु चर्चा करण उमाया, कहे भिक्षु मैं वाद करण को पाया।
हारे सो ही शिष्य वृत्ति ले धारी ॥ लेकर० ॥६६॥ अर्थ -सिद्धसेन को अपने विद्यावल का वडा अभिमान था। उसने वृद्धवादी की प्रशंसा सुनी तो उनके साथ शास्त्रचर्चा करने को निकल पड़ा। उसको रास्ते में ही वृद्धवादी मिल गये ।
मिलते ही उसने कहा, "महाराज! मैं आपसे वाद करने आया हैं। मेरी प्रतिज्ञा है कि हम दोनों में जो हारेगा वही जीतने वाले का शिष्यत्व स्वीकार करेगा" ||६६॥
लावरणी।।। , . , गोपालों के बीच वाद किया जहारी, वृद्धवादी माधुर्य गिरा 'उच्चारी।