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आचार्य चरितावली
अर्थ - गुरु वृद्धवादी ने जब यह बात सुनी तो उनके मन को बड़ा खेद हुआ। वे सिद्धसेन को वोध देने वहाँ आये और गुप्त रूप से पालकी उठाने वाले अनुचरो मे मिल गये । एक दिन जब वे पालकी उठाकर चले जा रहे थे तो सिद्धसेन ने विषम गति देखकर पूछा-"वाधति स्कंध एप ते" अर्थात् तुम्हारा कधा दुखता होगा?
वृद्धवादी ने उत्तर दिया-"तथा न बाधते देव ! यथा वाधति वाधते" अर्थात् हे राजन्, जैसा 'बावति' का अशुद्ध उच्चारण पीड़ा देता है वैसा स्कध दर्द नही करता।"
सिद्धसेन समझ गये कि इस प्रकार का उत्तर तो आचार्य गुरु वृद्धवादी का ही होना चाहिये। उन्होने नीचे उतर कर गुरु को वदन किया और अपनी भूल के लिए क्षमा याचना की ॥७॥
॥दोहा।। सिद्धसेन नवकार मंत्र को, संस्कृत में कर डाला है। - वृद्धवादी ने दोष बताकर, दिया प्रायश्चित्त काला है ॥११॥
विनयशील मुनि ने गुरु प्राज्ञा, भक्तिसहित सिरधारी है। .. भूप बोध दे द्वादश वत्सर, रहे बाह्य व्रतधारी है ॥१२॥
अर्थ-सिद्धसेन ने विद्वानो मे सस्कृत का महत्व देखकर एक दिन नवकार मंत्र को सस्कृत मे बदल दिया। वृद्धवादी ने जव जाना तो सूत्रकारो की इसमें अवहेलना बताकर उन्हे दश। पारचित प्रायश्चित्त का दण्ड वतलाया। विनयशील होने के कारण सिद्धसेन ने भक्तिसहित गुरु द्वारा बतलाया गया प्रायश्चित्त स्वीकार किया और १२ वर्ष तक सघ से बाहर रह कर कई राजाओ को प्रतिवोध दिया । जो इस प्रकार है ॥११-१२।।
॥तर्ज चलत।। गुप्त रूप से उत्कट तप पाराधे, शासन को प्राध्यात्मिक सेवा साधे । भूप अठारह धर्म मार्ग में जोड़े, निर्मल मन से कर्म बंध को तोड़े। गुप्त रूप से फिर दीक्षा स्वीकारी ।। लेकर० ॥७२॥