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आचार्य चरितावली
अर्थः-वीर निर्वाण १८० के समय उन्होने फिर वल्लभी में श्रमण समुदाय को एकत्र किया और दोनो वाचनाओ के पाठो को ध्यान मे लेकर पागमो का लेखन करवाया। उनके सत्प्रयास का ही फल है कि सघ की श्रुतवाड़ी आज हरी भरी है और हम शास्त्र भंडार को सुरक्षित पा रहे है ॥६४॥
लावरणी॥ परिस्थिति मे साधारण नर ढलते, साहसयुत नर युग का रंग बदलते। वीर और सत्पुरुष वही कहलावे, श्रमबल से बाधा को दूर हटावे ।
श्रुतलेखन कर गणि ने नाव उबारी ॥लेकर०॥६५।। अर्थः-साधारण जन मन का स्वभाव परिस्थिति के अनुसार ढल जाता है । केवल प्रतिभाशाली साहसी पुरुप ही समय का रंग अपने अनुकूल बदल सकते है । वास्तव मे सत्पुरुष और वीर वही कहलाता है, जो श्रमबल से वाधा को हटा कर आगे बढता है । देवधि गणी ने आगम-लेखन कर शासन की डूवती हुई नाव को उबार लिया ॥६५॥ ·
रास०॥ प्रार्य सुहस्ती वज्र बीच में, सात मुख्य प्राचार्य हुए। , (१) गुण सुन्दर, (२) कालक, (३) स्कंदिल, प्रो । (४) मित्ररेवती, (५) धर्म गये ॥८॥ (६) भद्रगुप्त (७) श्री गुप्त नाम के प्रतिभाशाली सत हुए। रक्षित भद्रगुप्त निर्यामक, श्रुतरक्षरण में दक्ष हुए ॥६॥ प्रार्य खपुट और वृद्धवादी, नृप विक्रम के समकाल हुए। सिद्धसेन से ज्योतिर्धर ने, भूप चरण मे झुका दिये ॥१०॥
अर्थ-आर्य सुहस्ती और वज्रस्वामी के वीच सात प्रतिभाशाली प्रमुख आचार्य हुए, जो इस प्रकार हैं .