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प्राचार्य चरितावली
मिला न ऐसा योग मर्म समझाये। ...
देवधि ने गुणगाथा विस्तारी ॥लेकर०॥६२॥ अर्थ:-जो मुनि दक्षिण में विचर रहे थे, उनके लिये नागार्जुन के नेतृत्व मे वल्लभी में सभा की गई, इन दोनो वाचनाप्रो में कुछ पाठ भेद रह गये थे, जो दोनो प्रमुख मुनियो के मिलने से ही हल होते । परन्तु वसा सयोग नहीं मिल सका । तव आचार्य देवधि ने पाठ भेदो की सकलना कर यथा मति मुख्य एवं गौण रूप से पाठो की स्थापना की जो, आज भी विद्यमान है ॥२॥
लावरणी।। श्लेष्महरण को सुठी इक दिन लाये, भूल न उसका प्रत्यर्पण कर पाये। . क्रिया करत गिरने से मन में आई, ...
मंदबुद्धि कैसे श्रुत रहे टिकाई। - कर विचार प्रागम लेखन की धारी॥लेकरं०॥६३॥ .
अर्थः-आचार्य देवधि अपनी कफ-व्याधि के उपशम हेतु एक दिनासूठ लाये, उसको समयान्तर मे उपयोग कर शेप को पीछी लौटाने के विचार से कान में रख छोड़ा था। पर दिन भर स्मृति नही पाई । सायंकाल क्रिया करते समय सूठ के यकायक कान से निकल कर नीचे गिर पड़ने पर ध्यान आया तो आचार्य को विचार हुआ कि इतनी सी बात भी स्मृति से निकल गई तो आगे के मंद मेधा-बल वाले शिष्यो मे श्रुत कैसे टिकेगा ? ऐसा सोचकर आगम-लेखन का निश्चय किया ॥६३॥
लावरणी॥ वीरकाल नवसौ अस्सी जब पाया, देव ऋद्धि ने फिर सम दाय मिलाया। उभय वाचना के पाठों को लेकर, प्रागमलेखन करवाया शुभमतिधर । .. आज उसी से हरी सघ की बाडीलेिकर०॥६४॥2