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प्राचार्य चरितावली
ये एक पूर्व के ज्ञाता थे । स्मृति बल की क्षीणता देख कर इन्होने सोचा कि शास्त्रो का रक्षरग किस प्रकार किया जाये। मुकाल होने पर मुनिमंडल से परामर्श कर यह तय किया कि प्रमुख संतों को बुलाकर एक श्रुतपरिषद् भराई जाय और उममें वाचना द्वारा अगादि सूत्रो का स कलन व रक्षण किया जाय ॥५७॥ वाचनाओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :
लावरणी॥ प्रथम वाचना भद्रबाहु युग में थी, द्वितीय मुस्थित ने कलिंग मे की थी। बलिस्सह प्रादि श्रमण श्रमरगी भी आये, अग और दशपूर्व पाठ स्थिर थाये ।
स्थविरावली में कही बात यह सारी।लेकर०॥५८॥ अर्थ-भद्र बाहु के समय मे प्रथम वाचना पाटलिपुत्र मे हुई, और दूसरी सुस्थित के समय कलिग मे की गई। इसमे वलिस्सह आदि प्रमुख संत और साध्वियां भी उपस्थित थे। हिमवत स्थविरावली के अनुसार इसमें ११ अग और दस पूर्वो के पाठ स्थिर किये गये ॥५८।।
लावरणी॥ वज्रसेन के समय तीसरी जानो, रक्षित का नेतृत्व मुख्य पहिचानो। दशपुर में शतपांच वराणू (५६२) कहते, अनुयोगों का पृथक् करणे करवाते ।
श्रमणवर्ग का मेघावल अवधारी ।लेकर०॥५६॥ अर्थ --तीसरी वाचना आचार्य वज्रसेन के समय दशपुर नगर मे हुई, जो वीर सवत् ५६२ मे प्रार्य रक्षित के नेतृत्व में सम्पन्न हुई थी। इसमें अनुयोगो का पृथक करण किया गया । अनुभवी प्राचार्यों ने देखा कि आज श्रमणवर्ग सयुक्त अनुयोग को धारण नही कर सकेगा, अत उन्होने पृथक अनुयोग के रूप मे शास्त्रो का वर्गीकरण कर डाला ॥५६॥