________________
२६
आचार्य चरितावली
कालिक श्रत के धारक सूरि प्रधानो, सिंह आर्य के पट स्कदिल गुरगवानो ।
हुए पाट ये बीस पराक्रमधारी ॥५२॥ अर्थः-आचार्य रेवती के पाट पर आर्य सिह विराजे । आप कालिक श्रुत के विशिष्ट ज्ञाता १६ वे प्राचार्य माने गये है। आपका सत्ताकाल वीर निर्वाण की नवमी सदी का आरभ काल है। आर्य सिह के पट्टधर आर्य स्कंदिल हुए। ये महागिरि की परम्परा मे २० वे प्राचार्य थे ॥५२।।
लावरणी॥ स्कदिल पोछे हेमवान पद छाजे, श्रु तबल से अति तेज सघ में गाजे । विचरण भूमडल में विस्तृत जिनका, नागार्जुन से सबल पट्टधर उनका ।
कठिन समय में शासन रक्षाधारी लेकर०॥५३॥ अर्थ-ग्रार्य स्कंदिल के पीछे २१ वे आचार्य हिमवान् हुए । आप विशिष्ट श्रुतधर हो कर संघ मे तपस्तेज से दीपते रहे । आपका विहार क्षेत्र विस्तृत रहा । आपके पीछे २२ वे प्राचार्य नागार्जुन भो वडे समर्थ सत हो चुके हैं, जिन्होने कठिन समय मे जिन शासन की रक्षा की ॥५३।।
लावरणी॥ जन्म सात सौ तेरागू बतलाया, दीक्षा लेकर सयम मे मन लाया। युग प्रधान छब्बीस पाठ में राजे, सौ पर ग्यारह दय में स्वर्ग विराजे ।
वाचक पद से विमल कीति विस्तारी लेकर०॥५४॥ अर्थः-इनका जन्म वीर सम्वत् सात सौ तेरा कहा गया है। इन्होंने दीक्षा ले कर सयम मे मन लगाया। वीर संवत् पाठ सौ छव्वीस मे ये युग प्रधान प्राचार्य वने और पूर्ण पायू १११ वर्ष की भोग कर स्वर्ग सिधारे। इन्होने वाचक पद पर रह कर अच्छी कीर्ति कमाई ॥५४॥