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प्राचार्य चरितावली भद्रबाहु नहिं भूप भवन में जावे । मंत्री ने गुरु को यह अर्ज सुनाई, कहा साथ ही जायेंगे हम भाई ।
सात दिवस की अल्प प्रायु दुखकारी २ ॥लेकर॥२१॥ अर्थ:-प्रतिष्ठानपुर के प्राचीन गोत्रीय ब्राह्मण विद्वान् भद्रवाहु ने भी आचार्य यशोभद्र के उपदेश से प्रभावित होकर उनके पास दीक्षा ग्रहण की और गुरु सेवा मे रहकर चौदह पूर्व का ज्ञान सपादन किया । योग्य देख कर गुरु ने उनको आचार्यपद प्रदान किया। एक समय की बात है कि नद राजा को लम्वे समय से एक पुत्र को प्राप्ति हुई अतः सव लोग बधाई देने आये परन्तु मुनि भद्रबाहु नहीं आये। विरोधियो को इस कारण से मुनि भद्रवाह के विरुद्ध वात वनाने का मौका मिलेगा, यह देख मत्री शकडाल ने गुरु को निवेदन किया तो उत्तर मिला कि कुछ ही दिनो में दूसरा प्रसंग आने वाला है अतः साथ ही जाना ठीक रहेगा । वालक की आयु मात्र सात दिन की ही ज्ञात होती है। वराहमिहिर ने सौ वर्ष की आयु बतलाई थी जव कि भद्रवाह ने सात दिन के बाद बिडाल के सयोग से वालक की मृत्यु होनी वतलाई । वास्तव मे उनकी बात सही निकली और राजा नन्द उनका भक्त बन गया ॥२१॥
॥ लावणी ॥ भद्रबाहु थे जिन शासन में नामी, निमित्त बोले शासन के हित कामी।। व्यंतर ने पुर में उत्पात मचाया, स्तोत्र बना कर सबका कष्ट मिटाया ।।
शास्त्रो पर नियुक्ति की विस्तारी लेकरा॥२२॥ अर्थ:-भद्रवाह चौदहपूर्व के अतिरिक्त निमित्तजान के भी ज्ञाता थे, उन्होने गासनहित के लिये निमित्त ज्ञान का प्रयोग किया। वराहमिहिर अपनी वात के मिथ्या होने से बहुत दुखी हुया और आत ध्यान मे मर कर वह, व्यतर योनि मे उत्पन्न होगया तथा वैर का बदला लेने हेत वह नगर मे उत्पात मचाने लगा । सघ ने उपद्रव से चितित हो कर भगवाह से निवेदन किया। इस पर प्राचार्य ने "उवसग्गहर स्तोत्र" की रचना की