Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ (१३) सहुने हुशे जी, जीवन एह उपाय ॥ कु० ॥७॥ पाणी मिष पापी गयो जी, मुज नहीं पूबी सार ॥ इंमां बलीयां अग्निमें जी, नाणी महेर लगार ॥कु० ॥ ए॥ संतति कारण सामिणि जी, में होमी निज काय ॥ मरण तणे मेले करी जी, कंत गयो निरमाय ॥ कु० ॥ १० ॥ जातिस्मरणे जाणीयो जी, पूरव जव विरतंत ॥ बलतां बालक मूकीने जी, नासी गयो मुज कंत ॥ कु० ॥ ११॥ तिण वेषे में मारीया जी, हणीया पुरुष अनेक ॥ देवी कहे की, किस्युं जी, तुजमें नहींय विवेक ॥ कु० ॥१॥तुज कंते कीधुं जिस्यु जी,श्रवर न पूजे होय ॥तुज कारण तिणे तनु दह्योजी, हिये विचारी जोय ॥कु०॥१३॥ सर्व गाथा ॥१७॥ ॥दोहा॥ ॥ शक्ति मुखेधी सांजली, मात न जाणी वात ॥ श्रणजाण्या में पापिणी, नरनी कीधी घात ॥१॥ आज पड़ी मारीश नहीं, चूके तोरा पाय ॥ जगते जोग उमादीने, कुमरी स्थानक जाय॥२॥धसमस मंत्री उठीयो, देवी बुकिनिधान ॥ हमहम तव देखी हसी, ए नर नहीं समान॥३॥ कर जोमी मंत्री कहे, खमजो अवगुण मात ॥ तुं त्रिपुरा तुं तोतला, त्रिहुं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114