Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 71
________________ ( ७० ) रे, जोइ सघला संच रे ॥ १६ ॥ का० ॥ वराज जाउ घरे रे, मर्दन देजो रंग ॥ चार पुरुष थइ सामटा रे, करजो ढीलां अंग रे ॥ १७ ॥ का० ॥ नस टालजो अंगनी रे, वेदनी लड़े काल ॥ ढील हवे करवी नहीं रे, त्रोडो मुजनुं साल रे ॥ १८ ॥ का० ॥ ते नर तिहांथी नीसारे, रायने करी प्रणाम ॥ सेवक तारा तो सही रे, अवश्य करीए काम रे ॥ १९ ॥ का० ॥ मागी शीख सनेहशुं रे, श्राव्या वचनी पास ॥ राजाना आदेशथी रे, करशुं सेवा उल्लास रे ॥ २० ॥ का० ॥ विविध तेल तिहां काढीयां रे, कुमर न जाणे भेद ॥ कुमरी नयणे निरखीयुं रे, देखी धरीयो खेद रे ॥ २१ ॥ का० ॥ कंत जी कहे कामिनी रे, चिहुंने बे मन कूम ॥ नस टालशे ए स्वामीनी रे, करशे सघलुं धूम रे ॥ २२ ॥ का० ॥ वराज कहे कामिनी रे, चिंता म करो कांय ॥ जेवुं जे नर चिंतवे रे तेहवुं तेहने याय रे ॥ २३ ॥ का० ॥ बेहु पासे बे बे मल्या रे, तेल लीयो सहु हाथ || मर्दन देवा उठीया रे, कुमरे घाली बाथ रे ॥ २४ ॥ का० ॥ यघा पाठा रगदल्या रे, नस काढी तत्काल || बे नर धरती पायस्या रे, बे नरे सांधी फाल रे ॥ २५ ॥ का० ॥ राजसनामें घ्यावीया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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