Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 90
________________ (ए) रात ॥ सती शीले सुखे वहे रे, हवे नारीनी सुणजो वात॥१॥वालमीया तुं जाये कुंती नगरी पाधरो रे, जिहां डे शेग्नुं गेह ॥ तिहांकणे गयाथी कंता तुं मिले रे, जिम सुख उपजे देह ॥ वालमीथा ॥२॥ ए आंकणी॥प्रवहण समुथी उतस्यां रे, वली उत रीयां लोक ॥ नगरी निरखी नयणशुं रे, जाग्यो सविहु शोक ॥ वा० ॥३॥ नगरी बाहिर डेरा कीया रे, जतास्या सहु नार ॥ पुप्फदंत मन मांहि चिंतवे रे, हिवे करशुं एहने नार ॥वा॥४॥ वधावो आगे मूकीयो रे, मुम्मण हुई उबाह ॥ सहुको जन आर नेटीया रे, उलट अंग न माय ॥वा॥५॥ लोक वाणी सहुको कहे रे, शेठे परणी नारी ॥राजकुमरी श्ण सारखी रे, को नहीं ले संसार ॥वा॥६॥चित्रलेखा थाणी घरे रे, कीधा बहुला जंग ॥ हवे गृहिणी हुश् माहरी रे, नारी राखो मो\ रंग॥वा॥७॥ शेठ तमे सुसता रहो रे, सुसते सीके काज॥गरीने पीजे सही रे, उतावलां न लाने राज॥वाणाणा मालण वात सुणी सहु रे, श्रावी कुंवरनी पास ॥ पुप्फदंत शेठ शहां श्रावीया रे, सघलो कीयो प्रकाश ॥ वाण ॥ ए ॥ वात सुणी मन हरखीयो रे, पूगी मननी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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