Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(७) चिहुं दिशे रे, जिहां सुतो वहराज ॥ श्रावी निरख्यो नारी तेहने रे, रूपे जिस्यो देवराज ॥चि०॥॥पग पद्म देखी मालण चिंतवे रे, पुरुष नहीं सामान्य ॥ एहने पुण्ये ए वन पदव्यु रे, एहने देशुं मान॥॥चिण ॥एमालण बेठी आवी हकडी रे, उलासे तसु पाय ॥ जोर करीने कुंवर जगावीयो रे, उलट अंग न माय ॥चि॥१०॥श्रालस मोमी कुंवरजी उठीया रे, कुमर करे रे जूहार ॥ देव आशीषने सलखु एम कहे रे, तुं श्रायो पुण्य प्रकार॥चि०॥११॥फल फूल लेशकुमर श्रागे धस्यां रे, पूजे पूरव वात ॥ एकाकी तुं कुमर दीसे जलो रे, नहीं को तुज संघात ॥ चि० ॥१२॥ करमप्रसादे माता हुं एकलो रे, माय अबुं निर्धार ॥ मननी वात कहुं माय केहने रे, एक अडे किरतार॥ चि॥१३॥हुँ परदेशे जावा नीकल्यो रे, आव्यो क्षणे आराम ॥ तुज देखीने महारुं फुःख टब्यु रे, सिधां वांडित काम ॥ चि०॥१४॥ पुःखीयां दीगं दुःखहूं सांजरे रे, मालण मूके धाह॥सरल निशासा सलखु मूकती रे, कुमरे राखी साह चि०॥१५॥ फुःखनी वात कहो मुज मातजी रे, जिम हुँ जाणुं वात ॥ मालण जंपे लोचन जल जरी रे, हुं बुं हां विख्यात
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