Book Title: Hansraj Vacchraj no Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 102
________________ ( १०१ ) आदरस्यो रे ॥ इण पुष्पदंते शेठ, तुज बंधवने अन्य जाति कोइ कस्यो रे ॥ ४॥ राजा धरीयो कोप, नगरीथी हो राजा बाहिर राखीया रे | मारण मांगी घात, नाम गम सहु हे राजाने जाखीयां रे ॥ ५ ॥ राजा धरीयो राग, तुज बांधवने हो नगरीए श्राणीयो रे ॥ दधुं बहु सन्मान, नगरने लोके हे कुमर वखाणीयो रे ॥ ६ ॥ हुं तुज बंधवनारी, सुख जोगवतां केश्क दिन हुवा रे ॥ प्रवहण पूरयां शेठ, तुज बांधव ने हे हुं साथै हुवां रे ॥ ७ ॥ श्राव्यां समुद्र मकार, मुजने हे देखी पापी चिंतव्युं रे ॥ ए थापुं घरनारी, एम जाणीने हे पापी शुं तव्यं रे ॥ ८ ॥ की धुं कर्म चंगाल, श्राधी राते कुंवरने नाखीयो रे॥ करवा मांगी घात, एड् चरित्र सहु कुमरी जाखी यो रे ॥ ॥ सर्व गाथा ॥ ८३२ ॥ ॥ ढाल गीयारमी ॥ राग मल्हार ॥ अथवा ॥ तप सरिखो जग को नहीं ॥ ए देशी ॥ ॥ एद वचन श्रवणे सुणी, मूर्छाणो हंसराज ॥ हो सुंदर || उठीने धरणी पडे, बंधव केरे काज ॥ हो सुंदर ॥ ० ॥ १ ॥ मुज बंधव तिहांकिणे मूर्ज, जीवनी किसी आश ॥ हो० ॥ रोवे रीसे आरडे, मन मां हु उदास ॥ हो० ॥ ए० ॥ २ ॥ चित्रलेखा कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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