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जिनोदय सूरि विरचित दंसराज वनराजनो रास.
शीलादि माहात्म्यरूप.
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आ ग्रंथ चतुर्विध संघने उपयोगी जाणी याशक्ति शुद्ध करावी उपावी प्रसिद्ध करनार
श्रावक नीमसिंद माणेक, जैा पुस्तक वेचनार तथा प्रसिद्ध करनार.
मांमवी, शाकमली, मुंबइ.
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AranMAMMAR
आवृत्ति पांचमी विक्रम संवत् १९७३
वीर संवत् २४४३
सने १९१७.
..AnAmARANAARAKA
Pri teil by Ramchandra Yesu Sherige, at the Nirnaya-Sagar
Press, 28. Koilbhat Lans, Bombay. Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck,
225-231; Mandvi, Saekgalli, Bombay.
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1.1
TC 33.
71220VAN..
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॥ श्रीजिनेश्वराय नमः ॥ श्रीसशुरुन्यो नमः॥ ॥अथ श्री हंसराज वत्सराजनो
रास प्रारंनः॥
॥ दोहा ॥ आशावरी राग ॥ ॥श्रादीश्वर श्रादे करी,चवीशे जिणचंद ॥सरसती मन समरूं सदा, श्रीजयतिलक सूरींद ॥१॥ सद्गुरु पय प्रणमी करी, पामी गुरु आदेश ॥ पुण्य तणां फल बोलगुं, कहीशुं हुं लवलेश ॥२॥ पुण्ये शिवसुख संपजे, पुण्ये संपत्ति होय ॥राजाधि लीला घणी, पुण्ये पामे सोय ॥३॥ पुण्ये उत्तम कुल हुवे, पुण्ये रूप प्रधान ॥ पुण्ये पूरुं श्राउ, पुण्ये बुकिनिधान ॥४॥ पुण्य उपर सुणजो कथा,सुणतां अचरिज थाय॥हंसराज वत्सराज नृप, ढुवा पुण्य पसाय ॥५॥ ॥ ढाल पहेली ॥राग धन्याश्री॥कोश्या कामिनी ___ एणी परे विनवे जी ॥ ए देशी ॥
॥ जंबुद्वीपे भरत वखाणीए जी, पुरपयगण प्रधान ॥ अलकापुर समोवम ते जाणीए जी, वृद तणुं नहीं मान ॥ जंबु० ॥१॥ जाइ जु ने चंपो
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( 2 ) मोगरो जी, सेवंत्री सुकुमाल ॥ केवको करेणो ने वली मालती जी, पूगी ताल तमाल ॥ जंबु० ॥ २ ॥ आंबा रायण जंबुकरमदां जी, वम पीपल ने द्वाख ॥ जंबीरी ने दामि नींबु जी, वृक्ष तथा तिहां लाख ॥ जंबु० ॥ ३ ॥ पुरपयठाए नगर पासे वहे जी, गंगाजल सम नीर ॥ नदी गोदावरी नामे गुणजरी जी, जल जेवुं गोक्षीर ॥ जंबु० ॥ ४ ॥ हंस चकोर ने चकवा सारही जी, बगलां बेठां तीर ॥ चीमी चास तित्तर पारेवमां जी, केलि करे ते नीर ॥ जंबु० ॥ ५ ॥ गढ मढ मंदिर सोहे देहरांजी, वली पोशाल निशाल ॥ नगर चोराशी चहुटां चिहुं दिशे जी, उपर जाकऊमाल ॥ जंबु० ॥ ६ ॥ विविध व्यापारी नगर मांडे वसे जी, धर्मी ने धनवंत ॥ चार वरणनां लोक तिहां रहे जी, धर्म तणी मन खंत ॥ जंबु० ॥ ७ ॥ शालि - वाहन सुत नरवादन पटे जी, रूपे अमर समान ॥ ख्याग त्याग निकलंक सदा जलो जी, सहुको माने
॥ जंबु० ॥ ७ ॥ यादव वंश विभूषण उपनो जी, जीवदया प्रतिपाल ॥ त्रणसें साठ अंतेउरी तेहने जी, उत्तम गुण हि विशाल ॥ जंबु० ॥ ए ॥ गयवर हयवर यागे हसता जी, नाटक बद्ध बत्रीश ॥ महेता
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शेठ सेनापति मंत्रवी जी, सेवे कुलि बत्रीश ॥जंबुन ॥१०॥बावन वीर सदा सेवा करे जी,बंधव अति बलवंत ॥ लहुडो शक्तिकुंवर सोहामणो जी, सकल कला गुणवंत ॥ जंबु॥१९॥ एक दिन सुतो नरवाहन सुखे जी,निखावश नरपूर॥पहेली ढाले राजा पोढीयो जी, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ जंबु॥१२॥ सर्व गाथा॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ सुतो सुपनांतर लहे, अनुत सुपन नरेश ॥ दिवस उग्यो जागे नहीं, देखे नयर निवेश ॥१॥ कणयापुर पाटण गयो, कीधो नगरी प्रवेश॥हंसावलि रायपुत्रिका, दीगे अनुत वेश॥२॥ कनकत्रम राजा सुता, परणावी सा बाल ॥ दीधा बहुला दायजा, सुखे गमतो तिहां काल ॥३॥ दरबारे सहुको मिख्या, खान अने सुलतान ॥ शेठ श्रने सेनापति, बेठा बहु दीवान ॥४॥ नरपतिने नेटण जणी, पुर प्रगणे के नूप ॥ निमित्तिया श्राया तिहां, कहेवा सकल सरूप ॥५॥ ब्राह्मण वेद नणे जीके, बली ज्योतिषिया जाण ॥ वैदराज श्रावी मिट्या, जट चट करे वखाण ॥६॥ हयवर आगे हींसता, गयवर गरम करंत ।। पायक श्राया प्रणमवा, इणी परि मेल मिलंत॥७॥
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(४)
॥ ढाल बीजी॥ ॥श्रेणिक मन अचरिज थयो ॥ ए देशी ॥ ॥ कौतुकीया कौतुक नणी, ले सघलो साजो रे॥ एकण विण सहुको मिट्या, एक नहीं महाराजो रे ॥१॥ जेवू घर दीपक विना, अंधकार किम जायो रे॥ एकपदी राजा विना, गोवाला विण गायो रे॥ जे॥२॥ तिणे अवसर तिहां आवीयो, मनकेसरी मनरंगो रे ॥ लोक लाख मिट्यां जिहां, प्रणमे सहु जबरंगो रे ॥जे०॥३॥आदरदै आयो गयो,पहोतो राजा पासो रे ॥ आसंगो करी अति घणो, सामि सुणो अरदासो रे ॥ जे० ॥ ४ ॥ तुम दरबार सहु खडे, नेटण आया काजो रे ॥ दिनकर पण उंचो चढ्यो, उगे श्रीमहाराजो रे ॥ जे॥५॥ मंत्री वचन राय जागीयो, बालस मोमी अंगो रे ॥सुतो सिंह जगावीयो, कीधो निसानंगो रे ॥ जे० ॥६॥ कोपानल राजा हुर्ज, रातां लोचन कीधरे॥रीस गरे राय जीयो, खांडं दाथे लीध रे॥ जे० ॥ ७॥ रे मूरख की, कीस्युं, हुँ निजामांहि आजो रे ॥कणयापुर पाटण गयो, कनकम तिहां राजो रे ॥ जे ॥ ॥ तस पुत्री हंसावलि, अपनरने अनुहारो रे॥
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रंग जंग करी अति घणा, परणी में सुविचारो रे ॥ जे॥ए॥ तेहनो तें विरहो कीयो, सुखमें कीयोअंतरायो रे ॥ जीवंतां नवि विसरे, श्म बोले महारायो रे ॥ जे० ॥ १० ॥ खड्ग काढी जव धाल, मंत्रीश्वर मन चिंते रे ॥ सुहणां किम साचां हुवे, राय पड्यो किसी ब्रांते रे ॥ जे ॥ ११॥ जूहारी साचो चवे, उगे पश्चिम जाणो रे ॥ समुष किमे पूरो हुवे,
आपणो न होय राजानो रे ॥ जे॥१२॥ मनकेसरी मुहतो नणे, विण अपराध कांश मारो रे ॥ बीजी ढाल पूरी हुश्, आगल जेह प्रकारो रे ॥ जे० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥३७॥
॥दोहा॥ ॥ मंत्री कहे राजा सुणो, कीजे काम विमास॥पडे न पस्तावो हुवे, जीव हुवे न उदास ॥१॥ सुपन मांहि परणी जीके, हंसावलि जसु नाम ॥ परतख ते परणावीशुं, सारशुं वंडित काम ॥२॥ण वचने सुसतो हठ, खग धयु निज गम ॥ ससतो शीतल जाणीयो, मंत्री करे प्रणाम ॥३॥ अवधि दीयो एक मासनी, जोवरा सा नार ॥ राय कहे बिहुँ मासनी, तां लगे करो विचार॥४॥मंत्रीश्वर तुं मुज
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( ६ ) खरो, जो मेले मुज नार ॥ पृथ्वीपति पधरात्रीयो, सहुको करे जुदार ॥ ५ ॥ मंत्रीसर आयो घरे, शोचे बुद्धिनिधान ॥ किविध ते नारी मिले, रीकें किम राजान ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥
॥ शील कहे जग हुं वमो ॥ ए देश ॥ राग रामग्री ॥ ॥ मंत्री तस कीधुं किस्युं, सत्रकार तिहां मांड्यो रे ॥ मरण तणे मेले करी, सह प्रमाद तिथे बांड्यो रे ॥ मं० ॥ १ ॥ चिहुं दिशि चिहुं पोले सदा, मागे ते तसु दीजे रे ॥ नाकारो नवि कीजीए, नाम गम पूर्वी जे रे ॥ मं० ॥ २ ॥ सोफी संन्यासी घणा, जोगी जंगम जाटो रे ॥ बंजण अवधूत कापमी, मिलीया नरना थागे रे ॥ मं० ॥ ३ ॥ एम करतां बहु दिन गया, परदेशी पूर्वतो रे ॥ गाम नाम नवि को कहे, पूर्वी पूर्वी विरतंतो रे ॥ मं० ॥ ४ ॥ एक आयो परदेशश्री, मुहते नयणे दीठो रे ॥ आदर दीधो अति घणो, मुह कराव्यो मीठो रे ॥ मं० ॥ ५ ॥ कहो तुमे किहांथी यवीया, कि देशांतर वासी रे ॥ कवण नगर तुमे निरखीयां, तव ते कहे विमासी रे ॥ मं० ॥ ६॥ सठ तीरथ में कीयां, बहु धरती में दीठी रे ॥ कण
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(७) यापुरथी आवीयो, वात कही अति मीठी रे ॥मंग ॥७॥ नूख्यां नोजन संपजे, जिम तरस्याने पाणी रे ॥मुदताने मन जे हुती, तेहज बोल्यो वाणी रे ॥मंग ॥ ॥ श्रादर देश्यति घणो, पूजे तेहने वातो रे ॥ कणयापुर ते किहां अडे, वात कहो विख्यातो रे॥ मं॥ ए॥ समुझ परे अति शोजतो, कणयापुर पैठाणो रे॥ कनकज्रम राजा तिहां, बहु बुद्धि चतुर सुजाणो रे ॥ मं० ॥१०॥हंसावलि रायपुत्रिका, रूपे रंज समाणी रे॥तिहांथी हुँ श्राव्यो हां, मंत्री वात सहु जाणी रे ॥ मंण् ॥ ११॥ ते परदेशी खेश्ने, नरवर पासे आवे रे ॥ आगल मूकी नेटणुं, रंगे राय वधावे रे ॥ मं० ॥ १२ ॥ पूर्व वात मांगी कही, जिम परदेशी जाखी रे ॥राये वात मानी खरी, ते नर कीधो साखी रे ॥ मं० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ ५६ ॥
॥दोहा॥ ॥ राजा मन धीरज धरी, हवे हुश्मन आश॥ त्रिहुं मिली मतो कीयो, पंथ अडे एक मास ॥१॥बावन वीर तेमावीया, बंधव अति बलवंत ॥ हुँ जाशुंजात्रा जणी, जेटण तीरय खंत ॥२॥ नरवाहन राजा कहे, राजा विण शुं राज ॥ जब लगे हुं श्रावू नहीं,
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तां शकतिकुमरनुं राज॥३॥नगर देश तुमने नले, करजो सहुनी सार ॥ वीरे वचनज मानीयु, चाट्या शुन दिन वार ॥४॥ परदेशी साथे लीयो, देश बहुला दाम ॥ दीधारी देवल चढे, सीके सघलां काम ॥५॥त्रणे तिहांथी नीसस्या, मनकेसरी ने राय॥ देश नगर जोतां थका, आघा मारग जाय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल चोथी॥ राग केदारो ॥ जोषीयमो
जाणे ज्योतिष सार ॥ ए देशी॥ ॥ उजम वसती जोवतां रे, लंघे बहुला घाट॥ राय मंत्री जाणे नहीं रे, परदेशी कहे वाट ॥राजनजी जोगी केरे रे वेश, सहुको करे आदेश ॥ रा०॥ ए आंकणी ॥१॥ किहां संन्यासी किदांब्राह्मणुं रे, करता रूप अनेक ॥ त्रिहुं मासे पहुता तिहां रे, बिडं मन घणो अविवेक ॥ रा॥२॥नयणे नगरज निरखीयुं रे, इंजपुरी अवतार ॥ पवन त्रीश तिहां वहे रे, नव जोयण विस्तार ॥ राम्॥३॥ कनकन्त्रम राजा तिहां रे, पाले सुखमें राज ॥ वैरी जन श्रावी नमे रे, सारे उत्तम काज ॥ रा० ॥४॥ वन वाडी सहु निरखतां रे, नरवाहन नरेश ॥ मनकेसरीमुहते करी रे, नगरे कस्यो प्रवेश ॥ रा० ॥ ५॥ राजा ने
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मुहता नणी रे, कोश न पूजे वात॥पोल माहे मालण मिली रे, सलखू नामे विख्यात ॥ रा॥६॥मालण माला कर धरी रे, कीधी बिहुँने पेस ॥ शकुन जवू जाणी करी रे, रंज्यो मनमां नरेश ॥ रा० ॥७॥ मालणने मुना दीये रे, राजा करे पसाय ॥ राजा मंत्री बिहुँ जणी रे, मालण लेघर जाय॥रा॥॥ मालण कर जोमी कहे रे, हुं बुं तुमारी दास॥ ए मंदिर एमालीयां रे, रहो सदा इहां वास ॥रा०॥ ए॥ मालणने मंदिर रह्या रे, मनकेसरी ने राय ॥ नगर कुतूहल जोवतां रे, मनोवंडित ते खाय॥रा॥१०॥ एक दिवस राजा जणी रे, मालण जंपे श्राम ॥ बेसी रहो निज स्थानके रे, जो जीवणशुं काम ॥ रा०॥११॥राजा पूछे श्रादरे रे, मामी कहो मुज वात ॥ मरण तणो नय किण विधे रे, मालण कहे अवदात ॥ रा० ॥ १२॥ सर्व गाथा ॥ ४॥
।दोहा॥ ॥ण नगरे राजा तणी, पुत्री ने उरदंत ॥आठम चौदश पूनमे, नर निश्चे जु हणंत ॥१॥ सोम शनिश्चर मंगले, वली चोथो रविवार ॥ण वारे निश्चे हणे, फरे ते लहे मार॥२॥ राजा घर बेठगे रहे,
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(१०) नावे को दीवान ॥ नर ते सवि नाग फिरे,सामो न मंडे प्राण ॥३॥पांच दिवस लगी सामटी, देवी सक्ति जाय ॥वाजिन आगल वाजतां,प्रणमे देवी पाय॥४॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ राग रामग्री ॥ करमपरीक्षा
करण कुमर चढ्यो रे ॥ ए देशी ॥ ॥ एह वचन राय मंत्री सांजली जी, शोचे हश्मा मकार ॥ए परणेवो श्रावे पाधरो जी, करस्यां किस्यो विचार ॥१॥ कर्मपरीक्षा राय मंत्री करे जी, मंत्री बोले जी ताम॥ हुँ मनकेसरी मुहतो ताहरो जी, सारं तुजनुं काम ॥ क० ॥२॥राजा पुत्री ते परणावगुं जी, ते करशुं तुज दास ॥ जेहनुं नाम अने हंसावलि जी, ते तुज थाणुं पास ॥ क० ॥३॥ मालण मंदिर राजा राखीयो जी, सुखे रहेजो इण गम ॥ दृढ मन करीने मंत्री नीकल्यो जी, करवा नृपर्नु काम॥ क० ॥ ४ ॥ देवी देहरे मंत्री आवीयो जी, मंत्री करेय प्रणाम ॥ पूजी पर्ची मंत्री विनवे जी, राखो माहरी माम ॥ क ॥५॥ शरीर संकोची मंत्री आपणुं जी, बेगे देवीनी पूठ ॥ संध्यासमये ते हंसावलि जी, खड्ग धरी निज मूठ॥क॥६॥नारी पंचसया परिवारशुं जी, पेठी पीठ मकार ॥ रुज रूप दीसे
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(११) तिहां देहरु जी, हनुमंत करे होकार ॥ क० ॥७॥ बावन वीर तिहां बीहामणा जी,ममरु वाजे हाथ ॥ फरुख चढीने माश्ण धसमसे जी, नाके घाली नाथ ॥ कम्॥॥नूत प्रेत ने व्यंतर तिहां घणां जी, जोटिंग करे ऊंकार ॥जोगणी पीउतिहांकिणे जागती जी, शक्ति तणी तिहां कार ॥ क० ॥ ए॥ रुंढमुंग माथां तिहां रमवडे जी, वहे तिहां लोहीनी खाल ॥ अग्निकुंम सदा आगे बले जी, करती जालो जाल ॥ क० ॥ १०॥ कुमरी एहवां कौतुक जोवती जी, पूजाविधि सह लेय ॥बति बाकुल ने तिलवट लापशी जी, तीन प्रदक्षिणा देय ॥ ११ ॥सर्व गाथा ॥ए॥
॥ दोहा ॥ ॥ मंत्रीसर मन चिंतवे, अवसर लाधो श्राज ॥ शक्ति तणे सान्निध्य करी, सारीश निश्चे काज॥१॥ हुँ मंत्रीश्वर तो खरो, एहने पाडं पास॥ए हंसावलि हरखजु, राय तणी करुं दास ॥२॥ मुहताने मति जपनी, बोले देवी वाण ॥अंधारे अलगां थका,चाले शे मुज प्राण ॥३॥ ममप आवी मानिनी, हाकोटी तव हिक ॥ मत पेसे रे पापिणी, मारीश तुजने मीक
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( १२ )
॥ ४ ॥ कुमरी कपट न जाणीयुं, जाणी देवी वाच ॥ शी कंपा शरीरे हुया, जे जंपे ते साच ॥ ५ ॥ ॥ ढाल बडी ॥ राग सिंधुको ॥ तोमी जाति ॥ || वीरे वखाणी राणी चेला जी ॥ ए देशी ॥ ॥ कुमरी मनमें चिंतवे जी, देवी कोपी आज ॥ के में कीधी शातना जी, के नवि आयो साज ॥ कु० ॥ १ ॥ मुज नजरे म श्रावे इहां जी, नावे तुं मारी पीठ ॥ जा रही तुं पापिणी जी, ताहरु मुद्द म दीव ॥ कु० ॥ २ ॥ पुरुषहत्या कीधी घणी जी, ति हुई तोशुं रोष ॥ कर जोमी कुमरी कहे जी, सामिपि मुज नहीं दोष || कु० ॥ ३ ॥ पूरव जव में जाणीयो जी, ज्ञान त परिमाण || हुं पढेले नवे पक्षिणी जी, रहेती वडे उद्यान ॥ कु० ॥ ४ ॥ आंबा उपर अति जलुं जी, रहेवा कीधुं ठाम ॥ माले मां में मूकीयां जी, जुगल जनम्यां वे ताम ॥ कु० ॥ ५ ॥ कर्मजोगे तिहां शुं ययुं जी, लागो दव असराज ॥ सूकां नीलां तिहां बालतो जी, करतो जालो जाल ॥ कु० ॥ ६ ॥ नीयडो जब में निरखीयो जी, बालक आायो मोह || उपर पांख पसारीने जी, मनमें धरीयो बोह ॥ कु० ॥ ७ ॥ कंत जणी में जाखीयुं जी, आपो जल तुमे जाय ॥ तरु सिंच्यां
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(१३) सहुने हुशे जी, जीवन एह उपाय ॥ कु० ॥७॥ पाणी मिष पापी गयो जी, मुज नहीं पूबी सार ॥ इंमां बलीयां अग्निमें जी, नाणी महेर लगार ॥कु० ॥ ए॥ संतति कारण सामिणि जी, में होमी निज काय ॥ मरण तणे मेले करी जी, कंत गयो निरमाय ॥ कु० ॥ १० ॥ जातिस्मरणे जाणीयो जी, पूरव जव विरतंत ॥ बलतां बालक मूकीने जी, नासी गयो मुज कंत ॥ कु० ॥ ११॥ तिण वेषे में मारीया जी, हणीया पुरुष अनेक ॥ देवी कहे की, किस्युं जी, तुजमें नहींय विवेक ॥ कु० ॥१॥तुज कंते कीधुं जिस्यु जी,श्रवर न पूजे होय ॥तुज कारण तिणे तनु दह्योजी, हिये विचारी जोय ॥कु०॥१३॥ सर्व गाथा ॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ शक्ति मुखेधी सांजली, मात न जाणी वात ॥ श्रणजाण्या में पापिणी, नरनी कीधी घात ॥१॥ आज पड़ी मारीश नहीं, चूके तोरा पाय ॥ जगते जोग उमादीने, कुमरी स्थानक जाय॥२॥धसमस मंत्री उठीयो, देवी बुकिनिधान ॥ हमहम तव देखी हसी, ए नर नहीं समान॥३॥ कर जोमी मंत्री कहे, खमजो अवगुण मात ॥ तुं त्रिपुरा तुं तोतला, त्रिहुं
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(१४) जुवने विख्यात ॥ ४॥ तुं शीकोतर सरसती, सारे सघलां काज ॥ कोइल पर्वत जागती, देवी तुं हिंगलाज ॥५॥ जालंधर ज्वालामुखी, श्राबुतुं अंबान ॥ उकोणी हरसिक नमुं, राणा जाणे राज॥६॥हुंथपराधी ताहरो, स्तुति कीधी कर जोम ॥ खामिकाज साहस कीयो, पूरो मनना कोम ॥७॥ ॥ ढाल सातमी ॥ राग आशासिंधु ॥ धर्म हैये धरो ॥ अथवा ॥ वंध्याचलनो हाथीयो रे ॥ ए देशी॥
॥णे वचने तूठी सुरी रे, मागो वर अनिराम॥ जे मागीश ते श्रापशुं रे, सारीश तुजनो कामो रे॥ पुण्य सदा फले, पुण्ये वंबित होय रे ॥ पु० ॥१॥ मुहतो कर जोमी कहे रे, आपो करीय पसाय ॥ विविध चित्राम करुं जला रे, ए वर द्यो मुजमायो रे॥ पु० ॥२॥ शक्ति एक दीधी तिहां रे, जा वत्स करशुं काम ॥ देवी चरण नमी करी रे, आव्यो श्रापण गमो रे ॥ पु० ॥३॥ मनकेसरीमुहतो नमे रे, नरवाहनना पाय॥ आज पठी नवि मारशे रे, देवी तणे सुपसायो रे ॥ पु०॥४॥ पूर्व वात मांगी कही रे, हरख्यो मनमें नरेश ॥ चिंता हवे स्वामी टली रे, वंडित काज करेशो रे ॥ पुण्॥ ५ ॥ चितारो मंत्री
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(१५) हुवो रे, करे जला चित्राम ॥ क्रय विक्रय चहुटे करे रे, प्रसिद्ध हुई सहु गामो रे ॥ पु०॥६॥ कुमरी दासी एकदा रे, चहुटे पुहती काम ॥ विविध रूप दीगं तिहां रे, मूल्ये लीयां चित्रामो रे॥ पु०॥७॥कुमरी पासे लश् ग रे, दीधां कुमरी हाथ ॥ हरखी हंसावलि तिहां रे, लेइ आवो ज साथो रे ॥ पु०॥७॥ कुमरी वचन मानी करी रे, पहुती तिहां तत्काल ॥ उठ हो यहांथी श्रादरे रे, काम परहां सह टालो रे॥ पु०॥ए॥हुं श्रावी तुज तेमवा रे, श्रावो कुमरी पास ॥ प्रसिकि घणी तुज सांजली रे, पूरेश्यां तुज श्राशो रे ॥ पु० ॥१०॥ केश्घोमा के हाथीया रे, केलीया आराम ॥ सिंह श्रने सावज घणा रे, लीयां इस्यां चित्रामो रे ॥ पु० ॥ ११ ॥ कुमरी आगे मूकीयां रे, कुमरी हुश् उदास ॥ विविध रूप करो श्हां रे, सोहे जिम आवासो रे ॥पु० ॥ १२॥ सर्व गाथा ॥१६॥
॥दोहा॥ ॥ मनकेसरी मान्युं वचन, कीधो लाख पसाय ॥ ते वेश्ने आवीयो, प्रणमे नरवर पाय ॥ १॥ राय श्रादेश लही करी, मांड्युं करवा काम ॥ कुमरी थापे श्रावीने, देखाडे निज गम ॥२॥ नल राजा जिम
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नीकट्या, हारी सघj राज ॥ दमयंती साथे हुश्, वन मूकी महाराज ॥३॥ वली लंका गढ मांगीयो, रावण की, रूप॥ नव ग्रह पाये सेवता,की, श्स्युं खरूप॥४॥ ॥ ढाल बाग्मी ॥ देशी ललनानी ॥धमाल रागे ॥ __॥ ललना हो रामरूप कीधुं जलु, कीधो सीता पास ॥ ललना हो लखमण बंधव ते कीयो, कीधो वली वनवास ॥१॥ल ॥ सोवन मृग कीधो जलो, सीता वांसे धाय ॥ ल० ॥ जोगी सरूप कीयो जुन, रावण हरि ले जाय ॥२॥ल०॥ वांसे हनुमंत वांदरू, लंका बाली हाथ ॥ल०॥ समुज पाज बांधी तिणे, लंका कीधी अनाथ ॥३॥ ल०॥ रामचंद्र रावण थकी,घर पाणी निज सीत॥ल॥धीज कीयो सीता सती, प्रसरी दह दिशि कित्त ॥४॥ ल० ॥ पांडवनारी अपहरी, सुती जुवन ममारि ॥ लम् ॥ पद्मोत्तर तिहां पापीए, आणी जाश् मुरारि ॥५॥ लम् ॥ श्रवण रूप कीयो सारिखो, मात पिता बेउ अंध ॥ ल॥ पाणी जरतां पापीए, दशरथ हणीयो कंध ॥६॥ ल०॥ कृष्णरूप कीy नटुं, जिण विध हणीयो कंस ॥ ल० ॥ जीवजसा कंत तातनो, जिणे खोया बेहु वंश ॥७॥ ल०॥ लखीया
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(१७) वन वामी घणां, लखीयां तरु वर आंब ॥ ल॥ समुह सरोवर वावमी, मांड्यां नगर ने गाम ॥ लण ॥॥नाखर लखीया नातशं, लखीयां तेतर मोर ॥ल॥लखीयां सारस सूअमा, लखीयां चं चकोर ॥ल॥ए॥ सरप सावज मांड्या घणा, सांवर रोज शीयाल॥लागौ गज वृषन सुदामणा, वानर देता फाल ॥ ल ॥ १० ॥ मनकेसरी मुहते कीयो, फल्यो फूल्यो सहकार॥ल॥मालो पण मांड्यो तिहां,जोजो कर्म प्रकार ॥ ल० ॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ १४१ ॥
॥दोहा॥ ॥बे बचमां उपर धयां, मात पिता बे पास ॥ दावानल लागो दहन, सघलो कीयो प्रकाश ॥१॥ पाणी लेवा पंखीयो, पहोतो सरवर ठाम ॥ नारी बचमां सहु बल्यां, पाडो आव्यो ताम॥२॥देखीने मुःख उपy, ऊपाणो तत्काल ॥ मोहवशे मांहे पड्यो, काल कीयो तत्काल ॥३॥णविध चित्रज चितस्यो, पहोतो कुमरी पास ॥ मात मदेल पूरो हुवो, दीधी तसु साबाश ॥४॥चित्रहारने चोंपशु, दीधो बहुत पसाय ॥ धन लेश्ने आवीयो, नरवर प्रणमे पाय ॥५॥
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( १८ ) ॥ ढाल नवमी ॥ ॥ कर्मविटंबणा ॥ ए देशी ॥
॥ कुमरी मंदिर निरखती रे हां, यागे दीगे तिहां सहकार ॥ कर्मविटंबणा ॥ कां मुजने कारणे रे हां, कंपाणो जरतार ॥ क० ॥ १॥ है ! है ! जोवो जोवो रे हां, जोबन खावा धाय ॥ क० ॥ कंता तें साहस कीयो रे हां, हैडे दुःख न खमाय ॥ क० ॥ २ ॥ कंता तुजने कारणे रे हां, में कस्यां पाप अघोर ॥ क० ॥ पुरुष विपाश्या पापिणी रे हां, एम करती बहुला सोर ॥ क० ॥ ३ ॥ है ! है ! कंता तें कीधो जिस्यो रे हां, तेहवो मुज नवि थाय ॥ क० ॥ कंता करण तुं थयो रे हां, तें होमी निज काय ॥ क० ॥ ४ ॥ श्रापण यापे जाणयो रे हां, पण कंत न जाणे वात ॥ क० ॥ पोपट पंखी कारणे रे दां, हुं करशुं श्रातमघात ॥ क० ॥ ५ ॥ कंता तुं किदां उपनो रे हां, सो जो जाएं ठाम ॥ क० ॥ तो तुजने यावी मिलुं रे हां, थापुं करीने सामी ॥ ० ॥ ६ ॥ कंत विना हुं कामिनी रे हां, कां सरजी किरतार ॥ क० ॥ देव विछोहो कां दीयो रे हां, कृत उपर दीयो खार ॥ क० ॥ ७ ॥ इम विलाप करती घणुं रे हां, मन मांहे अति डुवाय ॥ क० ॥
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(१७) रूप देखी धरणी ढली रे हां,क्षण मांहे मूर्जाय॥ क० ॥॥दासी सहु दोमी मिली रेहां, ढाले शीतल वाय ॥ क० ॥ केश चंदन तनु घसे रे हां, के नूप पूरण जाय॥क०॥ए॥पूज्या जोषी पंमिता रे हां, देवरावे शनिदान ॥क०॥ ऊंट घोमा खर मंजीया रे हां, कुमरीने कंतनुं ध्यान ॥क०॥१०॥एक कहे पाणी गूगलां रे हां,नाके दीजे नास॥क०॥एक कदे सहु पागं रहो रे हां, ढुवात कहुँ विमास ॥क० ॥११॥ चित्रहारे महोल चितस्यो रे हां, को कीधो मंत्र ने तंत्र ॥ क० ॥ ए चित्रकार माकणो रे हां, कुमरी बली एकंत ॥क०॥१॥वात जणावो रायने रे हां, तेमावे तत्काल ॥क०॥कूटी पीटी तेहने रेहां,आणो श्हांकणे जाल ॥क॥१३॥ जोवणने दासी फिरी रे हां, जोवंती चित्रकार॥कादीगे मालणमंदिरे रे हां,खेंची काढ्यो बार ॥क०॥१५॥आज अदिन थारो बापमा रे हां, ते की, नूंडं काम ॥ क० ॥ के राजा शूली दीये रे हां, के मारे तुजने गम ॥क०॥१५॥गलबो देश हाथ\ रे हां, केश देता पूठे मूठ॥०॥हीण वचन मुख नाखता रे हां, पापी तुं श्हांधी उठ ॥ कण ॥१६॥ मनकेसरी मन चिंतवे रे हां, रुडं कीधुं हुं
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(२०) थाय ॥ क०॥ मानो वचन | माहलं रे हां, कुमरीपे ले जाय ॥क०॥१७॥मानी वात मांदेलीयो रे हां, सुणजो सहुको लोक ॥ क०॥काने मंत्र कही करी रे हां, कुमरीनो नांगँ शोक ॥क॥१॥लोक सहु पागं कीयां रे हां, कुमरी पडी अचेत ॥ कण ॥ पूरव वात मांडी कही रे हां, कुमरी हुश् सचेत ॥ क० ॥१॥ हंसावलि हरखित थश्रे हां, तें मेली पियुनी वात ॥क०॥ कहे पियु माहरो पंखीयो रे हां, किहां अवतरीयो तात ॥ कण्॥२०॥नाण तणे मेले करी रे हां, हुं जाणुं बिहुंनी वात ॥ क० ॥ पुरपयगणे परगमो रे हां, शालिवाहन राय विख्यात ॥ कण्॥१॥जादव वंशे परगडो रे हां, नरवाहन तेहनो पुत ॥ कम् ॥ चतुरंग दलबल जेहने रे हां, देश तिणे आण्यो सुत ॥०॥२॥त्रणसें साठ अंतेउरी रे हां,रतिरूपे रंज समान ॥ क० ॥ बावन वीर सेवा करे रे हां, जसु सेवे मंत्री प्रधान ॥क० ॥२३॥ हंसावलि हर्षित हुश्रेहां, सुणी कंत तणो अवदात ॥क० ॥ जो मुज कंतो मेलवे रे हां, तो गुण मानुं हुं तात ॥०॥ २४॥ नरवाहन राय मेलशुं रे हां, तुं मान विशवावीश ॥ क० ॥ परणाईं परगटपणे रे हां, जो करशे जगदीश
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॥ क० ॥ २५ ॥ मंत्री वली बोले इस्युं रे हां, अलगो पुरपैठण ॥ क० ॥ विच समुद्र विच मुं घणी रे हां, केम आवे इहां जान ॥ क० ॥ २६ ॥ राजाने ढुं आशुं रे हां, एकाकी इसे ठाम ॥ क० ॥ एक मासने यांतरे रे दां, सारीश तुजनुं काम ॥ क० ॥ २७ ॥ धन दीधुं कुमरी घणुं रे हां, लीधुं करीय प्रणाम || क० ॥ स्वयंवरमंरुप मांगजो रे हां, वांसे करजो थें काम ॥ क० ॥ २७ ॥ मागी शीख सनेदशुं रे हां, बिहुं मन आनंदपूर || क० ॥ ढाल हुइ दशमी इहां रे हां, कहे श्री जिनोदय सूरि ॥ क० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ १७५ ॥
॥ दोहा ॥
॥ राजा पासे आवीयो, जिहां रहेवानुं गेह ॥ तुज कुमरी परणावशुं, मास दिवसने बेह ॥ १ ॥ गुप्तपणे रहेजो इहां, को नवि जाणे वात ॥ मास दिवस पूरो हुवे, होशे तिहां विख्यात ॥ २ ॥ कुमरी कहायो तातने, तेडावो राजान ॥ संवरमंरुप मांड, देजो अमने मान ॥ ३ ॥ राजा मन आनंद दुर्द, कुमरी वरनी चूंप ॥ ठाम गमयी तेमीया, वडा मा तिहां नूप ॥ ४ ॥ संवरमंमपे सहु मिल्या, रुद्धिवंत राजान
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(२५) ॥ हयवर गयवर हींसता, लोक तणा नहीं ज्ञान ॥५॥ सत्यावीश दिन श्म गया, कुमरी जोवे वाट॥ जल विण मही टलवले, खिण खिण करे उच्चाट ॥६॥
॥ ढाल दशमी ॥ ॥ राग खंजायती ॥ लाखा फुलाणीना
गीतनी देशी॥ ॥ कुमरी मन उहवाय, अणविचाखु हो कंता में कीयुं ॥ वरस समो दिन जाय, उःखे नहीं फाटे हो कंता मुज हियुं ॥१॥ खिण बाहिर खिण मांहि, गोंख चढी हो कुमरी वलवले ॥ सो धन्य दिन ने मास, पूरव जवनो हो कंतो मुज श्रावी मिले॥२॥ फट जूंडा चित्रकार, बोल न पाल्यो हो किम तें ताहरो ॥लोज धरी मन मांहि, धन लीधो हो कपटे तें माहरो॥३॥अवधि कही एक मास, जश्ने हो कुंवर हुँ थाणुं श्हां ॥हजी शे न श्राव्यो तेह, मुज कारण हो राय आवे किहां॥४॥तेमाव्या सहु राय, संवरा हो मंगप सहु श्रावी मल्या॥ बिहुँ दिन पहिली जाय, दीगे हो चित्रहारो कुमरी पुःख टव्यां ॥५॥कहे चिताराने वात, नरवाहन राजा हो कब श्हां श्रावशे ॥ आयो मोरी मात, दीग हो राजाने सहुए वधा
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( २३ ) वशे ॥ ६ ॥ सांजल तुं चित्रकार, राजाने हो पासे रहेजे टुकडो ॥ जिम घालुं गले माल, राजाने हो जाएं सहु मां वडो ॥ ७ ॥ सदु मनावी वात, कुमरी हो यावी पणे मंदिरे ॥ पढेरी सोल शृंगार, राजा हवे हो बहु व करे ॥ ८ ॥ मलीया घणा नरिंद, हंसावलि श्रावे हो कुमरी हरखशुं ॥ नरवाहन तिहां राय, कुमरी हो जाये कंतो निरखशुं ॥ ए ॥ वरमाला लेइ हाथ, जोतां हो चितारो नयणे निरखीयो ॥ माला घाली कंठ, राजा ने राणी हो मनमां दरखीयां ॥ १० ॥ नगरे दुई उत्साद, परणी हो हंसावलि राजा हेलमें ॥ जीमाड्या सहु राय, राजापे हो राणी बे पहुतां महेलमें ॥ ११ ॥ दीधा बहुला देश, दीधा हो राजाने दयवर हसता ॥ दीधा गयवर थाट, धवला हो ऐरावण सरिखा दीसता ॥ १२ ॥ दीघां दासी ने दास, दीधी हो राजाने सखरी यति घणी ॥ मागे शीख सनेह, चाव्या हो राजेसर आपणी मुंइ जणी ॥ १३ ॥ जले दिवसे जले वार, घ्याया हो राजेसर परणी नारीने ॥ घुरीया निशाणे घाव, खायो जो मंत्री श्वर काम समारीने ॥ १४ ॥ सर्व गाथा ॥ १०५ ॥
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(२४)
॥दोहा॥ ॥ मनकेसरी मुहता जिस्या, पूरा हुवे प्रधान ॥ राजानी चिंता हरे, मेले नवे निधान ॥१॥बुझिमंत पासे हुवे, सारे संघलां काज ॥ नरवाहन मंत्री जणी, ये एक देश- राज॥॥राज धुरंधर रायने, मुदता समो नहीं कोय ॥ काज समारे स्वामीनां, जो बुधि बहुली होय ॥३॥ नरवाहन राजा सदा, पूरव पुण्य पसाय ॥ राणीशुं सुख जोगवे, चिंता नहीं मन काय ॥४॥ पहिलो खंड पूरो हुवो, कहे श्रीजिनो. दय सूरि।नणे गुणे श्रवणे सुणे, तिण घर आनंदपूर ॥५॥सर्व गाथा॥२०॥इति श्रीहंसवाप्रबंधे रायमंत्रिपरदेशगमनमंत्रिकृतबुझिचित्रकारकेलवणहंसावलिपाणिग्रहणनामा प्रथमः खंडः संपूर्णः ॥१॥
॥ खमं बीजो॥
॥दोहा॥ ॥ हिव बीजो खंड बोलशु, श्रीजयतिलक पसाय॥ दहकर पूरे करे, तुसे सरसतीमाय ॥१॥हंसावलि राणी समी, नगर नहीं को नारी॥दान शील तप नाव गुण, जाणे सहुअ विचार॥२॥ हंसावलि राणी तणे, गर्न हुवा बे बाल ॥केलिगर्जतिण सारिखा, अंगेअति
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( 24 )
सुकुमाल ॥ ३ ॥ जन्मकाल राजा दिवे, लेइ दासी साथ ॥ बे बालक ले करी, चाल्यो पृथ्वीनाथ ॥ ४ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥ राग गोमी ॥ मन जमरानी देशी ॥ ॥ पुत्र बेइ निज निरखतो, राय मन हरख्यो रे ॥ पहुतो वह मजार, राय मन हरख्यो रे ॥ रूख तले लेइ मूकीया ॥ रा० ॥ बोल्या देव प्रकार | रा० ॥ १ ॥ ए बालक रुडा तमे ॥ रा० ॥ राखो रुडी रीत ॥रा० ॥ ए बालक सघले सदा ॥ रा० ॥ दश दिशि हुशे विख्यात ॥ रा० ॥ २ ॥ गुप्तपणे ए राखजो ॥ रा० ॥ किणही दाय उपाय ॥ रा० ॥ बेइ बालक लेइने || रा० ॥ श्रपणे मंदिर जाय ॥ रा० ॥ ३ ॥ राणीने आणी दीया ॥ रा० ॥ कीधां जन्मनां काज ॥ रा० ॥ हंसराज नाम थापीयुं ॥ रा० ॥ वडो जाइ वत्सराज ॥रा० ॥ ४ ॥ मनकेसरी राय तेमीयो ॥ रा० ॥ श्राव्यो बुद्धिनिधान ॥ रा० ॥ जतने बालक राखवा ॥ रा० ॥ जंपे इम राजान ॥ रा० ॥ ५ ॥ बावन वीर बुद्धि आगला ॥ रा० ॥ तेहनो नहीं वेसास ॥ रा० ॥ बिहुं कुमरने जाशे ॥ रा० ॥ तो करशेज विनाश ॥ रा० ॥ ६ ॥ मनकेसरी मुहतो कहे ॥ रा० ॥ करशुं कुमरने खेम ॥ रा० ॥ परदेशे एने राखशुं ॥ रा० ॥
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( ३६ ) रुमी परे राय एम ॥रा० ॥ ७ ॥ शुभ मुहूर्त्त शुन वासरे ॥ रा० ॥ पुरोहित पुत्र दीयो साथ ॥ रा० ॥ पांच धाइ प्रतिपालजो ॥ रा० ॥ लेजो हाथो हाथ ॥ रा० ॥ ८ ॥ साथै संबल घालीयां ॥ रा० ॥ घाल्यां बहुलां दाम || रा० ॥ रहेतां को जाऐ नहीं ॥ रा० ॥ रहेजो तेवे गम ॥रा० ॥ ए ॥ शीखामण देश करी ॥ रा०॥ ले चाल्या परदेश || रा० ॥ नगर जलुं देखी करी ॥रा० ॥ कीधो तिहां प्रवेश ॥ रा० ॥ १० ॥ शुन नगरे रहेतां थका ॥ रा० ॥ वर्ष हुआ जव पांच ॥ रा० ॥ बेदु जणावण मांगीया ॥ रा० ॥ ते न करे खल खांच ॥रा० ॥ ११ ॥ पुरुष तणी बहोंत्तर कला ॥ रा० ॥ शीख्या थोडे काल ॥ रा० ॥ नारी तणी चोसठ कला ॥ रा० ॥ वली शीखी रागमाल ॥ रा० ॥ १२ ॥ शस्त्र तणी शीखी कला ॥ रा० ॥ शीखी सघली नाख ॥ रा० ॥ पनर वर्ष पूरा हुआं ॥ रा० ॥ सघलां केरी शाख ॥ ० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ २९७ ॥
॥ ढाल बीजी ॥
॥ राग मारु ॥ नल नगरीथी नीसस्यो रे राय ॥ ए देशी ॥
॥ जिए दिन कुमर वे मूकीया रे राय,
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राणी हुइ
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(२७) निराश ॥ नूख तृषा सहु विसरी रे राय, कुमर न दे रे पास ॥१॥ससनेही राय, एक घमीरे ब मास॥ बिहुँ कुमर विण किम करुं रे राय, दी। पूगे आश ॥ वालेसर राय, एक घमी रे मास ॥ ए आंकणी ॥२॥ तेमावो पुत्र बे माहरा रे राय,श्राणो मुजनी रे पास ॥ पुत्र न देखें जां लगे रे राय, तां लगे रहुँ रे जदास ॥स॥३॥ जिण दिन नयणे निर सो मुज दिहाडो धन्य ॥ राय कहे राणी जणी रे राय, कर रुडं तुं मन्न॥स॥४॥राणीने धीरज दीयो रे राय, मूक्या तेमवा ठेठ ॥ मछी जिम ते टलवले रे राय, दोहिनुं जगमें पेट ॥ स० ॥ ५॥पनर वरष पूरी हुवां रे राय, आया पुरपेगण ॥ दीधी पुरोहित वधामणी रे राय, बेग सहु दीवान ॥स०॥६॥ महोत्सव करी मांहे लीया रे राय, घुस्या निशाने घाव ॥ घर घर गूमी उबले रे राय, प्रणमी तातना पाय ॥ स० ॥७॥ सहु जनने अचरिज हुवो रे राय, कदही न सुणीया एह ॥ ए अलगा किम मूकीया रे राय, एवी नेहनी देह ॥स॥७॥ खोले बेहु बेसामीया रे राय, पूढे पंमित वात ॥ लगन जोवो थे रुपडो रे राय, जाय मिले निज मात ॥
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( २८ )
स० ॥ ए ॥ जोयां लगन मिली ज्योतिषी रे राय, बोले सहु विचार ॥ विहाण सरिखो को नहीं रे राय, श्राखे वरष मकार ॥ स० ॥ १० ॥ तत्ति वचन सहुए कीयो रे राय, मान्यो जोषीनो बोल ॥ इण दिवस मलीया थकां रे राय, होशे सही रंगरोल ॥ स० ॥ ११ ॥ सहुको जन थानक गयां रे राय, कीधो भूप पसाय ॥ रतन दको ते आपीयो रे राय, उलट अंग न माय ॥ स० ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ २२ ॥
॥ दोहा ॥
॥ राय पासे जोजन कीयो, बोले बावन वीर ॥ जाशुं नदीए नरबदा, जोस्यां जोर शरीर ॥ १ ॥ दमो लेने वालीया, मलीया नरना थाट ॥ की मी नगरांनी परे, वहेता मारग वाट ॥ २ ॥ हंस वह एक दिशे, श्क दिशि बावन वीर ॥ जूजे मूजे धसमसे, नदी नरबदा तीर ॥ ३ ॥ जे जण श्रगल हारशे, सो पशे सहु पाय | लहु वमाइ को नहीं, शंका म करो कांय ॥ ४ ॥ मेघनाद सहुमें वमो, बीजा नामी त्रोम ॥ काल जयंकर मुंजोलो, शंखचूम शुलिमोम ॥ ५ ॥ जीम जयंकर पांडुरो, बमनल ने विखमोम ॥ गोरको गुणवंतो वली, सबलो संकलतोम ॥ ६ ॥ नगरफाम धरनि
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(ए) धरम, सकलिगल हनुमंत ॥ जलयंत्रधिगुरु रुधिर वष, कांजशु कपूरदंत ॥७॥नरमोम लंगो गुणगुहिर, अकलंक धिंगम मास ॥ भैरव नूतशिला जलो, कालरूप सुखवास ॥७॥ लोहिताद ने बाबरो, जस बल अधिक शरीर ॥ कालपीठ ने जंगमो, गरगतीयो धरधीर॥ ए ॥ अग्निजाल ने आगीयो, चाचरीयो चोमुख ॥लोहखरो ने नूचरो, देतो दादर फुःख ॥१॥ शक्तिकुमर ते सामटा, सघले मानी हार ॥ वीर सहु मन खलजल्या, हुर्ड किस्यो प्रकार ॥ ११ ॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥राग सिंधू ॥ चरणाली चामुंमा रण चढे ॥ए देशी॥
वीर सहु मन चिंतवे, ए हुवा आपण सालो रे॥पांचे दिन जातां थका, श्हांथी आपणो कालो रे॥वी०॥१॥ बावन वीरे शुं कीयो, पटुता देवी पासो रे॥ हम सेवक सहु ताहरा, पूर हमारी श्रासो रे॥वि०॥२॥ हंसावलि राणी तणा, बेहु हुश्रा अंगजातो रे॥ बल बुझि गुण आगला,हुवा सहु विख्यातो रे॥वी ॥३॥ बे बालकनो वध करो, के करो घणा सचिंतो रे ॥ देशवटो पूरे दीयो, थमने करो निचिंतो रे ॥ वी०॥४॥ शक्ति कहे तुमे सांजलो,
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(३०) माख्या न मरे मर्मो रे ॥ एउनुं खंडु नवि हुवे, पोते पूरो धर्मो रे॥वी॥५॥चिंतातुर करशुंघणा, चूकावू श्ण गमो रे ॥मात तातथी चूक, शक्ति सही शुन नामो रे॥वी०॥६॥ण वचने सहु सुखी हुआ, पद्धता रामत काजो रे ॥ शक्ति देवी तिहां शुंकीयो, पहुती जिहां हंसराजो रे॥ वी०॥७॥ दमो उबाल्यो दावजु, देवी अदृष्ट ते कीधो रे ॥ बे बांधव जोता फिरे, एको काम न सीधो रे ॥ वी० ॥७॥ गम गम जोयो घणो, किहांही न लाधी वातो रे॥ वीर कहे वत्सराजने, कुण उत्तर देशां तातो रे ॥वी ॥ए॥ एक जणे वत्स सांजलो, दमो गयो राजलोको रे ॥ तिहां जाश् श्राणो तुमे, जिम जांजे मन शोको रे॥ वी०॥ १० ॥ हंस नणे वत्सराजने, यो मुजने श्रादेशो रे ॥ तुम प्रसादे हुं आणशुं, करशुं काम विशेषो रे ॥ वी० ॥ ११॥ सुण नाश् मुज विनति, पहोंचो लेवा काजो रे ॥ विलंब तिहां करवो नहीं, शीख दीये वत्सराजो रे ॥ वी० ॥ १२ ॥ त्रणसें साठ अंतेजरी, आपणी तिहां डे मातो रे ॥ मान वचन तुं माहरूं, म करे कांश तुं वातो रे ॥ वी० ॥ १३॥ सर्व गाथा ॥ २५३ ॥
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(३१)
॥दोहा॥ - ॥ मागी शीख सनेहरुं, पहोतो तिहां कुमार ॥ राजलोक राजा तणो, उनो पोलि उवार ॥१॥ तेहवे दासी नीकली, दीगे पुरुष प्रधान ॥ राणीने श्रावी कहे, द्यो एक अमने मान॥२॥श्रावो जुवो आंगणे, कुण नर उनो बार ॥ राणी नजर नीहालीयो, रीस धरी तेणी वार ॥३॥ रोष गरी राणी कहे, नरवाहन मुज स्वामी ॥जो उन्नो तुज जोशशे,सजी ते मारशे गम ॥४॥छारायत श्म विनवे, तुम सरिखो जो जो॥के नाणेज जतीजमो, के बंधव बेटो होश ॥५॥ राणी वातज सांजली, आयो पुत्र ने आज ॥ दासी वचनज मानीयुं, के हंस के वत्सराज ॥६॥
॥ ढाल चोथी॥ ॥राग सोरठ ॥ देशी बयत्तनी ॥ राजा लावे
बलजज नार ॥ ए देशी॥ ॥ राणीने करे रे जहार, राणी हरखी तिण वार ॥ हंसावलि लीधो हरखे, वार वार पुत्रपे निरखे ॥१॥ मनरंगे कुमर वधाया, जली हो तुमे यहां श्राया ॥ पूजे वत्सराजनी वात, नेटशे ते विहाणमें मात ॥२॥ श्राज दिवस अडे माय जूंमो, पण
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(३२) विहाणे अने दिन रुडो॥ तुं कांश मिल्यो वत्स आज, कुमुहूर्ते विणसे काज ॥३॥ मा नेव्यां आणंद थाय, मा नेव्यां पातक जाय ॥ मात श्रायो बुं हुं काज, श्म जंपे जे हंसराज ॥४॥ सवा कोमी दडो यहां आयो, तिणे वांसे मा हुं धायो॥ हवे शीख दीयो मुज मात्र, दमो जो हांथी जा॥५॥ते दडो उरहो जो सीजे, वत्सराज जाश्ने दीजे ॥श्म शीख दीधी तिहां माय, जननीने लागो पाय॥६॥ माता मंदिरे जाय, दमो तिम तिम आघो धाय ॥ ते तिहां किहां नहीं पायो, जोजोश्ने पाबो श्रायो॥७॥ हंसराज हुवो उदास, एक मंदिर दीतुं पास ॥ विविध तिहां वाजां वाजे, जेणे करी अंबर गाजे॥७॥सामी एक श्रावी दासी, हंसराज पूरे विमासी ॥ कहे किणर्नु बे ए गेह, मुजने नाखो सवि तेह ॥ ए॥ तव दासी बोली श्राम, लीलावती राणी नाम ॥ राजानुं ने बहु मान, श्ण घर शछि तणुं नहीं ज्ञान ॥१०॥ तेहनो ए ले आवास, सहु वात कहे श्म दास ॥ गयो तिहां राजकुंमार,राणीने करे जुहार॥९॥राणीने कुमरे निरखी, इंशाणी अपर सरखी ॥राणी पण दीगे कुमार, एहवो नर नहीं संसार ॥ १२ ॥ एहशुं जोगवो
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(३३) ये जोग, जो पुण्य मले संयोग ॥ राणी कीधा सोले शणगार, श्राव्या जिहां हंसकुमार ॥ १३॥ आवीने कुमरने निरखे, हावनाव करे मन हरखे॥मुख चंद्रकला जिम सोहे, नर नारी तणां मन मोहे ॥१४॥ जुजदंग जिस्या जंकाली, सोहे सोल वरसनी बाली॥ श्रांखमली अति अणीयाली, काल जिम कीकी काली ॥१५॥सोहे कीर जिसी मुख नासा,जलां वस्त्र सुगंध सुवासा ॥ काने बिहुँ कुंमल दीपे, जाणे शशी सूरज कीपे॥१६॥ लीलावती चाले ठमके, पाय नेचर घूघर घमके ॥ कटिमेखला घूघरीयाली, सहीयरशुं देती ताली ॥ १७ ॥ कंठे पहेस्यो नवसर हार, राणी रति तणे अनुहार ॥ करकंकण मोती जडीयां, जाणे
आप विधाता घमीयां ॥ १७ ॥ कवि उपमा केहवी श्राखे,राणी हवे किस्युं नाखे॥तो\मोरी प्रीति अपार, ए जाणे परमेसर सार ॥ १ए॥ सर्व गाथा ॥ २७॥
॥दोहा॥ ॥ हंस दीठे हर खित हुश, नवि मूके ते गम ॥ मुख निशासा मूकती, किस्युं न करे काम ॥ १॥ काम थकी सीता हरी, रावण ले गयो लंक ॥ दश शिर रावण दीयां, काम तणा ए वंक ॥२॥ कामवशे
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(३४) औपदी हरी, पांचे पांडव नार ॥ कृष्णबले आणी सती, दोहिलो काम संसार ॥३॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ सीताने संदेशो रामजीए मोकल्यो रे ॥ अथवा ॥ निंदा म करजो कोश्नी पारकी रे ॥ ए देशी ॥
॥ हंसकुमर राणीने कहे रे, में कीधो तुमने जुहार रे॥ मुज श्राशीष न दीधी तुमे रे, कहो मुज किस्यो प्रकार रे ॥ हं० ॥१॥ बोरु कुबोरु हुवे सदा रे, मा बाप न धरे रीस रे ॥ अणख आया माटे शुं करे रे, माय बाप धूणे शीश रे ॥ हं० ॥२॥ कार लोपी कहे कामिनी रे, न गणे सगपण लाज रे ॥ रीस नहीं कांशमाहरे रे, माहरे ने तुजणुं काज रे ॥ हं० ॥३॥ सगो पुत्र नहीं तुं माहरो रे, हुं तुज शोकी मात रे ॥ण सगपण कांहिं नहीं रे, अंतर दिन ने रात रे ॥ हं ॥४॥ हंस नणे हुं श्रावीयो रे, रतन दडाने काम रे ॥ राजलोक में जोश्यो रे, फिरीयो गमो गम रे ॥ हं० ॥५॥ तेह दमो गयो हाथथी रे, तेहनी ने मुज चिंत रे॥ राणी कहे ते आपशुं रे, जो मुज धरशो प्रीत रे॥ हंग॥६॥राणी दमो देखाडीयो रे, तो श्रापुं हुं तुजरे ॥ महारी वात
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(३५) मानो खरी रे, मति लोपे तुं मुज रे ॥ हं० ॥ ७॥ जंघा मांस मीतुं घणुं रे, कां आपणपे न खवाय रे॥ मात विचारी जुवो तुमे रे, ए काम मुजथी न थाय रे ॥ हं०॥७॥ कुमर कहे कामी जिको रे, ते थाय सदा अंध रे ॥ हित युगति जाणे नहीं रे, न लहे मर्मनो बंध रे ॥ हं० ॥ ए ॥ सर्व गाथा ॥२१॥
॥दोहा॥ ॥ लीलावती राणी जणे, अंतर नहीं को देह ॥ बाप बेटी सासु वढू, नणंद नाणेजी तेह ॥१॥ कामविकारे कामिनी, न गणे अंतर कोय ॥बहेन जा माता सुता, चूकावे नर सोय ॥२॥ वेदसार ब्राह्मण तणी, कामबुब्धी घर नार ॥ वेदविचक्षण पुत्रशुं, चूकी करे संसार ॥३॥ आदिनाथ अरि. हंतजी, सगी बहेन घरवास ॥ रहनेमि राजीमती, रहीयां मनहिं विमास ॥४॥ पाप नहीं को कुमरजी, मोशुं धर तुं राग ॥ मान वचन तुं माहरूं, जो होय पोते जाग ॥५॥
॥ढाल बही॥ ॥ राग केदारो ॥ सोलमो शांति जिनवर नमुं॥ अथवा ॥ स्वामी सीमंधर विनति ॥ ए देशी ॥
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( ३६ ) ताहरु रूप देखी करी, उपनो मुज मन मोह रे ॥ दीन वचन मुख जाखती, लोचन जरी मुख जोह रे || ता० ॥ १ ॥ जलचर जीव जिम जल विना, मरण लहे ततकाल रे ॥ तिम तुज विरहे हुं कुली, कामडुःख परहुं तुं टाल रे ॥ ता० ॥ २ ॥ नमन करी खोलो पाथरे, नयणे न खंडे ( राणी ) धार रे ॥ माहरे जीवन तुं सही, कर दवे मुज ती सार रे ॥ ता० ॥ ३ ॥ वचन मारुं तुमे मानशो, श्रापशुं तुज जी राज रे ॥ कुमर ए वचन सुणी कोपीयो, बोलीयो तव हंसराज रे ॥ ता० ॥ ४ ॥ इण जवे मात तुं माहरी, मुज थकी किम पडे वंश रे ॥ समुद्र मर्यादाथी जो मिटे, अनि करे जो शशंक रे ॥ ता० ॥ ५ ॥ पश्चिम सूर जो उगमे, धरणी रसातल जाय रे ॥ सायर मीतुं जो जल दुवे, तो मुज काम न थाय रे ॥ ता० ॥ ६ ॥ कुमर जी कहे मानिनी, मान तुं माहरी वात रे ॥ तुठीय सुख तुज पूरशुं, रूठीय करशुं तुज घात रे ॥ ता० ॥ ७ ॥ कुमर जणे सुण मातजी, रुडे मूंडं किम थाय रे ॥ मिश्री खातां थका दंत जो, पकी जाय तो जाय रे ॥ ता० ॥ ८ ॥ कुमरजी साहस यादरी, लोपी मातनी लाज रे || हाथथी खेंची
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( ३७ )
दो लीयो, चाल्यो लेइ हंसराज रे ॥ ता० ॥ ए॥ राणी कौतुक जे कीयां, कहेतां न आवे बेह रे ॥ लाज मर्यादा मूकी करी, आप वलूरीयो देह रे ॥ ता० ॥ १० ॥ शोक्यना पुत्रने सामटा, बेदु मरावशुं वाम रे ॥ नाम लीलावती तो खरी, जो करूं एवं काम रे ॥ ता० ॥ ११ ॥ कंचु फामी कटका कीयो, फामीयुं सुंदर चीर रे ॥ जंधे मुखे पडी खाटले, सर्व संकोची शरीर रे ॥ ता० ॥ १२ ॥ एम उपाय राणी करी, कीधुं कपट अपार रे || सोलमी ढाल पूरी हु, कहे श्री जिनोदय सार रे ॥ ता०॥१३॥ सर्व गाथा ॥ ३०८ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ लीलावती राणी तणे, मंदिर आयो राय ॥ राणी किहां देखी नहीं, मंदिर खावा धाय ॥ १ ॥ पूबे राय सहेलीयां, राणी नहीं आवास || कर जोमी दासी कहे, राणी उदास ॥ २ ॥ जैरा मांहि छालगी थकी, सूती बेतिहां जाइ ॥ वात सुणीने शंकीयो, पहोतो राजा धाइ ॥ ३ ॥ कहे राणी सूती किमे, कहे तुं मनन वा ॥ पटराणी तुं माहरी, तोशुं अधिक प्रीत ॥ ४ ॥ बोलावी बोले नहीं, खेंच्युं राये चीर ॥ ससराजी थें सांजलो, मूको महारुं चीर ॥ ५ ॥
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( ३८ ) हंसती हुं जारजा, तिए ससरा थें थाय ॥ अलगा रहेजो यम थकी, मनमें चिंते राय ॥ ६ ॥ ॥ ढाल सातमी |
॥ कोयलो पर्वत धुंधलो रे लाल || ए देशी || ॥ राणी वचनज सांजल्युं रे लाल, राजा रह्यो विमास रे ॥ बालूमा ॥ सिंह तां जे वाबडां रे लाल, कहो किम खाये घास रे ॥ बा० ॥ रा० ॥ १ ॥ परनारी बंधव हुता रे लाल, गंगाजल जिम पूत रे || बा० ॥ जादव वंशे उपना रे लाल, कीधो केहो सूतरे ॥ बा० ॥ ० ॥ २ ॥ नजर जरी राय जोश्युं रे लाल, फाड्यं सुंदर चीर रे ॥ बा० ॥ कंचुको ते काढीयो रेलाल, देखामीयुं ते शरीर रे || बा० ॥ रा० ॥ ३ ॥ ते देखीने शंकीयो रे लाल, मीठो सहु ए कूम रे ॥ बा० ॥ गुणथी अवगुण मानीयो रे लाल, अंनेरी कीयो घूम रे ॥ बा० ॥ रा० ॥ ४ ॥ इंधण घृत जिम घालीयां रे लाल, अधिको अग्निदीपाय रे ॥ बा० ॥ राणी तणे वचने करी रे लाल, धमधमीयो नर राय रे ॥ बा० ॥ रा० ॥ ५ ॥ दासी तेडवा मोकली रे लाल, पहोती मुहता पास रे || बा० ॥ साद दीये बेस्वामीजी रे लाल, राणी तो आवास रे ॥ बा०
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(३ए) ॥रा॥६॥ मनकेसरी मुहते तिहां रे लाल, श्रावी कीयो जुहार रे ॥ बा ॥ राणी वात सहु कही रे लाल, मुहतो करे विचार रे ॥ बा ॥ रा ॥ ७॥ राणीए शरीर वलूरीयुंरे लाल,नहीं कोरपुरुषनो हाथ रे॥ बा ॥ स्त्रीयां अनरथ उपजे रे लाल, नेस्यो श्णे नाथ रे॥बा ॥रा॥७॥ राय कहे मंत्री सुणो रे लाल, मारो ए बेहु पूत रे ॥ बा ॥ ढील शहां करवी नहीं रे लाल, राख्यो न रहे सूत रे ॥ बा॥ रा० ॥ ए॥ मनकेसरी मुहतो कहे रे लाल, कूडो म करो रोष रे॥बा॥ नारी वचन नवि मानीए रे लाल, कुमरनो नहीं को दोष रे ॥बा॥रा॥१०॥अणविचास्युं नवि कीजीए रे लाल, कीजे काम विचार रे ॥ बा ॥ दोष दश शिर उपरे रे लाल, नारी चरित्र अपार रे ॥ बा ॥रा ॥ ११॥जोजोने नर पंमिता रे लाल, सुसर मनावी हार रे ॥ बा ॥ वेगवती वली ब्राह्मणी रे लाल, दोष दीयो अणगार रे ॥बाण ॥रा०॥ १२श्म जाणी नवि कीजीए रेलाल, हंस न दीजे देह रे ॥ बा ॥ पांचे दिन जातां थका रे लाल, रणथी रहेशे गेह रे॥ बारा॥ १३ ॥कर्म मेले बे किहां वध्या रे लाल, पनर वरष परदेश रे
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(४०) ॥ बा ॥राय चरणे श्हां श्रावीया रे लाल, कर्मे कीयो प्रवेश रे ॥ बा ॥ रा० ॥१४॥ सर्व गाथा ॥३ ॥
॥दोहा॥ ॥ राजा राणी बेहु जणे, मूल न मानी वात ॥ वार वार मत पूजो, करजो बिहुंनी घात ॥१॥ राय कहे तिम पाधरो, पासो पडे ते दाव ॥ निर्धन पुरुषनुं बोलवू, जाणे वायो वाय ॥२॥
॥ढाल आठमी॥ ॥ देशी मधुकरनी ॥ धन सार्थवाह साधुने, दीधुं
घृतनुं दान ॥ ललना ॥ राग जयश्री ॥ ॥राय नणे मुहता नणी, काम करो हवे जाय ॥ राजा ॥ राणी मुःख पूरे करो, शंका म करो कांय॥ रा॥१॥राणीनुं मन राखवा, कुमर उतास्यो मोह॥ राण ॥ राजा राणीने कारणे, मन मांहे धरतो कोह॥ राण ॥२॥ मनकेसरी मन दृढ करी, लागो राणी पाय ॥रा० ॥ बे बालक माचा थका, लोके फट फट् थाय ॥ रा० ॥३॥ कहे राणी मुहता जणी, जो तुज जीवण काज ॥ रा० ॥ बे जिम त्रीजो मेलगुं, नहीं गणशं तुज लाज ॥रा॥४॥मनकेसरी मन शंकीयो, जिम कहीए तिम साच ॥ रा॥ काम करूं हवे
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(४१) मातजी,मानजो तमे मुज वाच॥रा॥५॥राजाराणी बे जणां, मान्यो मन संतोष ॥रा॥ मनकेसरी मुहतो कहे,मत देजो मुज दोष॥रा०॥ (पागंतरे)॥ नयणे नयण देखामजो,जाको राजा शोष॥रा॥६॥लबीडं मंत्री चल्यो, आयो कुमरो पास ॥ रा०॥ मनकेसरी तिहां मामीने, सघलो कीधो प्रकाश ॥रा॥७॥बार रतन साथे दीयां,दीधा हयवर दोय ॥रा॥प्रबन्नपणे दोउ काढीया, कर्म तणी गति जोय ॥ राण ॥७॥ साथे संबल घालीयो, घाट्यां बहुला दाम ॥ रा॥हित शिखामण देश्ने, नीसरीया आराम ॥राण ॥ए॥मनकेसरी मुहता तणे,बेहु जण लागा पाय॥राण ॥ जीवदान थाहरो दीयो, ते ऊरण किमहिं न थाय ॥ राम् ॥ १० ॥ श्रांखे आंसु नाखतां, मूकंता निशास ॥रा० ॥ हंसावलि राणी नणी, मलवा हुती श्राश ॥रा ॥ ११ ॥ माणस मन मांदि चिंतवे,मनोवंडित पूरेश ॥ रा०॥ दैव नणे रे बापमा, हुं तुज अवर करेश ॥ रा० ॥ १५ ॥ पुण्य विहुणां माणसां, चिंत्युं निष्फल थाय ॥ रा॥ जिम कूवामां गंयमी, आल माल हो जाय ॥ राम् ॥ १३ ॥ मनकेसरी कहे सांजलो, रोयां न लाने राज ॥ रा०॥ करतां दृढ
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(४२) मन आपणुं, सीके वंडित काज ॥ रा०॥ १४ ॥ सर्व गाथा ॥ ३४५ ॥
॥दोहा ॥ गोमी राग मध्ये ॥ ॥ एम शिखामण देश्ने, वलीयो पालो गेह॥मनकेसरी मन चिंतवे, राखुं सघली रेह ॥१॥ दोश मृग हणीयां तिहां, पारधी दीगे एक ॥ तेहनां नेत्र मागी लीयां, मनमें आणी विवेक ॥२॥ ते लोचन ले करी, पहोतो राणी पास ॥ लोचन खेर आगे धयां, कीधो सहु प्रकाश ॥३॥
॥ढाल नवमी ॥ नायकानी देशीमां॥ ॥राणी लोचन देखीने रे लाल, धरीयो अंग उदास रे ॥ लीलावती ॥ महारं जाण्युं में कीयुं रे लाल, पहोंचाड्या स्वर्गवास रे ॥ लीलावती ॥ रोष धरी मन चिंतवे रे लाल ॥१॥ ए आंकणी॥ कहे राणी लीलावती रे लाल,कहो मुहता एक वात रे॥ली०॥ किण स्थानके ले जरे लाल, कीधो बेहुनो घात रे॥ ली ॥ रो० ॥२॥ कहे मंत्री सुणो मातजी रे लाल, आंखे पाटा बांध रे ॥ ली ॥रण मांहे ले जाश्ने रे लाल, मास्या बेहुने कांध रे॥ ली० ॥ रोग ॥३॥ बे बालकने मारतां रे लाल, कां कही मुख
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(४३) वात रे ॥ ली०॥ मनकेसरी मन अटकली रे लाल, लीधी अंगनी धात रे ॥ ली ॥ रो॥४॥कहे मंत्री सुण मातजी रे लाल, हंसे कही एक वात रे ॥ ली ॥राणी वचन नवि मानीयां रे लाल, तो थावे जे घात रे ॥ली०॥रो॥५॥राणी वचन जो मानता रे लाल, तो थावत सहु काज रे ॥ ली॥ तिणी वेला हुँ पांतस्यो रे लाल, एम बोल्यो हंसराज रे ॥ ली ॥ रो० ॥६॥जो मुखथी एम नाखीयुं रे लाल, कांश विणाश्यो बाल रे॥ली० ॥ प्रबन्नपणे यहां राखती रे लाल, हवे मुज दुवो साल रे ॥ ली० ॥ रोग ॥७॥ कांश कुमति मुज जपनी रे लाल, धूणे राणी शीश रे ॥ ली०॥ अण विमास्युं में कीयुं रे लाल, रूठगे मुज जगदीश रे॥ली ॥रो॥७॥ मनकेसरी मन चिंतवे रे लाल, राणी तणां ए काम रे ॥ ली॥ राजाने नंगेरीयो रे लाल, माम गमाश् गाम रे ॥ ली ॥रो० ॥ए ॥ वात सुणो हवे धागली रे लाल, सुणतां अचरिज थाय रे॥ ली ॥रात दिवस वाटे वहे रे लाल, अति जय मन न खमाय रे॥ली॥रो० ॥ १० ॥ विषमा पर्वत वांकमा रे लाल, विषमी बहेता वाट रे ॥ ली० ॥ नदीयां निज्जरणां नीहा
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( ४४ )
लतां रे लाल, विषमा लंघे घाट रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ ११ ॥ विष विशामे चालता रे लाल, नूख तृषा सहे देह रे ॥ ली० ॥ शीत ताप सघलो सहे रे लाल, सुख दुःख नहीं को बेह रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १२ ॥ बेनाइ रमां फिरे रे लाल, मनुष्य मात्र नहीं कोय रे ॥ ली० ॥ किहां चढीया पाला पले रे लाल, कर्म तणां फल जोय रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १३ ॥ वनखंग तरुवर देखतां रे लाल, कायर बांडे प्राण रे ॥ ली० ॥ एक एक मांडे मिल्या रे लाल, जिहां नविदी से जाए रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १४ ॥ वाघ सिंह गुजे घणा रे लाल, मृगलां देतां फाल रे ॥ ली० ॥ सूर सावर रोजडां रे लाल, देखे नाग विकराल रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १५ ॥ एम पटवी लंघी घणी रे लाल, वातो करता जाय रे ॥ ली० ॥ हंस जणे वत्सराजने रे लाल, लागी तरष मुज जाय रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १६ ॥ नगरथी आपण नीकल्या रे लाल, थाक्या जेवा आज रे || बी० ॥ एड्वा कद्रीय न थाकता रेलाल, बोले तव वराज रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १७ ॥ इ मतलीये थें विशमो रे लाल, जोवुं पाणी गम रे ॥ ली० ॥ इमां आणी पावशुं रे लाल,
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तो वच
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(४५) महारं नाम रे ॥ली॥ रो० ॥१॥ वमला तो हंस विशम्यो रे लाल, लाधुं सुख शरीर रे॥ ली०॥ घोमो वड तले बांधीयो रे लाल, वछ गयो लेवा नीर रे ॥ ली० ॥ रो ॥ १७ ॥ ढाल हुइ जंगणीशमी रे लाल, कहे श्रीजिनोदय सूरि रे ॥ ली० ॥ वबराज जल कारणे रे लाल, जोतां पहोतो पूर रे ॥ ली ॥ रो० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ ३६७ ॥
॥दोहा॥ ॥ वलराज जल कारणे, चढीयो तरुवरमाल ॥ जलचर शब्द तिहां सुण्यो, दीनी सरोवर पाल॥१॥ चक्रवाक सारस घणा, पहतो तिहाँकणे वार ॥ कमलफुल मांहे तीरे, दीतुं निर्मल नीर ॥२॥ गरुम पंखी वासो वसे, मत्स कबर्नु गमजोवानो अवसर नहीं, जलने श्रायो काम ॥३॥ गम विसास्यो गगलो, जल लीयो पोयणपाम ॥ जल लेश पागे वस्यो, देखे सर्व आराम ॥४॥
॥ ढाल दशमी ॥ नावनानी॥ ॥ कीडो न बोडे रे गीरांदेरो नेमलो रे, हारे मारी
रे मद पाइ॥ ए देशी ॥ ॥ वत्सराज जब नीसख्यो रे, नीसस्यों हो पाणी
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(४६) लेवा काज ॥वांसे सुखे हंस विशम्यो रे, होवाट जोवे हंसराज ॥१॥पाणीडं पा लाइ हुँ तरस्यो थयो रे, हो कांजोवामो रे वाट॥ पाणीमा विहुंणो रे जाइ हुँ केम रहुं रे, दण मांहे थयो उच्चाट ॥ पा० ॥ कांग॥ ॥२॥हवे वांसे जे कौतुक हुवो रे, हो वमनी टाढी बगंह ॥नीचे बीगयो खमनो साथरो रे,हो देशीशे बांह ॥ पा ॥ कां ॥३॥ आवी निमा वली हंसने रे, हो बमो नीसरीयो साप ॥ हंस सूतो आव्यो तिहां रे, हो पोते प्रगट्युं पाप ॥पा॥ कां ॥४॥ गम गम हंसने मश्यो रे, हो बेगे हियडे आय॥ पवन पीयो तिणे पापीए रे, हो मशणी रक्त ते खाय ॥पा॥कां० ॥५॥मारग आयो वत्स उतावलो रे,हो ना केरे रे काज ॥ पाणी पाश्ने ढुं सुख करुं रे, हो एम चिंते वछराज ॥ पा० ॥ कां० ॥ ६ ॥सर्प दोगे वबने आवतो रे, हो उतरीयो ततकाल ॥ वनराजे पण नयणे निरखीयो रे, हो दीगं पेठी जाल ॥ पा ॥ कां ॥७॥ नाग गयो निज स्थानके रे, हो पेगे वमने मूल ॥ हंसराज सूतो तिहां आवीयो रे, हो दीगे डंशनो शूल ॥ पा॥ कां० ॥७॥नील वरण तनु निरखीयो रे, हो जोवण लाग्यो नाम ॥
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(४७) चेतन देखी चित्तमां चिंतवे रे, हो वनमें उठी धाम ॥ पा॥ कां ॥ ए॥ पाणी परहुं नाखीयुं रे, हो लांबी मेली हाय ॥ ना विना हुं केम रहुँ रे, हो विश्व खावाने धाय ॥पा॥कां०॥१०॥नाइते की किस्युं रे, हो कीधो हुँ निराधार ॥सार करे तुंना माहरी रे, हो दीधो दते खार ॥पा०॥कां ॥१९॥ वार वार व बेगे करे रे, हो नीचो धरणी जाय॥ शक्ति गइ सहु शरीरनी रे, हो पाणी अन्न न खाय ॥ पा० ॥ कां ॥ १२ ॥ वह कुमर फूरे घणुं रे, हो किहां न देखे श्वास ॥ गलहबो देश हायशुं रे, हो बेठो रोवे पास ॥ पा० ॥ कां ॥ १३ ॥ ना ते की, किस्युं रे, हो हुँ बेगे वनवास ॥ मुजने दे तुं बोलमां रे, हो जिम मुज पूगे थाश ॥ पा० ॥कांग ॥१४॥ मुजशं प्रीति हती हंस ताहरी रे, हो सो हर केथी आज ॥ मुजहुँती अलगो थयो रे, हो विलपे श्म वडराज ॥ पा० ॥ कां० ॥ १५ ॥ जननी गर्ने बेहु उपन्या रे, हो जन्म्या बेहु समकाल॥परदेशे बेहु आपे वध्या रे, हो बेहु जणीया रागमाल ॥ पा० ॥ कां ॥ १६॥माताए वली अपमाणीया रे, हो राजा कीधी रीस ॥ मनकेसरी आपणने मूकीया रे, हो
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( ४८ )
बेदतां आपणुं शीश || पा० ॥ कां० ॥ १७ ॥ पण बेदु तिहांथी नीसख्या रे, हो आव्या इणे उद्यान ॥ पाणी लेवाने हुं गयो रे, हो तुं सूतो इस रान ॥ पा० ॥ कां० ॥ १७ ॥ जोवो जाइ माहरो दिन का रिमो रे, हो घालुं गले में फास ॥ राग हतो जो मुजथी ताहरो रे, हो इणविध करे विमास ॥ पा० ॥ कां० ॥ १५ ॥ हंस मुवो माता जाएशे रे, हो हैडे होशे दाह ॥ नयणे नीरप्रवाह वशे रे, हो सरली देशे धाह ॥ प० ॥ कां० ॥ २० ॥ सर्व गाथा ॥ ३०२ ॥ || ढाल गीयारमी ॥
॥ मायमी अनुमति दीयो मुज आज ॥ ए देशी ॥ ॥ माता मनमें जाणती जी, मो सरखी नहीं नार ॥ पुत्र जया बे जोगले जी, होशे मुज श्राधार रे ॥ बंधव ॥ १ ॥ तें कीधी निराश रे बंधव, हैये विमासी जोय ॥ ए
कणी ॥ वे बालक महोटा होशे जी, जलशे शास्त्र अनेक ॥ नारी घणी परणावशुं जी, जिए मांहि घणो विवेक रे ॥ बंधव ॥ २ ॥ बे बालक राजा होशे जी, देखी बेनां सुख ॥ एहवी वात जो जाणशे जी, तो हैडे धरशे दुःख रे ॥ बंधव० ॥ ३ ॥ सेज सुंवाली पोढतो जी, के हींगोला खाट ॥ शुं तुं सूतो साथरे जी,
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(MR)
वता मारग वाट रे ॥ ४ ॥ बंधव० ॥ मनोवांछित सुख पामतो जी, करतो सरस आहार ॥ कर्मवशे रण में पड्यो जी, अन्न न लाधो वार रे ॥ ५ ॥ बंधव० ॥ महेल जले तुं पोढतो जी, कर्मे वमनी बांय ॥ शीशां जिहां दीसतां जी, सो शिर नीचे बांह रे ॥ ६ ॥ बंधव० ॥ सेवक तुज सह सेवता जी, सहुको करता था । एकलको इहां विशम्यो जी, जोजो कर्मप्रकाश रे ॥ ७ ॥ बंधव० ॥ हुं मन मांहे जाणतो जी, बांधव बे मुज बांह ॥ मुजने कोण गंजी शके जी, ए शीतल बे बांह रे ॥ ८ ॥ बंधव० ॥ एम मन दुःख कीधुं पूएं जी, रोयां न घ्यावे राज ॥ रण रोया जाणे नहीं जी, एम जंपे वराज रे ॥ ए ॥ बंधव० ॥ एम मन पालुं वालीयुं जी, साहस घरी युं अंग ॥ एकलडो हुं इहांकणे जी, नहीं कोई बीजो संग रे ॥ १० ॥ बंधव० ॥ साहस धरीने उठीयो जी, पहोतो सरोवर ठाम ॥ समुद्र तणी परे सारखं जी, श्रवण सरोवर नाम रे ॥ ११ ॥ बंधव० ॥ रहे तिहां सारस पंखीयां जी, गरुड लहे विशराम ॥ जल श्राश्रय क्रीमा करे जी, वनतरु तिहां अजिराम रे ॥ १२॥ बंधवणा लघु बांधव कंधे करी जी, आयो वमनी देव ॥ वमनी शाखे बांधी यो जी, न पडे केहनी दृष्ट रे ॥ १३ ॥ बंधव० ॥
हं० ४
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(५०) सरोवर जल सिंची लीयो जी, शरीरे कीयो सनान॥ फिट रे हैमा कारिमा जी, जीव्यो तुं कये ज्ञान रे ॥ १४ ॥ बंधव ॥ एक तुरी हाथे ग्रह्यो जी, बीजे हुई असवार ॥ तिहाथी आघो संचयो जी, सुणीयो वाजिन धोकार रे ॥ १५ ॥ बंधव०॥ तिण दिशि थाघो संचयो जी, दी नगरी स्थान ॥ कुंती नगरी परगमी जी, बार जोयणगें मान रे॥१६॥बंधव०॥ लोक जणी तिहां पूढीयुंजी, नगरी नृपर्नु नाम ॥ तुरी रतन श्हां वेचीने जी, लेवं चंदन श्ण गम रे ॥ १७ ॥ बंधव ॥ ते चंदन हुँ वेश्ने जी, देशू बांधव दाग ॥ ढील हवे करवी नहीं जी, एम चिंते महानाग रे ॥ १७ ॥ बंधव०॥ वत्सराज कुंती गयो जी, वांसे पुण्य प्रकार ॥ गरुम पंखी तिहां श्रावीयो जी, हंस करेवा सार रे ॥ १५॥ बंधव०॥ जिण माले हंस बांधीयो जी, तिणहीज बेठो गमगरलज नाखी उपरे जी, विषतुं न रडुंनाम रे॥२०॥ बंधवः ॥ हंसराज सचित हुवो जी, नयणे निरखे रन्न ॥ वडे किणे शहां बांधीयो जी, एम चिंते ते मन्न रे ॥ १॥ बंधव० ॥ बोड्यां बंधन हाथ\ जी, दीतुं निर्मल नीर ॥ पाणी पी, प्रेमशुं जी, की,
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(५१) स्नान शरीर रे॥२२॥बंधवः ॥ बीजो खंग पूरी हुई जी, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ जणतां गुणतां संपजे जी,नव निधि आणंदपूर रे ॥ २३॥ बंधव ॥ इति हंसवनप्रबंधे हंसवछपरदेशगमनहंसपुःखसहननामा द्वितीयः खंडः संपूर्णः॥॥ सर्व गाथा ॥ ४१६ ॥
॥ खंड त्रीजो॥
॥ दोहा॥ ॥ हवे त्रीजो खंग बोलशु, थाणी मन आणंद ॥ सान्निध्य करजो सरसती, वली जयतिलक सूरींद ॥१॥ विकथा निसा परिहरी, सुणजो बाल गोपाल ॥ सुणतां अचरिज उपजे, कांश मत जंखो बाल ॥२॥ हंसराज जोवे तुरी, नवि देखे वबराज ॥ वन देखे बीहामणुं, सुणे सिंहनी गाज ॥३॥
॥ ढाल पहेली ॥ ऊलालीयानी देशी ॥ ॥ हंस तिहांथी जीयो रे, जोवे तरुवर आम ॥ बंधव मोरा रे ॥ मुजने मूकी किहां गयो रे, ए उत्तमनुं नहीं काम ॥ बंग ॥१॥ महारं मनडुं बंधव किम रहे रे, तुज विरहो न खमाय ॥ बंधव०॥ तुज विरदे हुँ आकुलो रे, तुम विण किम दिन जाय ॥ बंधव०॥२॥मन मांहे हुं जाणतो रे, नहीं
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(५२) मूकुं तुज केम ॥ बं० ॥ जिण दिशि बंधव तुं गयो रे, तिण दिशि मुजने तेड ॥ बंग ॥३॥ सरवरनी पाले चढी रे, देतो सरला साद ॥ बं०॥ वन तरुवर सहु ढुंढतो रे, पूज्या न दीये साद ॥बं॥४॥ नाइ नाइ करतो नमे रे, तरुने घाले बाथ ॥बं॥ करतां तें की, किस्युं रे, श्राज विगेड्यो साथ ॥ बंग ॥५॥ चिंतकीयो कांश नवि हु रे, अणचिंतवीयो थाय ॥ बं० ॥ सरल निशास सरली देतो घाद ॥ बं०॥६॥के ना रे, के ले गयो आकाश ॥ बं० ॥ बल बुद्धि तुज हुती घणी रे, क्या थव ग ते नाश ॥ बं० ॥७॥ पग जोवे चिहुं दिशि फिरे रे, तरुतल दीगे साध ॥बंग॥ तप करी काया शोषवी रे, राने रहे निर्बाध ॥ बं० ॥ ॥त्रण प्रदक्षिणा देश्ने रे, वंदे मुनिना पाय ॥ बंग ॥ कहो मुज ना किहां गयो रे, तव जंपे मुनिराय ॥ बं० ॥ ए॥ ना तुज कुंती गयो रे, चंदन लेवा काज ॥ बंग ॥बए मासे मेलो हुशे रे, मलशे तिहां वराज ॥ बं॥१०॥ मुनि वांदीने नीकल्यो रे, कुंती नगरे जाय ॥ बं० ॥ बार जोयण नगरी वमी रे, वर्णन न कडं जाय ॥ बं० ॥११॥
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(५३) नाश् कारण नगरी जमे रे, को न कहे तसु वात ॥ बं॥कबाढो केव्हण मिल्यो रे, परमाररी जात॥ बं०॥१२॥ वात पूडी सवि गामनी रे, महारं केव्हण नाम ॥बंग॥ पुत्र पंच माहरे रे, एक एकथी अनिराम ॥ बं०॥ १३॥ श्रावो घरे तुमे श्रापणे रे, थापीश तुमने पुत्त ॥बं॥वात मानी तिहां हंसजी रे, दीगे एवो सुत्त ॥ बंग ॥ १४ ॥ तेहने घरे रहेता थका रे, इंधण थाणे हाथ॥बंगाबए जाइ जोवे सदा रे,आवे जावे साथ ॥ बं० ॥ १५॥ हवे चरित्र वमा जानुं रे, पहोतो कुंती गम ॥ बं॥चंदन लेरॉचिंतवे रे, देश बहुला दाम ॥ बं० ॥ १६ ॥ गम ठाम ते पूतो रे, दीगे मुम्मण हाट ॥बं॥मोटुं पेट मातो घणो रे,सेवे नरना था ॥ बं० ॥ १७ ॥ वडराज मन चिंतवे रे, दीसे रुडे घाट॥ बं०॥ दीसे जेह सुंहालमा रे, तेहज पाडे वाट ॥ बं०॥१॥हाट जउनो रह्यो रे, दीगे मुम्मण शेठ ॥ बं० ॥ गादी दीधी आपणा हाथद्यु रे, बेगे नीची दृष्टि ॥ बं० ॥ १७ ॥ शेव कहे वचराजने रे, श्रश्वरत्न दो हाथ ॥ बंग ॥ अवर को दीसे नहीं रे, एकाकी बीजो साथ ॥ बं० ॥२०॥ वलतो वचन कहे शेग्ने रे, अमे बांधव हुता दोय
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(५४)
॥ बं० ॥ मुज ना सापे मश्यो रे, जोर न चाव्युं कोय ॥॥१॥वमतरु शाखे बांधीने रे, हुं आयो चंदन काज ॥ बं॥ लेश चंदनने दाघशुं रे, लघु नाइ हंसराज ॥ बं० ॥॥ सर्व गाथा ॥ ५४१॥
॥दोहा॥ ॥रतन अमूलक मुज कन्हे, संख्या दश बार ॥ थापण राखो (ए) माहरी, अश्वरत्न दोश्सार॥१॥ शेठ सुणी मन हरखीयो, अश्व बंधाव्या बार ॥रत्न खेश् श्राघां धयां, ये चंदन तत्काल ॥२॥ बेउ नर जेतो उपडे, तोली लीयो वछराज ॥ मजूरने माथे दीयो, चाल्यो बंधव काज ॥३॥ श्रवण सरोवर श्रावीयो, श्राव्यो वनने गम ॥ नजर जरी नीहालीयो, कुंवर न देखे ताम ॥४॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ श्डर श्रांबा आंबली रे॥ ए देशी ॥ ॥ वमतरु माले बांधीयो जी, में बंधव हंसराज ॥ कुंती नगरे हुँ गयो जी, चंदन लेवा काज हो॥बांधव, बोलडो द्योने श्राज ॥ विलपे एम वछराज हो ॥ बांधव ॥बो॥१॥ एत्रांकणी॥ वम उपर चढी जोश्यु जी, किहां न देखे हंस ॥ वली नीचो ते उतस्यो
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(५५) जी, जोवा लाग्यो वछ हो ॥ बां० ॥ २ ॥ साव जनो जय नहीं इहां जी, कोणे बोड्या श्राय ॥ मूढं मरुं केम उतरे जी, पगे कहो केम जाय हो ॥ बां ॥ ३ ॥ तुजमें मति हुती घणी जी, अधिकं जोर शरीर ॥ नदीय नर्मदा तिहांकणे जी, तें जीत्या बावन वीर हो ॥ ० ॥ ४ ॥ किए दिशि हुं जोवा फर्रु जी, कोणने हुं वाट ॥ उजम उजड जोवतो जी, लाधे बहुला घाट हो ॥ बां० ॥ ५ ॥ पग जोवंतो नीकल्यो जी, हुइ जीवनी श्राश ॥ एकलडो हुं इहांकणे जी, नहीं को बीजो पास हो ॥ बां० ॥ ६ ॥
घो पग नवि नीसरे जी, होइ गयो थालमाल ॥ साद दीये सरला घणा जी, हैडे हुई साल हो ॥बां० ॥ ७ ॥ किहां सुध लागी नहीं जी, कोइ न सरीयुं काम ॥ पाठो कुंती आवीयो जी, जिहां मुम्मनुं गम हो | बां० ॥ ८ ॥ शेठ जणी सहु जाखीयुं जी, जे हुए चरिज वात ॥ चंदन त्यो थें आपणो जी, dis सुप्रपात हो | बां० ॥ ए ॥वार रतन दीगं तुरी जी, ते केम दीघां जाय ॥ मग आघा पाढा नरे जी, न सुणे वातज कांय हो ॥ बां० ॥ १० ॥ बुद्धि फरी तिहां शेवनी जी, ए परदेशी बाल ॥ एहनो माल
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(५६) हुँ खेश्शुंजी, माथे देश्याल हो॥बांग॥११॥थापणमोस धनकारणे जी, धन ले अनर्थ मूल ॥अश्व रतन जब मागीयां जी, माथे उग्युं शूल हो॥ बांग॥१२॥ धनकारण जूके रणे जी, धनकारण सेवे खाट ॥धनकारण कूमां करे जी, धन पडावे वाट हो॥ बांग॥१३॥ धनकारण कर्षण करे जी, धनकारण सेवे पाय ॥ धनकारण बंधव वढे जी, धन वहेंची सहु खाय हो ॥ बां० ॥ १४ ॥ मुम्मण शेठ चंदन लीयो जी, पण मन मांहे बे पाप ॥ अश्व लीयो थें आपणा जी, शेठ कहे एम आप हो ॥ बां० ॥१५॥ रत्न पठी हुं श्रापशुं जी, रतन पड्यां ने गेह ॥वराज तिहां मूकीयो जी, वाम बांध्या ने जेह हो ॥ बांग ॥१६॥अश्व लीया बे थापणा जी, एके वाली टांग ॥ बीजो हाथे संग्रह्यो जी, शोध करे हवे सांग हो ॥ बांग ॥ १७ ॥ सर्व गाथा ॥ ४६५ ॥
॥दोहा॥ ॥ शेठे कीधो कूकुड, धा धा रे जाय ॥ श्रश्व लीया एणे माहरा, सहको भाया धाय ॥१॥तेहवे त्यां फिरतां थका, थाव्या नगर तलार ॥ शेठे लक्ष देखामीयो, देवा लाग्या मार ॥२॥ अश्व लक्ष
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(५७) शेठने दीया, शेठनी पूगी श्राश ॥ वनराज मन चिंतवे, जोजो कर्मप्रकाश ॥३॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ ॥ हवे धनसार विमासीयुं ॥ ए देशी ॥ ॥ चोर तणी पेरे बांधीयो, उपर देतो मार ॥ घीसावीने तामीयो,देखे बहु नर नार॥कर्म तणी गति वांकमी, बूटे नहीं कोई ॥ नल राजा तिण सारिखा, रमवमीया सोइ ॥१॥ क० ॥ जोजो राजा मुंफने, हुता बहुला देश ॥कर्मे जीख मंगावीयो,मून जे परदेश ॥२॥ क० ॥ संनूम चक्री वली श्राठमो, मू समुछ मजार ॥ षट् खंम शझिनो धणी, गयो नरक मकार ॥३॥क० ॥ करमे दशरथ काढीया, लखमण ने राम ॥ सीता साथे रमवमी, करम तणां ए काम ॥४॥ का॥ कोटवाल वेगयो,राजानी पास ॥ श्रागल ले उजो कीयो, स्वामी सुणो अरदास ॥५॥ क० ॥ शेष कहे स्वामी माहरे, पेठगे सेवा काज ॥ अश्वरत्न बे काढीयां, हमणां महाराज ॥६॥ क ॥ वमा बुढाना पुण्यश्री, में लाधो चोर ॥ श्रश्व थकी उतारीयो, में करीने शोर ॥ ७॥ क० ॥ बात राजाने विनवी, सहु जाणो फोक ॥ वात कहे सहु
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(५७) केलवी, एहने नहीं शोक ॥ ॥ कम् ॥ जण जण सहु एहवू चवे, राय इण नहीं को खोम ॥ महेर करो अम्ह उपरे, बंधणथी ठगेम ॥ ए॥ क० ॥ शेठ कहे राजा सुणो, लोक न लहे ए वात ॥ जो तुम एहने डोमशो, तो करशे मुज घात ॥ १० ॥क० ॥ के बूटो घर बालशे, देशे बहुलां छुःख ॥णने सही मास्या थका, हुं पामीश सुख ॥११॥क० ॥ वबराज मन चिंतवे, शेठनो नहीं दोष ॥ श्राप कीयां फल पामीए, जीव म करे रोष ॥ १२॥ कण्॥शेठ कहे राजा नणी,एह हण्या शी खाण ॥ निकर गर मास्या थका, कंपे के काण ॥ १३॥ कण् ॥जो तुमे एहने बोमशो, सहुको करशे एम ॥जो एहने नहीं मारशो, तो अन्न खेवा मुज नेम ॥ १४ ॥ क०॥राय कहे कोटवालने, शेठ राखो रूख ॥ एहने सही मास्या थका, शेग्नुं जांजशे पुःख ॥ १५ ॥ क० ॥ कोटवाल लेश नीकट्यो, हणवाने काज ॥ बूटे खर बेसारीयो, जोजो महाराज ॥ १६ ॥ क० ॥ मस्तक दीधुं करूं, मुख कीधुं श्याम ॥ वनराज मन चिंतवे, जोजो विधिनां काम ॥ १७ ॥ कम् ॥ शेठ गयो निज स्थानके, मुज सरीयु काज ॥ में उपाय कीधो जलो, मास्यो वन
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(un)
राज ॥ १८ ॥ क० ॥ नगरलोक मल्यां घणां, जोवाने काज ॥ कोटवाल घरणी तिसे, दीगे वच्छराज ॥ १८९ ॥ क० ॥ देखीने मन चिंतवे, इणनो नहीं दोष ॥ खुन खता इसमें दुवे, तो तातो पीढुं हुं कोश ॥ २० ॥ क० ॥ कोटवाल घर तेमीयो, जंपे घरनार ॥ पुरुषरत्न किम मारीए, ए कोण आचार ॥ २१ ॥ क० ॥ बालहत्या महोटी कही, जाणी न करे कोय ॥ एम जाणी तुमे राखवो, पुण्य बहुलुं होय ॥ २२ ॥ क० ॥ ए बालक घरे राखशुं, थापशुं मुज पूत ॥ ए वालक राख्यां थका, रहेशे घरनुं सूत्र ॥ २३ ॥ क० ॥ सर्व गाथा ॥ ४८ ॥
॥ दोहा ॥
॥ कोटवाल मान्युं वचन, हुकरायां सहु लोक ॥ प्रछन्नपणे घर आणीयो, जाग्यो बेदुनो शोक ॥ १ ॥ पुत्र करीने थापीयो, को नवि जाणे वात ॥ शेठ थकी arai रहे, कीधो नरनो घात ॥ २ ॥ एम करतां दिन बहु थया, शेठने लोन अपार ॥ शुभ दिन इहांथी पूरीयां, समुद्र वहा अढार ॥ ३ ॥ वस्तु सदु लीधी घणी, मेल्यो बहुलो साथ ॥ पुष्पदंत माजी हुर्द, बीधी बहुली आथ ॥ ४ ॥ शुभ दिन प्रवहण पूरीयां,
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(६०) चाले नहीं लगार ॥ मन चिंता मुम्मण हुश्, कीजे किस्यो प्रकार ॥५॥
दाल चोथी वांगरीयानी देशी ॥ मुम्मण तेड्यो ज्योतिषी रे, जोवो लगन विचार रे ॥ जोशीमा ॥ प्रवहण केम चाले नहीं रे, जो करो उपचार रे ॥जो॥१॥ किण देव दोषज कीयो रे, विचारो हैमा मांहि रे ॥ जो ॥ हुँ मानीश तारो बोलमो रे, देगुं बहुत पसाय रे ॥ जो ॥२॥शेठ जणी कहे ज्योतिषी रे, राखी थापण गेह रे॥जो॥ तिणे पापे हाले नहीं रे, जाणो लगनमां नेह रे ॥ जो० ॥३॥शेठ सुणी मन चमकीयो रे, साच कही सहु वात रे ॥ जो ॥ शेठे वात सुणी तिसे रे, नरनो न हुई घात रे ॥ जो ॥४॥ कोटवाल घर राखीयो रे, थाप्यो श्रापण पुत्त रे॥ जो० ॥सुणी वात मन शंकीयो रे, कवण हु ए सुत रे ॥ जो ॥५॥ दिन पांचे जातां थका रे,होशे मुजने साल रे॥जो॥ राजाने जाइ मलु रे, नेट अमूलक आल रे॥जोग ॥६॥ आगे लेट मूकी करी रे, शेठे कीयो प्रणाम रे ॥जो॥राजा आदर आपीयो रे, श्राया कीये काम रे॥ जो० ॥ ७॥ शेठ कहे खामी सुणो रे, हुं बोडं
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(६१)
हवे वास रे॥जो ॥ कोटवाल सबलो हुई रे, वादे केहो वास रे॥जो ॥ ॥ राजा मरायो चोरटो रे, सो घर राख्यो श्राप रे ॥ जो० ॥ पुत्र करीने थापीयो रे, तिण आयो माय बाप रे ॥जो ॥ ए॥ एक पुत्र मारे अ रे, नामे ने पुप्फदंत रे ॥ जो॥ समुख जणी ते चालशे रे, जीजा दिवसने अंत रे ॥ जो ॥ १० ॥ कोटवाल सुत जे कीयो रे, सोय देवाडो राय रे ॥ जो॥ तेहने सेवक थापशुं रे, देशं बहुलो पसाय रे ॥ जो० ॥१९॥ तेहने करीशुं श्राजी. विका रे, देशु सहस्त्र दीनार रे ॥ जो॥ कोटवाल राय तेमीयो रे, राय कहे सुविचार रे ॥ जो ॥१५॥ शेठ जणी पुत्र श्रापवो रे, वचन हमारं मान रे ॥जो॥ कोटवाल मन चिंतवे रे, रीझवीयो राजान रे ॥जो ॥१३॥ हसतां रोतां प्राहुणो रे,श्रागे दो तट पाळे वाघ रे॥ जो० ॥ दिवस होवे जब पाधरो रे, दिन दिन वाधे आथ रे॥जो॥१४॥ शेठ जणी पुत्र सोंपीयो रे, पाण्यो घर वलराज रे ॥जो ॥ मुम्मण शेठ मन चिंतवे रे, हवे मुज सरीयां काज रे॥जोन ॥ १५॥ प्रवहण पासे आणीयो रे, बेसाड्यो लेश गम रे ॥जो ॥ पुत्र जणी एहवं कहे रे, करजो पूरूं
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(६५) काम रे ॥ जो ॥१६॥ शीखामण दीधी घणी रे, श्राव्यो मुम्मण तेह रे ॥ जो॥प्रवहण पवने पूरीयु रे, शुकन जलां ते लेह रे ॥ जो ॥ १७ ॥ अश्व लीधा साथे घणा रे, लीधा सहस जूकार रे॥जो०॥ केता दिनने श्रांतरे रे, पाम्यो समुज्नो पार रे ॥जो० ॥१०॥ कनकावत। जश् उतस्यो रे, नेट्यो पृथ्वीनाथ रे ॥ जो॥ राजा श्रादर श्रापीयो रे, दीगे बहुलो साथ रे ॥ जो० ॥ १५ ॥ तिण नगरे कोठी रह्या रे, मांड्यो बहु व्यवसाय रे ॥ जो ॥ वराज पांमव थापीयो रे, नित नित पावण जाय रे ॥ जो० ॥ २० ॥ कांबलमो वम पहेरणे रे, बु सूकुं खाय रे ॥ जो ॥अपलाणे घोड़े चडे रे, पवन तणी परे जाय रे ॥ जो ॥१॥ कनकन्त्रम राजा तणी रे, पुत्री गुण श्रनिराम रे॥जो॥रति रंजा तिण सारिखी रे, चित्रलेखा जसु नाम रे ॥ जो० ॥ ॥ कुंवर जणी तिण निरखीयुं रे, लक्षण अंग बत्रीश रे ॥ जो० ॥ अपलाणे घोडे चढे रे, दंमायुध उत्रीश रे ॥ जो० ॥२३॥ पुरुष तणी सघली कला रे, जाणे शास्त्र विचार रे ॥ जो० ॥ पूरी पुण्य पोते हुवे रे, तो थाये जरतार रे ॥ जोग
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( ६३ )
॥ २४ ॥ कुमरीए दासी मोकली रे, वछ कुमरनी पास रे ॥ जो० ॥ नारी हुं हुं ताहरी रे, पूर हमारी आश रे ॥ जो० ॥ २५ ॥ तुजशुं कीधो नेहडो रे, जेम चूनीने हेम रे ॥ जो० ॥ जेम चकोर चित्त चंद्रमा रे, दीगं वाधे प्रेम रे || जो० ॥ २६ ॥ के तुं मुजने आदरे रे, नहींतर बांडुं प्राण रे ॥ जो० ॥ माहरे मन तुंहीज वसे रे, एहवी बोली वाण रे ॥ जो० ॥ २७ ॥ दासी वचनज मानीयुं रे, दासी दुइ उल्लास रे || जो० ॥ मदनरेखा उतावली रे, श्रावी कुंवरी पास रे ॥ जो० ॥ २७ ॥ ढाल हुइ पचवीशमी रे, कुंवरी आणंदपूर रे || जो० ॥ परणी जो पुण्य पूरुं दशे रे, कहे श्रीजिनोदय सूरिरे ॥ जो० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ २२२ ॥
॥ दोहा ॥
॥ मदनरेखा तव मूकीने, वात जणावी राय ॥ संवरमंरुप मांगीयो, कुमरी आनंद थाय ॥ १ ॥ राय वात मानी तिहां, तेड्या सघला नूप ॥ संवरमंरुप श्रावीया, सुंदर सकल सरूप ॥ २ ॥ मल्या लोक मंडप घा, बेठा गमो ठाम ॥ पुष्पदंत वनराजशुं, यावी बेठो ताम ॥ ३ ॥ चित्रलेखा कुमरी
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(६४) तिसे, कीधा सोल शणगार ॥ दासी साथे बेश्ने, श्रावी तिहांकिणे नार ॥४॥ ॥ ढाल पांचमी ॥राग सोरठ॥ काबीयानी॥
अथवा देखी कामनी दोय ॥ ए देशी ॥ ॥ संवरामंडप मांहे, हे सखि संवरामंम्प मांहे॥ गयगमणी निरखे सहु जी ॥ आरिसो बेहाथ, हे सखि आ॥ दासीय नाम कहे बहु जी॥१॥वाजे गुहिर निशाण, हे सखि वा ॥ नादे अंबर गाजीयां जी ॥ वाजे ताल कंसाल, हे सखि वाजे॥ महेल मंदिर सहु गाजीयां जी॥२॥ माला बेश हाथ, हे सखि माला ॥ राय राणा सहु निरखतां जी॥ रिकि नगरी ने नाम ॥ हे०॥ रि॥ गुण अवगुण सहु परखती जी ॥३॥ जे जे मूके राय ॥ हे० ॥ जे ॥ ते ते विलखा थर रहे जी ॥ जिम जिम आधी जाय ॥ हे ॥ जिम० ॥ ते राजा मन जम्महे जी ॥४॥ पुप्फत पासे थाय ॥ हे॥ पुप्फ ॥ मन मांहे ते आणंदीयो जी॥कुमरी अनुपम देख ॥ हे०॥ कु०॥ पोते पुण्य पूरा कायो जी ॥ ५॥ मुज वरशे सही एह ॥ हे० ॥ मुजः ॥ राजा सहु पूठे रह्यो जी ॥ निरख्यो निज जरतार ॥
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(६५) हे॥ निर ॥ बोलबंध जिणशुं कीया जी॥६॥ घाली गलामें माल ॥ हे० ॥ घाण ॥ पुप्फदंत मन विलखो हुई जी, विलखाणा सहु राय ॥ हे०॥ वि०॥ कनकन्रम राजा जुठ जी ॥७॥ फिट फिट करे सहु लोक ॥ हे० ॥ फि० ॥ राजा सहु मूकी करी जी ॥ कुमरी मूरख एह ॥ हेण ॥ कुम॥ पामर गले माला धरी जी ॥ ७॥ धमधमीया सहु राय ॥ हे० ॥ धम० ॥ माला तुज जे नहीं जी॥ जो जीवणरी याश ॥ हे ॥ जो० ॥ दे माला अमने सही जी ॥ए ॥ बोले तव वडराज ॥ हे॥ बो० ॥ कोप करी कांव कारिमो जी ॥ जेहने सरजी नार ॥ हे॥ जे०॥ तेहने कर्म पोते समो जी ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ ५३६ ॥
॥दोहा॥ ॥ कुमरी कहे सहुको सुणो, कांश करो विखवाद ॥ महारे मन ए मानीयो, फोकट करो बो वाद ॥१॥ मौन करी सहुको रह्या, प्राणे न हुवे प्रीति ॥ लोक सहु निंदे घणुं, जोजो कुंवरी रीति ॥२॥ सहुको निज स्थानक गया, लहुमा महोटानूप॥मुंह विलखाणुं सर्वन, कन्या देखी सरूप ॥ ३ ॥ निरांत हुश
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( ६६ ) राजा जणी, कुमरी थाप्यो कंत || हथेवालो तिहां मेलव्यो, बेहुनी पहोंची खंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल बडी ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ मोरी कुमरी रे, राजा दीव्रं रूप ॥ कंबलडो वम पहेरणे ॥ मो० ॥ मोरी कुमरी रे, तुं दुती अधिक सुजाण, कहो इम किम हुए तुम तो ॥ मो० ॥ १ ॥ मो० ॥ तें दीतुं अधिक स्वरूप, तुं सतीनी परे सुंदरु | मो० ॥ मो० ॥ किदां कल्पद्रुम रुख, किहां एरंग धतुरतरु || मो० ॥ २ ॥ मो० ॥ किहां सूरज किहां चंद, किहां खजवानो चांदणो ॥ मो० ॥ मो० ॥ अरह वहे बारे मास, क्षण एक जलधर वरसो ॥ मो० ॥ ३ ॥ मो० ॥ सहु राजाने बांदी, इने तें किम यादस्यो । मो० ॥ मो० ॥ आप हापि जग हांसी, एको काज न तें कस्यो । मो० ॥ ४ ॥ मो० ॥ पासे वे शेठ, रूप कला गुण आगलो ॥ मो० ॥ मो० ॥ जे तें कीधो कंत, हाथे तेहने बागलो ॥ मो० ॥ ५ ॥ मो० ॥ राजा पूबे शेठ, कोण नर बे एह ताहरो || मो० ॥ मो० ॥ राजाजी कहुं साच, ए पांव बे माहरो ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ राजा पूढे वात, वंश कहो तुम एहनो ॥ मो० ॥ मो० ॥
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(६७) खामी न जाणुं वात, रूप रुडंडे एहनुं ॥ मो० ॥७॥ मो० ॥ हुँ राखुं बुं पूर, मन संदेह बे माहरे ॥मोग ॥ मो० ॥ कीधो कुमरी कंत, शुं पूजा ने ताहरे ॥ मो० ॥ ७॥ मो० ॥ वात सुणी तव राय, है है कुमरी शुं कीयो ॥ मो० ॥ मो॥ आप विटाल्यो देह, आप जाण्यो आपे कीयो ॥ मो० ॥ए॥मो॥ ए पुत्री नहीं मुज, कुलवंडण कीधो सही॥ मो०॥ मो० ॥ एहनुं मुह म दीउ, श्राज पड़ी जोवू नहीं ॥ मो० ॥ १० ॥ मो० ॥ तें पामी मुज माम, लोक माहे हांसो कीयो ॥ मो० ॥ मो० ॥ ए अंतेजर मांहि, में तुजने उत्तर दीयो ॥ मो० ॥ ११॥ मो॥ तुं मुज मुश् समान, जीवंती केथी करूं ॥ मो० ॥ मो० ॥ लोक हुवे अपवाद, लोक थकी पण हुं महें ॥ मो० ॥ १२ ॥ मो० ॥ नगरथी बाहिर जा, बेहडे घर मामी रहे ॥ मो० ॥ भो ॥ सांजली तातनी वात, कुमरी कंत जणी कहे ॥ मो० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ ५५३ ॥
॥दोहा॥ ॥ सुण स्वामी मुज विनति, मानो नरवर वात ॥ नहींतर रीसाणो थको, निश्चे करशे घात ॥१॥
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(६७) वनराजे मान्युं वयण, बाहिर कीधो वास ॥ राजा रीसाणे थके, कोश् न आवे पास ॥॥ जननी गनो पूरवे, अन्न धन चीर कपूर ॥ चंद्रलेखाने पाठवे, नित्य उगमते सूर ॥३॥
॥ ढाल सातमी ॥ राग कानमो॥ ॥ कामिनी तुं मूकने महारो हाथ ॥ ए देशी ॥
॥ वनराज मन चिंतवे रे, कीधुं में कुण काम ॥ में अबला नारी जणी रे, बंमावी एह गम रे॥१॥ कामिनी तुं मूकने महारो शोष ॥ ए आंकणी ॥ वराज कहे कामिनी रे, इण वाते नहीं तुज दोष ॥ हूं पापी जूंमो थयो रे, मुजयी रायनो रोष रे ॥२॥ का ॥ नारी तें शुं जाणीयुं रे, मुज थाप्यो नरतार ॥ विधाता रूठी सही रे, के रूगे किरतार रे ॥३॥ का० ॥ मुजने को जाणे नहीं रे, इण नगरीनां लोक ॥ परदेशी बुं बापमी रे, तुजने मुजयी शोक रे ॥४॥ का० ॥ सुरतरु सम तें जाणीयो रे, दीगे अधिक स्वरूप ॥ नेद न जाण्यो माहिलो रे, लागी तुजने चूंप रे ॥५॥का॥रतन चिंतामणि सारिखो रे, तें करी काल्यो साच ॥ हुँ मूरख बापडो रे, नीवमझुं हुं काच रे ॥६॥
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( ६ए )
का० ॥ मात पिता तुज मानशे रे, मुजनो बोड्यां पास ॥ पर काजे दुःख कां सहे रे, जोली मनहीं विमास रे ॥ ७ ॥ का० ॥ हुं सेवक बुं शेठनो रे, पड्यो परवश हुं नार ॥ उए जाते हुं जाइशुं रे, आपां श्यो घरबार रे ॥ ८ ॥ का० ॥ किहां हंस किहां कागडो रे, संग मले कहो केम ॥ हुं जाते कोइ अतुं रे, केहवो मुजशुं प्रेम रे ॥ ९ ॥ का० ॥ कुंसर जणी कहे कामिनी रे, परखी कीधुं में काम ॥ मात पिता सढुको जलां रे, महारे तुमशुं काम रे ॥ १० ॥ का० ॥ सूर्य उगे पश्चिम दिशे रे, मही रसातल जाय ॥ समुद्र मर्यादा जो मिटे रे, मुजश्री ए काम न थाय रे ॥ ११ ॥ का० ॥ जिहां जाशो तिहां यावसुं रे, जेम शरीरनी बांह ॥ इण वाते जो पांतरुं रे, तो मुज जीवन कांह रे ॥ १२ ॥ का० ॥ वराज मन चिंतवे रे, एहनो पूरो राग ॥ एहवी नारी तो मिले रे, जो हुवे पोते जाग्य रे ॥ १३ ॥ का० ॥ एम सुखम रहेतां थकां रे, राजा चिंते एम ॥ लोक मांहे निंदा दुवे रे, मायां याये देम रे ॥ १४ ॥ का० ॥ कुमरीनी चिंता नहीं रे, कुमरी रहेशे रोय | तेणी विधे हुं मारशुं रे, को नवि जाणे लोय रे || १५ || का० ॥ वनराज मारण जणी रे, राय करे परपंच ॥ चार पुरुष तेमी कहे
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( ७० ) रे, जोइ सघला संच रे ॥ १६ ॥ का० ॥ वराज जाउ घरे रे, मर्दन देजो रंग ॥ चार पुरुष थइ सामटा रे, करजो ढीलां अंग रे ॥ १७ ॥ का० ॥ नस टालजो अंगनी रे, वेदनी लड़े काल ॥ ढील हवे करवी नहीं रे, त्रोडो मुजनुं साल रे ॥ १८ ॥ का० ॥ ते नर तिहांथी नीसारे, रायने करी प्रणाम ॥ सेवक तारा तो सही रे, अवश्य करीए काम रे ॥ १९ ॥ का० ॥ मागी शीख सनेहशुं रे, श्राव्या वचनी पास ॥ राजाना आदेशथी रे, करशुं सेवा उल्लास रे ॥ २० ॥ का० ॥ विविध तेल तिहां काढीयां रे, कुमर न जाणे भेद ॥ कुमरी नयणे निरखीयुं रे, देखी धरीयो खेद रे ॥ २१ ॥ का० ॥ कंत जी कहे कामिनी रे, चिहुंने बे मन कूम ॥ नस टालशे ए स्वामीनी रे, करशे सघलुं धूम रे ॥ २२ ॥ का० ॥ वराज कहे कामिनी रे, चिंता म करो कांय ॥ जेवुं जे नर चिंतवे रे तेहवुं तेहने याय रे ॥ २३ ॥ का० ॥ बेहु पासे बे बे मल्या रे, तेल लीयो सहु हाथ || मर्दन देवा उठीया रे, कुमरे घाली बाथ रे ॥ २४ ॥ का० ॥ यघा पाठा रगदल्या रे, नस काढी तत्काल || बे नर धरती पायस्या रे, बे नरे सांधी फाल रे ॥ २५ ॥ का० ॥ राजसनामें घ्यावीया
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रे, कांटा पमीया कंठ ॥ नासीने थमे श्रावीया रे, बे कीधा तिहां रे ॥२६॥ का॥ सर्व गाथा ॥५॥
॥ दोहा ॥ ॥ राजा मनमां चिंतवे, वात हुइ सहु फोक ॥ कामज कोश्नाव हुवा, मनमें धरतो शोक ॥१॥ एक उपाय करशुं वली, तिणथी सरशे काज ॥ आहेमा मिष तेमगुं, साथे श्रीवराज ॥२॥ पुप्फदंतने राय दीयो, तेजी वमो तुखार ॥ नर देखीने उडले, को न हुवे श्रसवार ॥३॥
॥ ढाल श्रामी॥ ॥ मनोहरना गीतनी देशी ॥ अथवा तप
सरिखं जग को नहीं ॥ ए देशी॥ ॥वाजी आणायो हो वालथी, मिले श्रति परचंम ॥ हो नरवर ॥ तेजी न खमे हो ताजणो, पामी करे शत खंग॥ हो नरवर ॥१॥ कुंवर तेमाव्यो हो तालमें, रमत रमवा काज ॥ हो न० ॥ ए शांकणी ॥ आदर दीधो हो अति घणो, बेठगे राजा पास ॥ हो न ॥ तीना तुरीय पलाणीया, दीधा राय उदास ॥ हो न०॥ कुं० ॥२॥ सहुको जन
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( 2 )
साथे हुआ, कुमर लीयो निज साथ ॥ हो न० ॥ श्रेष्ठ तुरी राये णीयो, मारण मांड्यं नाथ ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ ३ ॥ अश्वरतन देखी करी, मन चिंते ववराज ॥ हो न०॥ राजा हो मुजशुं कोपीयो, मारण मांड्यो साज ॥ हो न०॥ कुं० ॥४॥ कुमर जी आगे की यो, कुमर दुवो असवार ॥ हो नवाजां हो विविधे वाजीयां, मूकण लागो कार ॥ हो न० ॥ कुं० ॥५॥ घोडो हो उंचो उबल्यो, दुवा सहुको हेरान ॥ हो न०॥ सदुको जन एम उच्चरे, पत जाशे प्राण ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ ६ ॥ सहुको जन लगा रहो, निरखो लगा लोक ॥ हो न० ॥ कुंवरी नयणे निरखती, धरती मनमें शोक ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ ७ ॥ पवन ती परे फेरीयो, लै चाल्यो आकाश ॥ हो न० ॥ कलशुं घोडो केलव्यो, आयो आपणी पास ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ ८ ॥ राजा हो मुख विलखुं कीयुं, जे जे करुं हुं उपाय ॥ हो न० ॥ ए नर नहीं ए देवता, एम चिंते मन राय ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ ए ॥ राजा हो मंदिर यावीयो, श्राव्यो घर ववराज ॥ हो न० ॥ कुंवरी मन आणंदीयुं, सिधां वांबित काज ॥ हो न० ॥ कुं० ॥ १० ॥ मंत्रीसर राये तेमीया, तेड्या बुद्धिनिधान ॥ हो न० ॥ चित्रलेखा पुत्री कन्दे,
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(७३) मूके राय प्रधान ॥ हो न०॥ कुं०॥ ११॥ कुंवरी तें जुगतो कीयो, तुजथी न पड्यो वंक ॥ हो न॥सुख जोगवो संसारनां, नाणो मनमें शंक ॥ हो न० ॥ कुंग ॥ १५ ॥ राय तणे आग्रहे करी, पूजे तुं जरतार ॥ हो न० ॥ नाम गम कुल एहनु, पूरे तुं सुविचार ॥ हो न० ॥ कुं० ॥१३॥ राजा हो वचनज मानीयु, सहुए दीधुं मान॥हो न॥कंतजणी कहे कामिनी, वात सुणो राजान ॥हो न०॥ कुं० ॥१४॥कर जोमी कहे कामिनी, लोक करे सहु हास ॥ हो न ॥ देव करी में मानीयो, ते केम हुवे उदास ॥ हो न ॥ कुंण् ॥ १५॥ महारे मन तुंहीज वसे, जो अवर न काय ॥हा न० ॥ वात प्रकाशा हा आपण। जिम मुज आणंद होय ॥ हो न०॥कुं०॥१६॥ जावजीव हुँ तो समी, जीवन मरणुं तो साथ ॥ हो न० ॥ प्राण दीसे हो ताहरा, साचुंमानो नाथ॥हो न ॥ कुं० ॥१७॥ मात पिताथी हुँ विडमो, बाहिर मांड्यो वास ॥ हो न० ॥ एकण जीवने कारणे, खामी मनहीं विमास ॥ हो न ॥ कुं०॥ १७॥ अन्न पाणी तोही जखं, जो करशो तुम वात ॥ हो न० ॥ नव बीजे हुं बोलशें, नहींतर श्रातमघात ॥ हो न०॥कुंग
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(४) ॥ए॥ घरणी हठ मांड्यो घणो, महकी दीयो तब रोय ॥ हो न ॥ हैडं पाहणे नाथशें, जाग्यो पूरव मोह हो न० ॥ कुं०॥२०॥कुंवरी मन मांहे चिंतवे, में पूबी कांही वात॥होन॥अति ताण्यो त्रुटे सही, होशे मांहे घात ॥हो न॥ कुं० ॥१॥ मौन करी कुमरी रही, कंथ दीधो में दुःख हो न०॥कंता रुदन निवारीए, जिम होये तुज सुख ॥ हो न० ॥ कुंत ॥ २५ ॥ नारी राख हो रोवतो, कायर न हुवो कंत ॥ हो न० ॥ वात पूबी में पाडली, जो दीगे एकंत॥होनण॥ कुं०॥३॥वात पूर्वी माहरी, पूरवली सुण वात ॥ हो न ॥ पुरपेगणे हुँ वसुं, नरवाहन मुज तात॥हो न०॥ कुं॥२४॥ हंसावलि राणी तणा, जाया बे अनिराम ॥ हो न॥जादव वंशे हो उपज्या, सास्यां उत्तम काम ॥ होनण॥ कुं० ॥२५॥ त्रीजो खंग पूरो हुई, कुमरी आनंदपूर ॥ हो न॥ वात कही सहु पाबली, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ हो न ॥ कुंग ॥ २६ ॥ सर्व गाथा ॥ ६११ ॥ इति श्रीहंसराजवत्सराजप्रबंधे कुंतीनगरगमनकन्यापरिणयननामा तृतीयः खंमः संपूर्णः ॥३॥
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(१५) ॥ खंग चोथो ॥ ॥ दोहा ॥
॥ शुभ मति दीजे सरसती, माया करी मुज माय ॥ श्रीजय तिलक सूरींद गुरु, प्रणमुं तेहना पाय ॥१॥चोथो खंड सुणजो चतुर, सुणतां चरिज थाय ॥ चित्रलेखा नारी जणी, वात कहे समजाय ॥ २ ॥ मात पिताए माहरु, नाम दीधुं वछराज ॥ लघु बंधवने घ्यापीयुं, नाम ते श्री हंसराज ॥३॥ जन्मकालथी नीसख्या, बे वधीया परदेश || पन्नर वरष तिहांकणे रह्या, नेट्यो आवी नरेश ॥ ४ ॥ देशवटे बेहु नीकल्या, राणी तो सरूप ॥ मनकेसरी म राखीया, लोक न जाणे नूप ॥ ५ ॥ ॥ ढाल पहेली ॥
॥ जले पधारया तुमे साधुजी रे ॥ ए देशी ॥ ॥ बांधव राणी नीकल्या रे, पहोंच्या वडे उद्यान रे ॥ वाट घाट मुंइ संघता रे, वृक्ष तपां नहीं ज्ञान रे ॥ १ ॥ जुवो रे विचित्र गति कर्मनी रे, कर्म करे ते होय रे ॥ विधिलिखियो ते नवि मिटे रे, एम कहे सहु कोय रे ॥ जुवो० ॥ २ ॥ लघु बंधव तरस्यो थयो रे, लेवा गयो वारि रे ॥ पाणी लेइ पाटो वढ्यो रे, वांसे कर्म प्रकार रे ॥ जुवो० ॥ ३ ॥ हंस कुमर सापे मश्यों
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(७६)
रे, मज मन हवो साल रे ॥ ना लेश्ने हं वत्यो रे, बांध्यो वमनी माल रे ॥ जुवो ॥४॥ कुंती नगरे हुँ गयो रे, चंदन लेवा काज रे॥ चंदन लेश पालो वल्यो रे, नवि देखुं हंसराज रे ॥ जु० ॥५॥ दैवसंयोगे उतस्यो रे, में दीग बंधव पाय रे॥आलमाल आंगे इयां रे, जीवे ने सही नाय रे॥ जु॥६॥हुं वली पाडो आवीयो रे, राखी थापण शेउ रे॥ चोर करी मुज जालीयो रे, गले घाली मुज वेप रे । जुन ॥७॥जिम तलारे राखीयो रे, पुप्फदंत लीधो साथ रे॥जिम हुं शहांकणे आवीयो रे, में परणी तुने हाथ रे॥ जु०॥७॥ पूर्व संबंध पूरी कह्यो रे, तेहवे श्राव्यो राय रे ॥ चित्रलेखा उठी उतावली रे, प्रणमे तातना पाय रे ॥ जुम् ॥ ए॥ नाम गम कुमरी कह्यां रे, जाणी पूरव वात रे॥ मनवम नांगो रायनो रे, एह कुंवर विख्यात रे ॥ जु॥ १० ॥ राय कहे तव शेउने रे, श्राणो श्हांकणे बांध रे ॥ खुंटी लीयो धन एहनुं रे, मारो एहने कांध रे॥ जु०॥ ११ ॥ कुंवर कहे राय सांजलो रे, महारे जे ए बंध रे॥ सुख कुःख महारे इण समां रे, सो केम हणीए कंध रे ॥जु०॥१५॥यतः॥ “गुण कीधे गुणही करे रे, ए ले
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( 9 )
लोकाचार रे ॥ अवगुण कीधे गुण करे रे, उत्तम एह आचार रे ॥ १ ॥ राजा मन मांहि हरखीयो रे, हरख्यो सह परिवार रे ॥ कुंवरी न पडे पांतरो रे, जोइ कीधो जरतार रे ॥ जु० ॥ १३ ॥ उत्सवशुं राय आणीयो रे, शणगारयां सहु हाट रे ॥ नारी कंत साथे करी रे, जोवे नरना था रे ॥ जु० ॥ १४ ॥ गोखे चढी जुवे गोरमी रे, दीसे देवकुमार रे ॥ परमेशर या घड्यो रे, एहवो नहीं संसार रे ॥ जु० ॥ १५ ॥ वछराज सुख जोगवे रे, सहुको माने छाप रे ॥ हंसराज हैडे वसे रे, खटके साल समान रे ॥ जु० ॥ १६ ॥ किहां कुंती नगरी रही रे, किहां कनकावती एह रे ॥ समुद्र विचे श्रमो पड्यो रे, एम चिंतवे व तेह रे ॥ ० ॥ १७ ॥ कर्म मेले तिहां शुं ययुं रे, पुष्पदंत मलीयो राय रे ॥ शीख दीयो हवे स्वामीजी रे, थापण स्थानक जाय रे ॥ जु० ॥ १८ ॥ ववराज वाणी सुणी रे, दुबो साथ साथ रे ॥ वे कर जोमी विनवे रे, सुजो पृथिवीनाथ रे ॥ जु० ॥ १५ ॥ दीजे शीख सनेहशुं रे, जेम जाउं महाराज रे ॥ कुंती नगरे जाइशुं रे, एम बोले वछराज रे ॥ जु० ॥ २० ॥ राय कहे सहु माहरूं रे, देशुं तुजने राज
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( ७ ) रे ॥ सुख जोगवो देवता समां रे, जावानुं शुं काज रे ॥ जु० ॥ २१ ॥ तुम पसाये सहु माहरे रे, बहुली बे भुजाय रे ॥ हंस कुमर मलबा जणी रे, जाशुं पृथिवीनाथ रे || जु० ॥ २२ ॥ ज्यां लगे नावुं त्यां लगे रे, पुत्री राखो स्वामी रे ॥ थोमा दिनमें श्रावसुं रे, सहीय करी हुं काम रे ॥ जु० ॥ २३ ॥ चित्रलेखा कहे कंतने रे, ए नहीं नारीनी रीत रे ॥ जिम पुरुषोनी गंहमी रे, तेहवी तो मो प्रीत रे ॥ जु० ॥ २४ ॥ हठ लीधो नारीए घणो रे, तव ते मानी वात रे ॥ करो सकाइ चालशुं रे, जणाव्यो हवे तात रे ॥ जु० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ ६४१ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ शुभ दिन शुभ वेला कुमर, पूढी नृप परिवार ॥ राजा दीधो दायजो, पहोंचाडे नर नारी ॥ १ ॥ राजा राणी बेहु जणां, शीख दीये ससनेह ॥ पुत्री आपण कंतने, मत तुं दाखे बेह ॥ २ ॥ दली मली सहुको चल्यां श्राव्यां आपण ठाम ॥ पुष्कदंत वच्छराज बे, चाल्या आपण गाम ॥ ३ ॥ समुद्र तणी पूजा करे, कुशल उतारो साम ॥ खाखां पूगी मूकीने, विधिशुं करे प्रणाम ॥ ४ ॥ हंकारयां प्रवहण सदु, बेटां
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( डए )
कामिनी कंत ॥ शेठ नारी निरखी तिहां, लाग्यो खारे खंत ॥ ५ ॥ पुष्पदंत वचराजशुं मांगी बहुली प्रीत ॥ कुमरीए मन जाणीयुं, ए नहीं रुमी रीत ॥ ६ ॥ पुप्फदंत मन चिंतवे, मेलवी नारी एह ॥ परदेशी बे एकलो, एहने दाखुं बेह ॥ ७ ॥ नारी लेवा कारणे, मांड्यो तेणे प्रपंच ॥ पाणी मांहे परठवुं, जोइ सघलो संच ॥ ७ ॥ माजी सहु हाथे कीया, सहु मनावी वात ॥ पंच दिवस पूरा हुवा, वहेतां दिन ने रात ॥ एए ॥ बडे दिनने अंतरे, प्रहर गइ जब रात ॥ ववराज श्रावो इहां, मत्स्य अपूरव जात ॥ १० ॥ वराज पहोतो तिहां, दीगे नहीं लगार ॥ वांसे थी धक्कावीयो, पाड्यो समुद्र मकार ॥ ११ ॥ वछराज पतां थका, गणीयो तिहां नवकार ॥ अशरण शरण ए माहरे, मंत्र तो जे सार ॥ १२ ॥ मंत्र प्रजावे तिहां पड्यों, मगरमत्स्यनी पूर्व ॥ वछराज पुण्ये करी, चाल्यो तिहांथी उठ ॥ १३ ॥
॥ ढाल बीजी ॥
॥हरिया मन लागो, रंग लागो थारी चाल ॥ ए देश ॥ ॥ परुतां पाणी वाजीयुं रे, चित्तमें चमकी नारी रे ॥ कंत कीधुं किस्युं ॥ जोवा लागी सुंदरी रे, नवि
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(७०) देखे जरतार रे॥०॥१॥ आसपास सहु जोश्यो रे, किहां न देखे कंत रे॥कं०॥ लोक सहु देखी करी रे, मन मांहे पमी ब्रांत रे ॥ कं० ॥२॥ रोवंती रोवामीयां रे, प्रवहणवाला लोक रे॥ कं ॥ एकलडी हुं हुश् हवे रे, धरवा लागी शोक रे॥ कं० ॥३॥ सार करो कंत माहरी रे,कीधो कांही वियोग रे॥०॥ मुज मन तुंहीज वालहो रे, धरती मन मांहे शोक रे ॥०॥४॥न्हानपणे मूड नहीं रे, पेट धरी कांय माय रे॥०॥ कंता तुं विण एकली रे, कहो केम दहाडा जाय रे ॥ कं०॥५॥ तुज पसाये सुख घणां रे, में जोगवीयां स्वामी रे ॥ कं ॥ तुकारो तें नवि दीयो रे, बलिहारी तोरे नाम रे ॥ कं० ॥ ६॥ हैमा तुं फटे नहीं रे, मूके मुख निःश्वास रे ॥ कं० ॥ तो विण जीव्यो कारिमोरे, कंत तणीशी आश रे॥कं० ॥७॥ साये चूकी मरगली रे, जोवे दह दिशि साथ रे॥॥ बीजा जन देखे सहु रे, एक न देखे नाथ रे॥०॥७॥तुज पहेली मू नहीं रे, करती विरह विलाप रे ॥ कं० ॥ आप कमाइ जोगवं रे, पूरव कीधां पाप रे ॥कं० ॥ ५ ॥ पूरव जव में पापिणी रे, शोक्यने दीधो शाप रे ॥ कं० ॥ पुत्र तणुं सुख नवि
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( १ )
लघुं रे, अथवा जपीया जाप रे ॥ कं० ॥ १० ॥ के पराइ थापण रही रे, के में दीधुं घाल रे ॥ कं० ॥ के पाणीने कारणे रे, सरोवर फोकी पाल रे ॥ कं० ॥ ११ ॥ के में रमत कारणे रे, तरुनी मोमी माल रे ॥ कं० ॥ गर्न गलाच्या पापिणी रे, उषध वेषध घाल रे ॥ कं० ॥ १२ ॥ के काचां फल त्रोमीयां रे, रसना केरे खाद रे ॥ कं० ॥ अगल पाणी वावश्यां रे, मनमां आणी प्रमाद रे ॥ कं० ॥ १३ ॥ के में माला खेंचीया रे, मां नाख्यां हाथ रे ॥ कं० ॥ के में परनां धन हस्यां रे, मार्या बहुला साथ रे ॥ कं० ॥ १४ ॥ पंखी घाल्यां पांजरे रे, के घाल्यां मृग पास रे ॥ कं० ॥ मंदमति में पापिणीए रे, के में बलाव्यां घास रे ॥ कं० ॥ १५ ॥ तिल सरशव पीलावीया रे, लाज तो में हेत रे ॥ कं० ॥ के में सूरु करावीयां रे, के में खेमाव्यां खेत रे ॥ कं० ॥ १६ ॥ के पूरव जव पापिणी रे, मारी जू ने लीख रे ॥ कं० ॥ के में दान देतां थका रे, दीधी मूंकी शीख रे ॥ कं० ॥ १७ ॥ के में मोड्या करमका रे, सो केम होवे सुख रे ॥ कं० ॥ मंत्रे गर्न बंधावीया रे, शोक्यने दधुं दुःख रे ॥ कं० ॥ १८ ॥ ष राख्युं में पारकुं रे, घाली पेटे जाल रे ॥ कं० ॥ के में परनां धन दयां रे;
हं० ६
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(२) मात विडोड्यां बाल रे ॥ कं०॥रए ॥ के मरजावे सही रे, मास्या विष दहाथ रे॥०॥के में लोन वशे करी रे, खूट्या बहुला साथ रे ॥ कं० ॥ २० ॥ के केहनां घर नांगीयां रे,बालपणे में बाल रे॥०॥ होजो अंधां पांगलां रे, दीधी एहवी गाल रे ॥ कं० ॥१॥ निंदा कीधी साधुनी रे, आहार दीयो अंतराय रे ॥ कं० ॥ पाप विचारे आपणां रे, केतांक कहेवाय रे ॥ कं० ॥ २५ ॥ वार वार फूरे घणुं रे, नाखे आंसुपात रे ॥ कं० ॥ इण जीव्या मरवु नबुं रे, करशुं श्रातमघात रे ॥ कं० ॥२३॥ चित्रलेखा कहे स्वामिनी रे, जीवंतां सहु होय रे ॥कं०॥ नानुमती ने सरस्वती रे, बेहु मख्यां सहु जोय रे ॥ कंग ॥ २४॥ धीरपणुं धरीए हश्ये रे, महक न दीजे रोय रे ॥ कंग॥ शील नली पेरे पालतां रे, आपद् पूरे होय रे ॥ कं ॥ २५ ॥ शील थकी सुख कोणे लह्यां रे, ते सुणजो दृष्टांत रे ॥ कं० ॥ राम घरणी सीता सती रे, आवी मिल्यां बे अंत रे ॥ कं० ॥२६॥ मूकी अबला एकली रे, सिंहल हीपे नारी रे ॥ कं० ॥ पग उलांस्या नारीना रे, पद्मावती जरतार रे ॥ कं० ॥ २७ ॥ नल राजा नारी तजी रे, मूकी दंग
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( ८३ )
॥
कार रे ॥ कं० ॥ बार वरपे मेलो दुवो रे, पुण्य तणे परकार रे || कं० ॥ २८ ॥ शंख राजा बेदावीया रे, कलावती कर दोय रे ॥ कं० ॥ जीवंतां मेलो हुवो रे, (ते तो ) पुण्य तणां फल जोय रे ॥ कं ॥ २७ ॥ जीव दृढ मन कर आपणुं रे, रोयां न लाने राज रे ॥ कं० ॥ जीवंतां मेलो होशे रे, निश्चेशुं वत्स - राज रे || कं० ॥ ३० ॥ सर्व गाथा || ६८४ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥
॥ राग गोमी ॥ वणजाराना गीतनी देशी ॥ ॥ मोरा जीवन हो तो विष रह्यो रे न जाय, एकलको हुं केम रहुं ॥ मोरा प्रीतम हो । मोरा जीवन हो एहवो जग नहीं कोइ, मननी हो वात किने कहुं ॥ मो० ॥ १ ॥ मो० ॥ समुद्र जणी दे शीख, शरणे राखो स्वामीने जले ॥ मो० ॥ मो० ॥ मरण शरण मुज तोय, ऊंपावे कंत नवि मिले || मो० ॥ २ ॥ मो० ॥ म प म प तुं नार, रत्नाकर एह कहे ॥ मो० ॥ मो० ॥ ववराज तुज कंत, मछ पूर्व बेगे वढे ॥ मो० ॥ ३ ॥ मो० ॥ तुजथी पहेलो कंत, कुंती नगरे जायशे ॥ मो० ॥ मो० ॥ तिहां मलशे जरतार, आगे आणंद थायशे ॥ मो० ॥ ४ ॥ मो० ॥ अंबर
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( ८४ ) एहवी वाणी, सुणीने मन हरखित हुइ || मो० ॥ मो० ॥ दवे हुइ जीवन याश, मरण थकी सुसती थइ । मो० ॥ ५ ॥ मो० ॥ ज्यां लगे मले मुज कंत, शरीर सनान करूं नहीं ॥ मो० ॥ मो० ॥ लेशुं निरस श्राहार, चीर नवुं पड़ेरुं नहीं ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ तेहवे आयो शेठ, मन दृढ कर तुं कामिनी ॥ मो० ॥ मो० ॥ में नवि जाणी वात, जल बूको वच जामिनी ॥ मो० ॥ ७ ॥ मो० ॥ शेठ जणे सुप नारी, बडी रात्रे लख्यो इस्यो || मो० ॥ मो० ॥ ते किए टाल्यो जाय, कहो पशोष कीजे किस्यो । मो० ॥ (नावे सही वश्वराज, मूवाशुं दुःख की जे किस्यो ) । मो० ॥ ८ ॥ मो० ॥ ढुं हुं तहारो दास, जे जोइए ते पूरशुं ॥ मो० ॥ मो० ॥ ज्यां जीवे त्यां सीम, माथे कीधे राखशुं ॥ मो० ॥ ॥ मो० ॥ मोशुं धर तुं राग, मो सरखो सही नहीं मिले ॥ मो० ॥ मो० ॥ जिणे नाख्या मुज कंत, तिपशुं मन कहो किम मले ॥ मो० ॥ १० ॥ मो० ॥ तव तेथे जाणी वात, इण पापीए पति माहरो ॥ मो० ॥ मो० ॥ नाख्यो समुद्र मकार, दिवे कंत थाये माहरो ॥ मो० ॥ ११ ॥ मोनारी चिंते एम, शीयल किविध राखशुं ॥मो० ॥ मो० ॥ ताया जाशे बेह, मधुर वचन हुं जाखशुं ॥
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(५) मो० ॥ १२॥ मो० ॥ महारो तोशुं राग, कंत बता पहेलो हुतो ॥ मो मो॥माग्या ढलीया आज, मदारे तोशु मतो॥ मो० ॥१३॥मो० ॥ वात अडे शहां एक, तुरत कंत कीजे नहीं ॥ मो० ॥मो॥जो कीजे ए काम, प्रेत थ पीडे सही ॥ मो० ॥१४॥ मो० ॥ पमखो मास मास, जिम कहेशो तेम कीजीए ॥मो॥मो॥ जिहां ने थारो वास, मुहूर्त तिहांकणे लीजीए ॥मो० ॥१५॥मो॥शेठे मानी वात, धीरपणुं मनमें धडे । मो० ॥ मो० ॥ धववं एटलुं दूध, हवे कारज महारु सयुं ॥ मो० ॥१६॥ मो॥ पुप्फदंते धर्यो उहास, नगर कदी जाशुं वही ॥ मो० ॥ मो० ॥ कहे श्रीजिनोदय सूरि, हवे वछराजनी कहुं सही ॥मो॥१७॥ सर्व गाथा॥१॥
॥ दोहा ॥ ॥ पाणी मांहे पमतां थका, नव पद धरीयुं ध्यान ॥ नवकारे की, किस्युं, दीधुं जीवितदान ॥१॥मछ पूठे जा पड्यो, बेगे जिम असवार ॥ तिण विध देवे प्रेरीयो, लंघे जलनिधि पार ॥२॥सात दिवस लगे सामटो, वह तरीयो जल मांहि ॥ कुंती नगरी मूकीयो, बेठो तरुनी हि ॥३॥
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( ८६ ) ॥ ढाल चोथी ॥
॥ राग सिंधुको ॥ हाथीया रे हलके वेखावे महारे प्राणोरे ॥ अथवा ॥ कर्म परीक्षा करण कुमर चल्यो रे ॥ ए देशी ॥ उदक लेने अंग पखाली युं रे, पीधुं निर्मल वार ॥ वात विचारे बेठो पाठली रे, कोण करशे मारी सार ॥ १ ॥ चित्रलेखानी चिंता अति घणी रे, कोइ नहीं बे पास ॥ एकलमी ते अबला किम रहे रे, होशे सहीय निराश ॥ चित्रलेखा० ॥ २ ॥ मारे कारण नारी जूरशे रे, रहेशे सहीय उदास ॥ नारी विहुएं जीव्युं कारिमुं रे, व मूके निःश्वास ॥ चि० ॥ ३ ॥ महारुं डूषण नारी कोइ नहीं रे, अचरिज ए दुइवात ॥ आगे विबोहां नारी कंते हुआ रे, नाखे
सुपात ॥ चि० ॥ ४ ॥ रलो रोयो को जाऐ नहीं रे, होशे जे होवणहार || दुःखडे कीधुं कांही नवि पामीए रे, हैडे कीधो विचार ॥ चि० ॥ ५ ॥ सात दिवसनी निद्रा सामटी रे, सुतो बाग मकार ॥ पुण्य प्रजावे सह तरुवर फल्यां रे, जाइ जुई सहकार ॥ चि०॥६॥ लोक देखीने चरिज उपन्यो रे, मालप पासे जाय ॥ दैवसंयोगे वामी नवपल्लव थइ रे, सलखु सांजली धाय ॥ चि० ॥ ७ ॥ बाग फरीने जोवे
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(७) चिहुं दिशे रे, जिहां सुतो वहराज ॥ श्रावी निरख्यो नारी तेहने रे, रूपे जिस्यो देवराज ॥चि०॥॥पग पद्म देखी मालण चिंतवे रे, पुरुष नहीं सामान्य ॥ एहने पुण्ये ए वन पदव्यु रे, एहने देशुं मान॥॥चिण ॥एमालण बेठी आवी हकडी रे, उलासे तसु पाय ॥ जोर करीने कुंवर जगावीयो रे, उलट अंग न माय ॥चि॥१०॥श्रालस मोमी कुंवरजी उठीया रे, कुमर करे रे जूहार ॥ देव आशीषने सलखु एम कहे रे, तुं श्रायो पुण्य प्रकार॥चि०॥११॥फल फूल लेशकुमर श्रागे धस्यां रे, पूजे पूरव वात ॥ एकाकी तुं कुमर दीसे जलो रे, नहीं को तुज संघात ॥ चि० ॥१२॥ करमप्रसादे माता हुं एकलो रे, माय अबुं निर्धार ॥ मननी वात कहुं माय केहने रे, एक अडे किरतार॥ चि॥१३॥हुँ परदेशे जावा नीकल्यो रे, आव्यो क्षणे आराम ॥ तुज देखीने महारुं फुःख टब्यु रे, सिधां वांडित काम ॥ चि०॥१४॥ पुःखीयां दीगं दुःखहूं सांजरे रे, मालण मूके धाह॥सरल निशासा सलखु मूकती रे, कुमरे राखी साह चि०॥१५॥ फुःखनी वात कहो मुज मातजी रे, जिम हुँ जाणुं वात ॥ मालण जंपे लोचन जल जरी रे, हुं बुं हां विख्यात
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(ज) ॥ चि ॥ १६ ॥ पांच पुत्र हता व माहरे रे, वली
हो जरतार ॥ कर्मसंयोगे वह सहु ए मूया रे, नहीं जल पावणहार॥चि०॥१७॥ करजोमीने कुमर जणी कहे रे, महारे बहुली प्राथ॥पुत्र करीने था' तुजने रे, श्रावो महारी साथ ॥चि० ॥ १७॥ परउपकारी वात मानी तिहां रे, थाप्यो सलखु पुत ॥ घरनो नार दीयो सहु तेहने रे, घर पाण्यो निज सुत ॥ चि॥१॥ विविध प्रकारे गुंथे बेरखा रे, गुंथे नवसर हार ॥ फूलदमा गुंथे बहु नातिना रे, एम करे व्यापार॥चि॥२०॥काम करतां नारी न विसरे रे, बीजु नावे चित्त ॥ वन जश्ने वनराज पारडे रे, पूरवली तिण प्रीत ॥ चि०॥ १॥ सोहिला दहामा कुःखमां निर्गम्या रे, दिवस न लागे नूख॥राते सुतो वनराज वलवले रे, नारी केरे फुःख ॥ चि॥२२॥ हवे वलराज सुखे रहेतां थका रे, मन की, एकांत ॥ श्रीजिनोदय कहे नारी तणुं रे, सुणजो सहु वृत्तांत ॥चि०॥२३॥सर्व गाथा॥ २॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ नाहलीयाम जाजो गोरी रावट वटे रे॥ए देशी॥
॥ प्रवहण पवने प्रेरीयो रे, वाला चाले दिन ने
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(ए) रात ॥ सती शीले सुखे वहे रे, हवे नारीनी सुणजो वात॥१॥वालमीया तुं जाये कुंती नगरी पाधरो रे, जिहां डे शेग्नुं गेह ॥ तिहांकणे गयाथी कंता तुं मिले रे, जिम सुख उपजे देह ॥ वालमीथा ॥२॥ ए आंकणी॥प्रवहण समुथी उतस्यां रे, वली उत रीयां लोक ॥ नगरी निरखी नयणशुं रे, जाग्यो सविहु शोक ॥ वा० ॥३॥ नगरी बाहिर डेरा कीया रे, जतास्या सहु नार ॥ पुप्फदंत मन मांहि चिंतवे रे, हिवे करशुं एहने नार ॥वा॥४॥ वधावो आगे मूकीयो रे, मुम्मण हुई उबाह ॥ सहुको जन आर नेटीया रे, उलट अंग न माय ॥वा॥५॥ लोक वाणी सहुको कहे रे, शेठे परणी नारी ॥राजकुमरी श्ण सारखी रे, को नहीं ले संसार ॥वा॥६॥चित्रलेखा थाणी घरे रे, कीधा बहुला जंग ॥ हवे गृहिणी हुश् माहरी रे, नारी राखो मो\ रंग॥वा॥७॥ शेठ तमे सुसता रहो रे, सुसते सीके काज॥गरीने पीजे सही रे, उतावलां न लाने राज॥वाणाणा मालण वात सुणी सहु रे, श्रावी कुंवरनी पास ॥ पुप्फदंत शेठ शहां श्रावीया रे, सघलो कीयो प्रकाश ॥ वाण ॥ ए ॥ वात सुणी मन हरखीयो रे, पूगी मननी
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( ए० )
आश ॥ नारी मुजने सही मिले रे, हवे जांग्यो मन उदास ॥ वा० ॥ १० ॥ कुमर कहे माता सुणो रे, तुमने बे पग फेर ॥ नित्य श्रापुं कुसुम हुं तुम जी रे, श्रागे करो हजूर ॥ वा० ॥ ११ ॥ ववराजे कीधुं किस्युं रे, आगे चतुर सुजाण || चित्रलेखाने कारणे रे, कीधो देह प्रमाण ॥ वा० ॥ १२ ॥ कंठ जणी कीधो चलो रे, पढेर नवसर हार ॥ बाजुबंध ने बहेरखा रे, चरणा कंचू सार ॥ वा० ॥ १३ ॥ पुष्प तषां सहु लूगमां रे, लखीयुं श्रापणुं नाम ॥ कुशल देम लखीयां सह रे, नारी आव्यो बुं इष गाम ॥ वाण ॥ १४ ॥ मालुं नरीयुं फूलनुं रे, नीचे घाली नेट ॥ माल माथे लेइने रे, पहोती तिहांकणे देव ॥ वा० ॥ १५ ॥ शेठ जी आगे धरयो रे, देखी धर्यो उल्लास ॥ ले जा ए महेलमां रे, पहुंचो नारी पास ॥ वा० ॥ १६ ॥ माल ते मांहे गइ रे, लागी कुमरी पाय ॥ नेट थाली में तुम जणी रे, दीठे आणंद थाय ॥ वा० ॥ १७ ॥ तें मुजने महोटी करी रे, माता नावे मुजने काम ॥ कंत पखे कीजे किस्युं रे, शुद्ध नहीं मुज स्वामी ॥ वा० ॥ १८ ॥
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(ए) पान फूल लेवो तेहनो रे, माता मुजने ने सही नीम ॥ वस्त्र नवु पहेलं नहीं रे, जिहां न मले तिहां सीम ॥ वा० ॥ १५ ॥ मालण फूल परहां कीयां रे, कंचू लीधो हाथ ॥ अलगो नयणे नीहालीयो रे, कीधो ले सही नाथ ॥ वा ॥ २०॥ दीतुं नाम कंतनुं रे, दी आपण नाम ॥ दीगं मन आणंदीयुं रे, विधिशुं करे प्रणाम ॥ वा ॥ २१॥ ढाल हुश ए पंचमी रे, वांच्या आणंदपूर ॥ आगे वात सहु पूबशे रे, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ वा ॥२२॥ सर्व गाथा ॥ ए॥
॥दोहा॥ ॥ खस्तिश्री कुंती थकी, लिखितं श्री वनराज ॥ कुशल देम हुं श्रावीयो, फुःख म करे मो काज ॥१॥ सलखु मालणने घरे, रहुं बुं सदा उदास॥ परमेसर जाणे सही, केहवो करुं प्रकाश ॥२॥ हम तुम जिहांथी विड्यां, करवी निंद हराम ॥ अन्न पाणी निरतो ज, हवे जीव आयो ठाम ॥३॥ उखाणो नदी नावनो, आय मिल्यो श्हां गम ॥ सहीयारो समुज लगे, तुम हम हवे प्रमाण ॥४॥
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(ए) ॥ ढाल बही ॥
॥ राग मल्हार || लिंगमीनी देशी ॥ ॥ कुमरी कुमरी अक्षर देखीने रे, जाग्यो मनमां मोह ॥ कुमरने कुमरने राख्यो साहेबे जीवतो रे, जाग्यो सहु दोह ॥ १ ॥ जीवतां जीवतां राजेसर सहु
वी मले रे, मूत्र केहो सोस ॥ जायने जमारो श्राश विबुद्धको रे, कंत धरयो मन रोष ॥ जीव० ॥ २ ॥ कंत कंत पखे हुं रही जीवती रे, ते तो सायर दोष ॥ ताहो रे ताहो कंतो तुज यावी मले रे, तिए में कीधो शोष ॥ जीव० ॥ ३ ॥ नाहले नाइले उलंना लखीया कारिमा रे, मूल न जाणे वात ॥ तहारे तहारे कारणे हुं फूरती रहुं रे, सदा श्रहो ने रात ॥ जीव० ॥४॥ में तुज में तुज कारण कंता परिहरया रे, रुमा सरस आहार ॥ तन भूषण तन भूषण कंता सहु तज्यां रे, सो जाये किरतार ॥ जीव० ॥ ५ ॥ घोडो ते घोडो ते दोमीने मरे रे, सार न लहे सवार ॥ घोमाने घोमाने राजेसर दूषण को नहीं रे, बेसणहार गमार ॥ जीव० ॥ ६ ॥ तारे तारे कारण हुं दुःखणी हुइ रे, कूरी दिन ने रात ॥ सुडे सुडे सिंचीयुं वाला में हैयमलुं रे, पण तें न जाणी वात ॥ जीव० ॥ ७ ॥ मरम मरम
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(ए३) वचन प्रियनां वांचीने रे, मूणी तिहां नारी ॥ वली उठी वली उठी धरणी पडे रे, कंत न लाधी सार॥ जीवालामालणी मालपीमन विल कीयु रेध्रुजण लागी तत्काल ॥चित्रलेखा चित्रलेखाने कारणे रे, सहु मलीयां तत्काल ॥जीव०॥ ए॥ सर्व गाथा॥ ७६२ ॥
॥दोहा॥ ॥ ए मोशी मायण अजे, लागी एहने पिंक ॥जो बोडे तो उगरे, कूटो काढी रंग॥१॥लोक सहुनेला हुआं, करे घणा संताप॥मालण मनमां चिंतवे, पूरव जवनां पाप ॥२॥ एक कहे मालण थकी, न होवे एवं काम ॥ नूत प्रेत लागो अडे, तिणनो जे ए विराम ॥३॥ राजकुमरी मालण नणी, पूजे सहु वृत्तांत ॥ कुसुम किणे ए गुंथीयां, जांगो मननी चांति ॥४॥ साची वात सलखु कहे, जूठ म नाखे मात ॥ मालण कहे सुत मादरे, कीधां विविध जात ॥५॥ - ॥ ढाल सातमी ॥ देशी अलबेखानी ॥
॥ अनुमाने राणी जाणीयुं रे लाल, सही हुवे मुज कंत प्यारा राय बे ॥सागर वचन साचुं हुईं रे लाल, पूगी मुज मन खंत ॥ प्या० ॥१॥ मनडु ते मोडं माहरूं रे लाल ॥ तो\ मोरी प्रीत ॥ प्या०॥
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(एव) माजिम गयवर रेवा नदी रे, जिम चकोर चित्त चंद ॥प्या गामाशालोक सह पासे कीयारेलाल, मालण राखी पास॥प्या॥ विनतमी एहवी लखी रे लाल,हुं तोरी दास॥प्या॥म॥३॥ रही न शकुं हुं तो विना रे लाल, पूगी न शकुं कोय ॥ प्या० ॥ महारे मन तुंहीज अ रे लाल, तोही न जाणुं कोय ॥ प्यान ॥ म०॥४॥ कंता तारे कारणे रे लाल, डोमी शरीरनी सार ॥ प्या० ॥ लूखे मन हुं श्हां रहुँ रे लाल, लेती निरस श्राहार ॥ प्या० ॥ म० ॥५॥ महारे तो विण को नहीं रे लाल, बीजो इण संसार ॥ प्या० ॥ बीजा पुरुष बंधव समा रे लाल, श्ण नव तुं जरतार ॥प्या॥म॥६॥शील नली पेरे पालतां रे लाल, आवी बुं इण गम ॥ प्या० ॥ पान मांदि संदेशमो रेलाल, लखीयुं श्रापणुं नाम॥प्या०॥ मण ॥७॥बीडं बांधी आपीयुं रे लाल, देजो पुत्रने हाथ ॥प्या०॥ दीधी मुद्धा हाथनी रे लाल, दीधी बहुली आथ ॥प्या॥ म०॥ ॥ मालण श्रावी मलपती रे लाल, आवी थापण गेह ॥ प्या॥ बीडुं लइ आगे धयुं रे लाल, कुमरीए दी, जेह ॥प्या॥ मण ॥ए ॥ पान वांच्युं लश् प्रेमशुं रे लाल, हरख्यो
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(ए ) दियमा मकार॥प्यााचित्रलेखा साची सती रे लाल, नहीं एहवी संसार ॥ प्या० ॥ म ॥ १० ॥ हंस कुमर वनराजने रे लाल, जिण विध मलशे आय ॥ प्या॥ सो विधि कहीशुं श्हांकणे रे लाल, सहु सुणजो चित्त लाय ॥ प्या०॥म०॥ ११ ॥ कुंती नगरोधी नीकल्या रे लाल, समुझे श्रीवराज ॥ प्या॥ कुंती नगरी तेहनो रे लाल, मृत्यु लह्यो नरराज ॥ प्या० ॥ म० ॥ १५ ॥ राजाने सुत को नहीं रे लाल, नगरी हुश् निर्नाथ ॥ सु० ॥ पंच शब्द नेला करी रे लाल, मलीया सहुको साथ ॥ प्या०॥ म० ॥१३॥पूर्ण कलश लेइ हाथीयो रे लाल, ले फरीयो सहुँगाम प्या॥ कबाडी केटहण घरे रे लाल,आयो तिहां किण गम ॥ प्या० ॥ म ॥ १५ ॥ कलश नमाव्यो हाथणी रे लाल, हंस हुई तिहां राय ॥प्या॥ वाजां तिहांकणे वाजीयां रे लाल, प्रणमे सहुको पाय ॥ प्या ॥ म॥१५॥ हंसराज राजा हुवो रे लाल, सहुको माने आण ॥ प्या॥वराज नवि विसरे रे लाल, हुतो जीवन प्राण ॥प्या ॥म ॥ १६ ॥ दिन दिन पमह वजावतो रे लाल, जे सुधि कहे वठराज॥प्या०॥ एकण नगरी तेहy रे लाल,
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(ए) आपुं तेहने राज ॥प्या० ॥म॥१७॥ सात दिवस वोख्या जिसे रे लाल, कुमरी सुणीयो ढोल ॥प्या॥ राजाने जाइ कहो रे लाल, कहीशु महारो बोल ॥ प्या० ॥ म० ॥ १७॥ मुजने मेलो पालखी रे लाल, जो तुमने डे चाह ॥ प्या० ॥ वलराज कडं वातमी रे लाल, राजाने धरी उछाह ॥ प्या०॥ मन ॥१॥ राजाने जर विनव्यो रे लाल, राय धस्यो उदास ॥प्या॥ ले जा तुम पालखी रे लाल, आणो महारी पास ॥ प्या०॥म॥२॥राजा मूकी पालखी रे लाल, वाया घरनी बार ॥प्या॥ पुप्फदंत मनमें हरखीयो रे लाल, में परणी सा नारी ॥ प्या० ॥ मण ॥१॥ किम मूकुं हुं एकली रे लाल, प्रसिद्ध करूं घरनारी ॥प्या॥सर्व महाजन मेलीने रे लाल, जायं लक्ष दरबार ॥ प्या० ॥ म ॥२२॥ मुम्मण शेठ परिवारशुं रे लाल, पुप्फदंत हुवो साथ ॥ प्या० ॥ पंच शब्द आगे वाजता रे लाल, हवे कुंवरी किण हाथ ॥ प्या० ॥ म ॥ २३ ॥ सर्व गाथा ॥ sए ॥
॥ ढाल पाठमी ॥ चोपाश्नी देशी ॥ ॥सहु महाजननी साथे हुर्ड, मुम्मण शेठने ले नेटीयो ॥ फांद हलावे चावे पान, हाथे धरे अनि
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मान ॥ १ ॥ हालो दालो सहुको कहे, पालखी पासे उजा रहे ॥ चांचो चांगो ने चांपशी, गांगो सांगो ने धर्मशी ॥ २॥ पेथो पोपट ने पदमशी, साकर सुंदो ने करमशी ॥ तेजो राजो ने लखमशी, कचरो घेलो ने पोमशी ॥ ३ ॥ वरधो वास ने वेरशी, जागो जेमल ने जेतशी ॥ नेतो खेतो ने खीमशी, नादो जादो ने भीमशी ॥ ४ ॥ राजो रामो ने राजशी, तालो तोलो ने तेजशी ॥ कीको वीको ने सोमशी, हरखो हीरो ने हेमशी ॥ ५ ॥ राणो रणमल ने रूपशी, कल्लो देलो ने कूपशी ॥ सूजो सामल ने समरशी, पासो घासो ने मरशी ॥ ६ ॥ एदवा एहवा महोटा शेव, सहुको बेठा वमला देव ॥ मांहोमांहे ढूंके इसे, राजाने जोशुं इण मिषे ॥ ७ ॥ पुष्कदंत घर जेवी नार, बीजी वर नहीं संसार ॥ सहुको महाजन पोले गया, बमीदार जइ आगे कह्या ॥ ८ ॥ परस्त्री बंधव हंसराज, आमी प्रियन बंधावे काज ॥ स बेस जाजां धयां, महाजन सहुको तिहां संचस्या ॥ ७ ॥ सहु महाजन की यो जूहार, प्रियब मांहि बेठी ते नार ॥ यथायोग्ये बेठा सदु, लोक मल्या बे सुवा बहु ॥ १० ॥ राय कहे सुपजो सहु लोक,
हं० ७
( 6 )
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(ए) जो बोलशो तो देशुंठोक ॥ राय वचन एहवां जब कह्यां, मान करीने बेग रह्या ॥ ११ ॥ कुंवरी बोली सुण राजान, एक चित्ते सुणजो दक्ष कान ॥ नगरी तुमारी पुरपेगण, बावन वीर तणुं तिहां गण ॥ १५ ॥ यादव वंश करे त्यां राज, उत्तम तणां समरे काज ॥ शालिवाहन सुत प्रगट प्रताप, नरवाहन राजा तुम बाप ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ ३ ॥
॥ ढाल नवमी ॥ नीनश्यानी देशी॥ ॥ तुम जननी हंसावलि रे, तसु जन्म्या बे अंगजातो जी ॥ हंस कुमर वडराज बेहु हुवा, नाम दीयां माय तातो जी॥१॥ हंस नरेसर सुणजो तुम चरित्त, नानपणानी वातो जी॥ पनर वरष विदेशे रह्या तुमे, जणीया दिन ने रातो जी॥हं०॥॥ मात पिता नेटणने काजे, पहोता पुरपेगणो जी॥मंत्रीए तिहां मारण मांमीया, हुकम कीयो राजानो जी ॥ हं० ॥३॥ प्रचन्नपणे मनकेसरी राखीया, दी, जीवितदान जी ॥ अश्वरत्न बे मंत्री श्रापीयां, दीधां रत्न प्रधान जी ॥ हं॥४॥ तिहांथी तमे बेहु नीसस्या, पहुता अटवी गमो जी ॥ हंस कुमरने तिरषा उपनी, जलनुं नहीं तिहां नामो जी ॥ हं०
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( (যTU )
॥ ५ ॥ वम बंधव तुजने कारणे, पहोतो जलने काजो जी ॥ जल लेने पाठो आवीयो, चपल गते वचराजो जी ॥ ० ॥ ६ ॥ हंस कुमरने विषधर मशीयो, जिम बांध्यो तरुमालो जी ॥ कुंती नगरी चंदन लेइने, श्राव्यो सरनी पालो जी ॥ हं० ॥ ७ ॥ कुमर न दीगे माले बांधी यो, दीघी बहुली धाहो जी ॥ हियहुं कूटे शिरने आहणे, दीघो हंसने दादो जी ॥ ० ॥ ८ ॥ पग लखीया हंस कुमर तथा दीधा सरला सादोजी ॥ फरी फरीने वन सह जोइयुं, मूकी मन परमादोजी ॥ ॥ ॥ कुंती नगरी पाठो आवीयो, शेठे दीधो दोषो जी ॥ चोर करीने राजा कालीयो, कीधो राजा रोषो जी ॥ ० ॥ १० ॥ वार रतन ने वली बिहुं तुरी, राख्यां मुम्मण शेठ जी ॥ कूडुं यात दीयुं कुमर जणी, नीची घाली दृष्टि जी ॥ हं० ॥ ११ ॥ चित्रलेखानां वचन सुखी करी, खलजलीया सहु लोको जी ॥ कुमति सहुने घ्यावी सामटी, सहुने पशे ठोको जी ॥ ० ॥ १२ ॥ सर्व गाथा ॥ ८१५ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ महाजन सह सांसे पंड्या, कीधुं मूंडु काम ॥ साथै श्राव्यासह, रोषे हरशे दाम ॥ १ ॥
इस
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(१००) माहोमांहे चिंता करे, उठ्यां सरशे काम ॥जो बेगं रहेश्यां हां, तो पमशे सही मान ॥२॥के राजा मारे सही, के कापे सह कान ॥ ग्रह पीमा सहने करे, बूटयां दीजे दान॥३॥एक कहे समरो सहु, जेहना जे ने देव ॥ तेहनी ते रदा करे, समस्यानी ने देव ॥४॥ शिर ढांकीने उठीया, भ्रूजन लाग्यां अंग ॥ पग पिंमी गोला चढ्या, मुम्मण नागे संघ ॥५॥ नासंता नागा हुआ, बूटण लागी लांग ॥ थरहर थरहर नीसख्या, जिणमां न हुतो वांक ॥६॥आगे पाठे नीकल्या, घर श्राव्या सहु शेठ ॥ पुत्र पिता बेग सहु, नीची घाली देठ (दृष्ट)॥७॥सर्व गाथा ॥२॥
॥ ढाल दशमी ॥ मेंदीना गीतनी देशी ॥ ॥ हंस नणे सुण नारी, वात कही हे सघली पाउली रे॥वछ कुमरनी वात, मामीने हे नाखो सुंदरि आगली रे॥२॥कहे कुमरी सुण राय, मुम्मण शेवे प्रवइण पूरीयां रे॥शुज लगने शुज वार, तिहांथी हे पोत सह हंकारीयां रे ॥२॥ तुज बंधव लीयो साथ, कनकावती नगरी पासे तिहां गया रे ॥ करियाणां उतास्यां उगम, राजाने मलवा पुष्पदंत तिहां गया रे ॥३॥ में दीगे वनराज, देखीने हे में तिहांकणे
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( १०१ )
आदरस्यो रे ॥ इण पुष्पदंते शेठ, तुज बंधवने अन्य जाति कोइ कस्यो रे ॥ ४॥ राजा धरीयो कोप, नगरीथी हो राजा बाहिर राखीया रे | मारण मांगी घात, नाम गम सहु हे राजाने जाखीयां रे ॥ ५ ॥ राजा धरीयो राग, तुज बांधवने हो नगरीए श्राणीयो रे ॥ दधुं बहु सन्मान, नगरने लोके हे कुमर वखाणीयो रे ॥ ६ ॥ हुं तुज बंधवनारी, सुख जोगवतां केश्क दिन हुवा रे ॥ प्रवहण पूरयां शेठ, तुज बांधव ने हे हुं साथै हुवां रे ॥ ७ ॥ श्राव्यां समुद्र मकार, मुजने हे देखी पापी चिंतव्युं रे ॥ ए थापुं घरनारी, एम जाणीने हे पापी शुं तव्यं रे ॥ ८ ॥ की धुं कर्म चंगाल, श्राधी राते कुंवरने नाखीयो रे॥ करवा मांगी घात, एड् चरित्र सहु कुमरी जाखी यो रे ॥ ॥ सर्व गाथा ॥ ८३२ ॥ ॥ ढाल गीयारमी ॥ राग मल्हार ॥ अथवा ॥ तप सरिखो जग को नहीं ॥ ए देशी ॥ ॥ एद वचन श्रवणे सुणी, मूर्छाणो हंसराज ॥ हो सुंदर || उठीने धरणी पडे, बंधव केरे काज ॥ हो सुंदर ॥ ० ॥ १ ॥ मुज बंधव तिहांकिणे मूर्ज, जीवनी किसी आश ॥ हो० ॥ रोवे रीसे आरडे, मन मां हु उदास ॥ हो० ॥ ए० ॥ २ ॥ चित्रलेखा कहे
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( १०२ )
रायजी, दुःख न कीजे कोइ ॥ हो० ॥ तुज बंधव मलशे सही, जीवंतो जो होइ ॥ हो ॥ ए० ॥ ३ ॥ हंस नणें सुए कामिनी, पमीयो समुद्र मकार ॥ हो० ॥ जीवंता कहो केम मले, तव जंपे ते नार ॥ हो० ॥ ए० ॥ ४ ॥ तुज बंधव इहां यावी यो, सागर तरी महाराज ॥ हो । सलखु मालपने घरे, रहे वे श्री वराज ॥ हो० ॥ ए० ॥ ५ ॥ एद वचन श्रवणे सुणी, प्रणमे नारी पाय || हो० ॥ वात कही सहु वांसली, वचघरणी तुं माय ॥ हो० ॥ ए ॥ ६ ॥ हंस कुमर दरखे करी, पहोतो माजण गेह ॥ हो० ॥ पूठे सहु पाला पले, नर नारी नहीं बेह || हो० ॥ ए० ॥ ७ ॥ बेहु जाइ नेला थया, मलीया मनने रंग || हो० ॥ नगर हुआं वधामां, कीधा बहुला जंग ॥ हो० ॥ ए० ॥ ८ ॥ घर घर गूमी उचली, तरीयां तोरण बार ॥ हो० ॥ पग पग नाटक नाचती, गावे अबला बाल ॥ हो० ॥ ए० ॥ ए ॥ सुखासन साथै घणां साथे बहु सवार ॥ होणाराजलोक मांदे गया, दरख्यां सहु नर नार ॥ हो० ॥ ए० ॥ १० ॥ नारी कंत बेदु मल्यां, फलीया पुण्य अंकुर ॥ दो० ॥ वात सुणो दवे शेवनी, कहे श्री जिनोदय सूरि ॥ हो० ॥ ए० ॥ ११ ॥ सर्व गाथा ॥ ४२ ॥
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( १०३ )
॥ ढाल बारमी ॥ राग धन्याश्री ॥
"
॥ मुम्मण शेठ शंका पमी रे, कीधुं मूंडुं काम ॥ इण वाते अपजशति हुवे रे, न करे कोई लेवा नाम कामो जी ॥१॥ पुत्र पिता हवे चिंतवे, रुडे रुडुं थाय ॥ मूंमाथी मूंडुं सदा हुवे, लोके एम कहाय ॥ मु० ॥ २ ॥ जे पाढे उपजे, सो मति पहेली होय ॥ काज न विसे पं, डुर्जन इसे न कोय ॥ मु० ॥ ३ ॥ हंस राजाए तलार तेमीया, मारो बिहुने ठाम ॥ धाक पडे जिम सघला गाममां को न करे ए काम ॥ मु० ॥ ४ ॥ शेठ कुटुंब शूली दीयो, मत करजो कांइ लाज ॥ घरनुं धन लूंटी इहां, सहु श्राणजो साज ॥ मु० ॥ ५ ॥ वछ कहे ना तुमे सुणो, शेव तो नहीं दोष ॥ कृत कर्म लखीयुं ते पामीए, इशुं केहो रोष ॥ मु० ॥ ६ ॥ मामात्रे कहीए सारिखी, करमे कीधी रीस ॥ पिताने परमेश्वर सारिखो, बेहु बेदीयां शीश ॥ मु० ॥ ७ ॥ मनकेसरी मुहते तिहां राखीया, दीधुं जीवितदान ॥ उंची नीची थापे जोगवी, सविहु पुष्य प्रमाण ॥ मु० ॥ ८ ॥ शुभ अशुभ लखी युं जे कर्ममां, ते निश्चेशुं होय ॥ नल राजाए दारी नारीने, वली वन मूकी सोय ॥ मु० ॥ ए ॥ हरिचंद्र राजा राज्य
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(१०४) तणो धणी, वा हुंब घर नीर ॥ दशरथ राजा श्रवण वध कीयो, जोरे मूक्युं तीर ॥मु॥१०॥ देशवटे बे बांधव नीसर्या, लखमण ने वली राम॥रावण सीता वनमें अपहरी, कर्म तणां ए काम ॥ मु० ॥ ११॥ नीख मंगावी राजा मुंजने, विमंबीयां ए कर्म ॥ एम जाणीने बंधव टालीए, कर्म तणो ए मर्म ॥ मु ॥ १२ ॥ एहवां वचन सुणी वडराजनां, वम बंधवनी लाज ॥ मुम्मण शेव नणी मूकावीयो, उपकारी वछराज ॥ मु०॥ १३ ॥ नगरथी बाहिर काढीयो, शेठ तणो परिवार ॥ वछ कुमरने सहुको विनवे, तें कीधो उपकार ॥ मु॥१४॥ सर्व गाथा ॥ ५६ ॥
॥दोहा॥ ॥ एम करतां बहु दिन हुआ, जोगवतां ते जोग ॥ निज नारी[सुखे रह्या, पुण्य मिल्यो संयोग ॥१॥ बे बंधव मन चिंतवे, नहीं मैत्रीमा दोष ॥ कर्मे आपे काढीया, ताते कीधो रोष ॥२॥
॥ ढाल तेरमी॥ ॥ वालेसर मुज विनति गोमी हो ॥ ए देशी ॥
॥ इहांथी चाली उतावलो रे ॥ बंधवीया॥जागुं जननी पास रे ॥बंगतातजणी जाश्मली रे॥बं॥
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( १७५) पूरे सविहु श्राश रे ॥ बं० ॥ १॥ हंस कहे हंसावलि रे॥बं॥पुःख जर दाधी देह रे॥६॥ चकवा चकवी प्रीतमी रे॥॥ तेहवो राणीनो नेह रे ॥ बं॥ हं॥२॥ जिम गयवर रेवा नदी रे ॥ बं॥ जेदवो चंद चकोर रे॥ बंग ॥ जिम सुरनि ने वाउडो रे॥बंग॥जेदवी प्रीति मेह मोर रे॥बंग॥हं०॥३॥ मान सरोवर हंसलोरे॥०॥ जेहवी कोयल यांबरे ॥बंगाजेहवी जलमां माउली रे॥ बं॥जेहवी प्रद्युम्न सांबरे॥बंजाहं॥॥ जेहवी कंत ने कामिनी रे॥बं॥ क्रौंच बच्चाशुं चित्त रे ॥ बंग॥ तेम आपणशं माननी रे ॥ बं० ॥ रहेती हशे प्रीत रे ॥ ६ ॥ हं० ॥५॥ एम बालोची आपसमां रे ॥ बं० ॥ केव्हणने सोंपी राज रे॥बं०॥ हंस कुमर साथे दुवो रे॥बं॥चाल्यो श्री वलराज रे ॥ बंग ॥ ॥६॥ शुन लग्ने शुन वासरे रे॥बंग॥नारी लीधी साथ रे॥बंाहय गय रथ परिवारशुंरे ॥ बंग ॥लेश बहुली आप रे ॥बंग ॥ हं० ॥७॥ पुरपेठगणे आवीयो रे ॥ बंग ॥ कीधो तिहां मेव्हाण रे॥बं॥डेरा तंबू ताणीया रे ॥ बं॥ को नवि कीध प्रयाण रे॥ बंग॥ हं० ॥ ॥ पागल मूके आदमी रे ॥ बं०॥ तात जणावी वात रे
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(१०६) ॥ बं० ॥ कुशल देम इहां श्रावीयारे ॥ बंग॥ जा जणावी वात रे ॥ बं०॥ हं० ॥ ए ॥ राजा सांजली हरखीयो रे॥०॥ हरख्यां सहुको लोक रे ॥६॥ नगरे हुश्रां वधामणां रे ॥ ॥ नागे सविहु शोक रे ॥ बं॥ हं० ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ ६॥
॥ ढाल चौदमी ॥ ॥ फुमखडानी देशी ॥ राणी वात सुणी तिसे रे, श्राया हंस वछराज ॥ मनोहर पूरणा ॥ रोम राय विकसी सह रे, सिधां वांछित काज ॥ म॥१॥ श्राज दिवस धन्य उगीयो रे, सफल फली मन श्राश ॥ म० ॥ कष्ट गयुं हवे माहरुं रे, नाठी मनही उदास ॥ म ॥२॥ धन आगम हरखे घणुं रे, नाचे नाटक मोर ॥ म ॥ मेघ तणे मनही नहीं रे, करे बपैया सोर ॥ म ॥३॥ तेम राणी सुत आगमे रे, धरती अंग नबाह ॥ म ॥ हरखे शरीर शीतल हुईं रे, नागे फुःखनो दाद ॥ म०॥४॥ राजा राणी बे जणां रे, मनकेसरी पण साथ ॥ म०॥ लोक सहु मलवा गया रे, आम्बर कर। नाथ ॥म०॥५॥ सामा आव्या सादरे रे, प्रणम्या नरवर पाय ॥म०॥ हंसावलि हरखी घणुं रे, दीठी नजरे माय ॥ म०
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(१७) ॥६॥चरण नमे माता तणारे, मात दीये श्राशीष ॥ म ॥ हंस कुमर वडराजगुंरे, जीवो कोमी वरीस ॥ म ॥७॥ हैयमा आगल आणीने रे, जीड्या अंगो अंग ॥ म ॥ तिनसें साउ अंतेउरी रे, श्राय मीली मनरंग ॥ म ॥ ॥ मनकेसरी मुहता जणी रे, दीधुं अधिकुं मान ॥ म ॥ तुजनो ऊरण केम हुवे रे, तें दीधुं जीवितदान ॥ म ॥ ए॥ जगति जुगति कीधी घणी रे, दीधा फोफल पान ॥ म ॥ बेहु कुमर ले करी रे, घर बायो राजान ॥ म ॥ १० ॥ श्रचरिज लोक देखी करी रे, पहुतां गमो गम ॥म॥ लीलावती राणी नणी रे, जा कीधो प्रणाम ॥ म ॥ ११॥ राय कहे लीलावती रे, कीधुं न करे कोय ॥ म ॥ अवगुण केडे गुण करे रे, हुं बलिहारी सोय ॥ म ॥ १२ ॥ गंगाजल जिम निर्मलुं रे, एहवा हंस वडराज ॥ म ॥ कूडो दोष देश करी रे, मारण मांड्यो साज ॥म॥१३॥ नारी चरित न को लहे रे, सहको कहे संसार ॥ म०॥ निज पति परदेशी हण्यो रे, सूरिकंता जे नार ॥ म० ॥ १४ ॥ गोख थकी खेर नाखीयो रे, जितशत्रु राजा नार॥मा गंगाजल मांहे नीकल्यो रे,
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( १०८ )
पुण्य तणे परकार | म० ॥ १५ ॥ धनदत्त घरणी कंतने रे, मांड्यो मनशुं द्रोह ॥ म० ॥ कंत जणी देवी करी रे, धो बहेरो दोह ॥ ० ॥ १६ ॥ इम चरित चूली कीयुं रे, बीजी न करे माय ॥ म० ॥ ते ब्रह्मदत्त राजा हुवो रे, पुण्य तणे सुपसाय ॥ म० ॥ १७ ॥ एम चरित्र नारी तणां रे कहेतां नावे पार ॥ म० ॥ इण राणीने मारशुं रे, जिम सहु माने कार ॥ ० ॥ १८ ॥ सर्व गाथा ॥ ८८६ ॥ ॥ दोहा ॥
॥ राजा खांडं काढीयुं, राणी मारण काज ॥ कुमर बेखामा पड्या, बोमी जे महाराज ॥ १ ॥ ए राणी लीलावती, मात समी ए माय ॥ नारी - हत्या बे नारकी, तो किम कीजे राय ॥ २ ॥ लीलावती परसादथी, मेली बहुली आाथ ॥ चित्रलेखा परणी धरणी, आई मिल्या नरनाथ ॥ ३ ॥ अजयदान देवामीयुं, हंस ने वराज ॥ पीयर परही मोकली, राखी सघली लाज ॥ ४ ॥
॥ ढाल पन्नरमी ॥ ढोलनी देशी ॥ ॥ नरवाहन राजा हवे || सोजागी सुंदर || पाले सुखमां राज ॥ सो० ॥ राणी हवे हंसावलि ॥ सो० ॥
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( १०५ )
रोष नहीं कांही आज ॥ सो० ॥ १ ॥ बे पुत्र महारे जोमले ॥ सो० ॥ हंस अने ववराज ॥ सो० ॥ पमतो खान जाले जिस्या ॥ सो० ॥ सारे उत्तम काज ॥ सो० ॥ २ ॥ राते सुतो चिंतवे ॥ सो० ॥ नरवाहन ते राय ॥ सो० ॥ जो मुनिवर यावे इहां ॥ सो० ॥ सेतुं तेहना पाय ॥ सो० ॥ ३ ॥ एम चिंतवतां हवे || सो० ॥ एहने उग्यो सूर ॥ सो० ॥ पंचसया परिवारशुं ॥ सो० ॥ श्राव्या धर्मघोष सूरि ॥ सो० ॥ ४ ॥ नरवाहन राजा हवे ॥ सो० ॥ वंदण देते जाय ॥ सो० ॥ हंस वछ हंसावलि ॥ सो० ॥ वंदे मुनिना पाय || सो० ॥ ५ ॥ सूरि दीये तिहां देशना ॥ सो० ॥ जलधर सम ते वाण ॥ सो० ॥ सुख दुःख कर्मे पाइए ॥ सो० ॥ कर्म तणे परिणाम ॥ सो० ॥ ६ ॥ जब हुई पूरी देशना || सो० ॥ नरवाह्न तब राय ॥ सो० ॥ चरण नमी पूढे इस्युं ॥ सोना केहो पुण्यपसाय ॥ सो० ॥ ७ ॥ रमणी इद्धि लीला घणी ॥ सो० ॥ हंस अने ववराज ॥ सो० ॥ संशय जांगो सद्गुरु ॥ सो० ॥ श्राया पूढ काज ॥ सो ॥ ८ ॥ सद्गुरु कहे तुम सांजलो ॥ सो० ॥ पूरव जवनी वात ॥ सो० ॥ धनपुर नगरे तिहां वसे ॥ सो० ॥
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(१९०) बे बांधव विख्यात॥सो॥ए॥कर्ममेले धन सहु गर्यु ॥सो॥धन शोचे दिन रात ॥सो॥जूधर सूधर बे जणा॥सो॥जाय सदा परनात ॥सो॥१०॥ कंध कुहामा लेश् करी ॥ सो० ॥ कटिए बांधे दोर ॥ सो ॥ रोटी पण पूठे धरे ॥ सो० ॥ पोते पाप अघोर ॥ सो॥ ११ ॥ रानथी थाणे इंधणां ॥सो॥ नगरे वेचण जाय ॥ सो० ॥ एक टको लेश सुंसतो ॥ सो ॥ लू सूकुं खाय ॥ सो० ॥ १५॥ बे बांधव रणमां गया ॥ सो ॥धण लेवा काज ॥ सो ॥ रोटा ले आगे धस्या ॥ सो० ॥ नोजन करवा काज ॥ सो० ॥ १३ ॥ साथ थकी चूक्या यति ॥ सो० ॥ पडीया रणही मजार ॥ सो० ॥ अन्न पाणी मले नहीं ॥ सो० ॥ जे कीजे श्राहार ॥ सो० ॥ १४ ॥ बेहु बांधव मुनि पेखीया॥सो॥दी, अढलक दान॥ सो॥मारग पण देखामीयो॥सो॥तिणे पुण्य हुवा राजान॥सो॥ १५॥ फुःख बीजां जे पामीयां ॥सो॥ ते पूरव कृत कर्म ॥ सो० ॥ एम जाणीने श्रादरो ॥सो॥ साचो श्री जिनधर्म ॥ सो॥१६॥नरवाहन राजा कहे ॥ सो ॥ रहेजो त्यां लगे साध ॥सो॥ वराज राजा उq ॥ सो० ॥ लीचं चारित्र निर्बाध ॥
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(???)
सो० ॥ १७ ॥ गुरु वांदी घर श्रावीयो ॥ सो० ॥ व कुमरने दीधुं राज || सो० ॥ कुंती नगरी तिहांकणे ॥ सो० ॥ थाप्यो श्री हंसराज || सो० ॥ १८ ॥ नरवाहन चारित्र लीधुं ॥ सो० ॥ राणी लीधी दीख ॥ सो० ॥ बेदु संयम सूधो धरी ॥ सो० ॥ चाले जिन मत शीख ॥ सो० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ एए ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ सुमति पांच सूधी धरे जी, पाले पंचाचार ॥ एहवा साधु नमुं ॥ दोष बहेंतालीश टालता जी, करता उग्र विहार ॥ ए० ॥ १ ॥ केता कालने यांतरे जी, छाया पुरपेठाण ॥ ए० ॥ ववराज वंदन गयो जी, प्रणम्या तात सुजाण ॥ ए० ॥ २ ॥ मुनिवर जाखे देशना जी, श्रावकनां व्रत बार ॥ ए० ॥ पंच महाव्रत साधुनां जी, जिणथी जवनो पार ॥ ए० ॥ ३ ॥ तात वचन श्रवणे सुण्यां जी, लीधुं समकित सार ॥ ए० ॥ श्रावक व्रत सुधां धयां जी, श्रीवछराज ने नार ॥ ए० ॥ ४ ॥ अंते अनशन आदरी जी, देश पुत्रने राज || ए० ॥ त्री जे कल्पे उपना जी, सुख बहुलुं वचराज रे ॥ ए ॥ ५ ॥ श्री खरतर गछ गुरुनिलो जी, श्री जावहर्ष सूरींद ॥
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( १९५) ए॥ गल चोराशी परगडो जी, साधु माहे मुणींद ॥ ए॥६॥ तस वाटे महिमानिलो जी, श्रीजयतिलक सूरि राय ॥ ए० ॥ महोटा महोटा नूपति जी, प्रणमे जेहना पाय ॥ ए० ॥ ७॥ संवत् सोल एंशीए समे जी, श्राशो सुदि रविवार ॥ ए॥ विजयदशमीए संथुण्यो जी, श्रीसंघने सुखकार ॥ ए॥॥ एह प्रबंध सोहामणो जी, कहे श्री जिनोदय सूरि ॥ ए॥जणे गुणे श्रवणे सुणे जी, तिणघरे आणंदपूर ॥ ए० ॥ए॥ चार खंम चोपाइ करी जी, श्रीसंघ सुणवा काज ॥ ए० ॥ पुण्ये शिवसुख पामीया जी, हंस अन वडराज ॥ ए॥१०॥ सर्व गाथा ॥ एएए ॥ इति हंसराजवछराजप्रबंधे चतुर्थः खंमः संपूर्णः॥४॥ तत्समाप्तौ च श्रीहंसराजवराजरासः समाप्तः ॥
॥इति श्री हंसराज वनराजनो
रास समाप्त ॥
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________________ तैयार ! तैयार ! तैयार ! श्रावक कर्तव्य तथा विविध स्तवनादि समुच्चय ग्रंथ __ जमा प्रातःस्मरणीय स्तोत्र, बंदो, दर्शन विधि, पूजाविधि चैत्यवंदनविधि, नावनास्वरूप, जिन्न जिन्न अनेक स्तवनो, चैत्यवंदनो, श्रोयो, लावणी, सकायो, नाटकना रागनां गायनो विगेरे, त्रणसो जेटलां पद्योनो संग्रह अने वटे नवस्मरण, शलोका, सामायिक तथा पच्चरकाणनी विधि आप। जे. प्रस्तावना खास बांचवा जेवी रे. तेमां क्रिय हेतु पुरःसर समजावया यत्न करें . आत्मचिंतनना क्रियाकम माटे अा ग्रंयनो संग्रह बहु उपयोगी जे. जैन . कोममां आ ग्रंथ पहेलाहेलो बहार पझे जे. 5. शास्त्री अदरमा रु०१-१०-0 गुजराती अदरमा रु०१-४-० उपर सिवाय वीजां अनेक पुस्तको, तीर्थोना नकशा विगेरे मळे जे. विस्तारथी मोटा सूचीपत्र माटे त्रण आनानी टीकीटो मोकलो. बहार गामना मरो संजालपूर्वक वी. पी. श्री मूकबामां आवे . श्रावक जीमसिंह माणेक, * जैन पुस्तको वेचनार तथा प्रसिद्ध करनार. मांमवी, शाकगली-मुंबइ. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only