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(७०) देखे जरतार रे॥०॥१॥ आसपास सहु जोश्यो रे, किहां न देखे कंत रे॥कं०॥ लोक सहु देखी करी रे, मन मांहे पमी ब्रांत रे ॥ कं० ॥२॥ रोवंती रोवामीयां रे, प्रवहणवाला लोक रे॥ कं ॥ एकलडी हुं हुश् हवे रे, धरवा लागी शोक रे॥ कं० ॥३॥ सार करो कंत माहरी रे,कीधो कांही वियोग रे॥०॥ मुज मन तुंहीज वालहो रे, धरती मन मांहे शोक रे ॥०॥४॥न्हानपणे मूड नहीं रे, पेट धरी कांय माय रे॥०॥ कंता तुं विण एकली रे, कहो केम दहाडा जाय रे ॥ कं०॥५॥ तुज पसाये सुख घणां रे, में जोगवीयां स्वामी रे ॥ कं ॥ तुकारो तें नवि दीयो रे, बलिहारी तोरे नाम रे ॥ कं० ॥ ६॥ हैमा तुं फटे नहीं रे, मूके मुख निःश्वास रे ॥ कं० ॥ तो विण जीव्यो कारिमोरे, कंत तणीशी आश रे॥कं० ॥७॥ साये चूकी मरगली रे, जोवे दह दिशि साथ रे॥॥ बीजा जन देखे सहु रे, एक न देखे नाथ रे॥०॥७॥तुज पहेली मू नहीं रे, करती विरह विलाप रे ॥ कं० ॥ आप कमाइ जोगवं रे, पूरव कीधां पाप रे ॥कं० ॥ ५ ॥ पूरव जव में पापिणी रे, शोक्यने दीधो शाप रे ॥ कं० ॥ पुत्र तणुं सुख नवि
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