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________________ ( १ ) लघुं रे, अथवा जपीया जाप रे ॥ कं० ॥ १० ॥ के पराइ थापण रही रे, के में दीधुं घाल रे ॥ कं० ॥ के पाणीने कारणे रे, सरोवर फोकी पाल रे ॥ कं० ॥ ११ ॥ के में रमत कारणे रे, तरुनी मोमी माल रे ॥ कं० ॥ गर्न गलाच्या पापिणी रे, उषध वेषध घाल रे ॥ कं० ॥ १२ ॥ के काचां फल त्रोमीयां रे, रसना केरे खाद रे ॥ कं० ॥ अगल पाणी वावश्यां रे, मनमां आणी प्रमाद रे ॥ कं० ॥ १३ ॥ के में माला खेंचीया रे, मां नाख्यां हाथ रे ॥ कं० ॥ के में परनां धन हस्यां रे, मार्या बहुला साथ रे ॥ कं० ॥ १४ ॥ पंखी घाल्यां पांजरे रे, के घाल्यां मृग पास रे ॥ कं० ॥ मंदमति में पापिणीए रे, के में बलाव्यां घास रे ॥ कं० ॥ १५ ॥ तिल सरशव पीलावीया रे, लाज तो में हेत रे ॥ कं० ॥ के में सूरु करावीयां रे, के में खेमाव्यां खेत रे ॥ कं० ॥ १६ ॥ के पूरव जव पापिणी रे, मारी जू ने लीख रे ॥ कं० ॥ के में दान देतां थका रे, दीधी मूंकी शीख रे ॥ कं० ॥ १७ ॥ के में मोड्या करमका रे, सो केम होवे सुख रे ॥ कं० ॥ मंत्रे गर्न बंधावीया रे, शोक्यने दधुं दुःख रे ॥ कं० ॥ १८ ॥ ष राख्युं में पारकुं रे, घाली पेटे जाल रे ॥ कं० ॥ के में परनां धन दयां रे; हं० ६ Jain Educationa International www.jainelibrary.org For Personal and Private Use Only
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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