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( डए )
कामिनी कंत ॥ शेठ नारी निरखी तिहां, लाग्यो खारे खंत ॥ ५ ॥ पुष्पदंत वचराजशुं मांगी बहुली प्रीत ॥ कुमरीए मन जाणीयुं, ए नहीं रुमी रीत ॥ ६ ॥ पुप्फदंत मन चिंतवे, मेलवी नारी एह ॥ परदेशी बे एकलो, एहने दाखुं बेह ॥ ७ ॥ नारी लेवा कारणे, मांड्यो तेणे प्रपंच ॥ पाणी मांहे परठवुं, जोइ सघलो संच ॥ ७ ॥ माजी सहु हाथे कीया, सहु मनावी वात ॥ पंच दिवस पूरा हुवा, वहेतां दिन ने रात ॥ एए ॥ बडे दिनने अंतरे, प्रहर गइ जब रात ॥ ववराज श्रावो इहां, मत्स्य अपूरव जात ॥ १० ॥ वराज पहोतो तिहां, दीगे नहीं लगार ॥ वांसे थी धक्कावीयो, पाड्यो समुद्र मकार ॥ ११ ॥ वछराज पतां थका, गणीयो तिहां नवकार ॥ अशरण शरण ए माहरे, मंत्र तो जे सार ॥ १२ ॥ मंत्र प्रजावे तिहां पड्यों, मगरमत्स्यनी पूर्व ॥ वछराज पुण्ये करी, चाल्यो तिहांथी उठ ॥ १३ ॥
॥ ढाल बीजी ॥
॥हरिया मन लागो, रंग लागो थारी चाल ॥ ए देश ॥ ॥ परुतां पाणी वाजीयुं रे, चित्तमें चमकी नारी रे ॥ कंत कीधुं किस्युं ॥ जोवा लागी सुंदरी रे, नवि
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