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( 2 ) मोगरो जी, सेवंत्री सुकुमाल ॥ केवको करेणो ने वली मालती जी, पूगी ताल तमाल ॥ जंबु० ॥ २ ॥ आंबा रायण जंबुकरमदां जी, वम पीपल ने द्वाख ॥ जंबीरी ने दामि नींबु जी, वृक्ष तथा तिहां लाख ॥ जंबु० ॥ ३ ॥ पुरपयठाए नगर पासे वहे जी, गंगाजल सम नीर ॥ नदी गोदावरी नामे गुणजरी जी, जल जेवुं गोक्षीर ॥ जंबु० ॥ ४ ॥ हंस चकोर ने चकवा सारही जी, बगलां बेठां तीर ॥ चीमी चास तित्तर पारेवमां जी, केलि करे ते नीर ॥ जंबु० ॥ ५ ॥ गढ मढ मंदिर सोहे देहरांजी, वली पोशाल निशाल ॥ नगर चोराशी चहुटां चिहुं दिशे जी, उपर जाकऊमाल ॥ जंबु० ॥ ६ ॥ विविध व्यापारी नगर मांडे वसे जी, धर्मी ने धनवंत ॥ चार वरणनां लोक तिहां रहे जी, धर्म तणी मन खंत ॥ जंबु० ॥ ७ ॥ शालि - वाहन सुत नरवादन पटे जी, रूपे अमर समान ॥ ख्याग त्याग निकलंक सदा जलो जी, सहुको माने
॥ जंबु० ॥ ७ ॥ यादव वंश विभूषण उपनो जी, जीवदया प्रतिपाल ॥ त्रणसें साठ अंतेउरी तेहने जी, उत्तम गुण हि विशाल ॥ जंबु० ॥ ए ॥ गयवर हयवर यागे हसता जी, नाटक बद्ध बत्रीश ॥ महेता
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