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शेठ सेनापति मंत्रवी जी, सेवे कुलि बत्रीश ॥जंबुन ॥१०॥बावन वीर सदा सेवा करे जी,बंधव अति बलवंत ॥ लहुडो शक्तिकुंवर सोहामणो जी, सकल कला गुणवंत ॥ जंबु॥१९॥ एक दिन सुतो नरवाहन सुखे जी,निखावश नरपूर॥पहेली ढाले राजा पोढीयो जी, कहे श्रीजिनोदय सूरि ॥ जंबु॥१२॥ सर्व गाथा॥१७॥
॥दोहा॥ ॥ सुतो सुपनांतर लहे, अनुत सुपन नरेश ॥ दिवस उग्यो जागे नहीं, देखे नयर निवेश ॥१॥ कणयापुर पाटण गयो, कीधो नगरी प्रवेश॥हंसावलि रायपुत्रिका, दीगे अनुत वेश॥२॥ कनकत्रम राजा सुता, परणावी सा बाल ॥ दीधा बहुला दायजा, सुखे गमतो तिहां काल ॥३॥ दरबारे सहुको मिख्या, खान अने सुलतान ॥ शेठ श्रने सेनापति, बेठा बहु दीवान ॥४॥ नरपतिने नेटण जणी, पुर प्रगणे के नूप ॥ निमित्तिया श्राया तिहां, कहेवा सकल सरूप ॥५॥ ब्राह्मण वेद नणे जीके, बली ज्योतिषिया जाण ॥ वैदराज श्रावी मिट्या, जट चट करे वखाण ॥६॥ हयवर आगे हींसता, गयवर गरम करंत ।। पायक श्राया प्रणमवा, इणी परि मेल मिलंत॥७॥
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