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॥ क० ॥ २५ ॥ मंत्री वली बोले इस्युं रे हां, अलगो पुरपैठण ॥ क० ॥ विच समुद्र विच मुं घणी रे हां, केम आवे इहां जान ॥ क० ॥ २६ ॥ राजाने ढुं आशुं रे हां, एकाकी इसे ठाम ॥ क० ॥ एक मासने यांतरे रे दां, सारीश तुजनुं काम ॥ क० ॥ २७ ॥ धन दीधुं कुमरी घणुं रे हां, लीधुं करीय प्रणाम || क० ॥ स्वयंवरमंरुप मांगजो रे हां, वांसे करजो थें काम ॥ क० ॥ २७ ॥ मागी शीख सनेदशुं रे हां, बिहुं मन आनंदपूर || क० ॥ ढाल हुइ दशमी इहां रे हां, कहे श्री जिनोदय सूरि ॥ क० ॥ २५ ॥ सर्व गाथा ॥ १७५ ॥
॥ दोहा ॥
॥ राजा पासे आवीयो, जिहां रहेवानुं गेह ॥ तुज कुमरी परणावशुं, मास दिवसने बेह ॥ १ ॥ गुप्तपणे रहेजो इहां, को नवि जाणे वात ॥ मास दिवस पूरो हुवे, होशे तिहां विख्यात ॥ २ ॥ कुमरी कहायो तातने, तेडावो राजान ॥ संवरमंरुप मांड, देजो अमने मान ॥ ३ ॥ राजा मन आनंद दुर्द, कुमरी वरनी चूंप ॥ ठाम गमयी तेमीया, वडा मा तिहां नूप ॥ ४ ॥ संवरमंमपे सहु मिल्या, रुद्धिवंत राजान
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