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सो० ॥ १७ ॥ गुरु वांदी घर श्रावीयो ॥ सो० ॥ व कुमरने दीधुं राज || सो० ॥ कुंती नगरी तिहांकणे ॥ सो० ॥ थाप्यो श्री हंसराज || सो० ॥ १८ ॥ नरवाहन चारित्र लीधुं ॥ सो० ॥ राणी लीधी दीख ॥ सो० ॥ बेदु संयम सूधो धरी ॥ सो० ॥ चाले जिन मत शीख ॥ सो० ॥ १५ ॥ सर्व गाथा ॥ एए ॥ ॥ ढाल सोलमी ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ सुमति पांच सूधी धरे जी, पाले पंचाचार ॥ एहवा साधु नमुं ॥ दोष बहेंतालीश टालता जी, करता उग्र विहार ॥ ए० ॥ १ ॥ केता कालने यांतरे जी, छाया पुरपेठाण ॥ ए० ॥ ववराज वंदन गयो जी, प्रणम्या तात सुजाण ॥ ए० ॥ २ ॥ मुनिवर जाखे देशना जी, श्रावकनां व्रत बार ॥ ए० ॥ पंच महाव्रत साधुनां जी, जिणथी जवनो पार ॥ ए० ॥ ३ ॥ तात वचन श्रवणे सुण्यां जी, लीधुं समकित सार ॥ ए० ॥ श्रावक व्रत सुधां धयां जी, श्रीवछराज ने नार ॥ ए० ॥ ४ ॥ अंते अनशन आदरी जी, देश पुत्रने राज || ए० ॥ त्री जे कल्पे उपना जी, सुख बहुलुं वचराज रे ॥ ए ॥ ५ ॥ श्री खरतर गछ गुरुनिलो जी, श्री जावहर्ष सूरींद ॥
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