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________________ (५२) मूकुं तुज केम ॥ बं० ॥ जिण दिशि बंधव तुं गयो रे, तिण दिशि मुजने तेड ॥ बंग ॥३॥ सरवरनी पाले चढी रे, देतो सरला साद ॥ बं०॥ वन तरुवर सहु ढुंढतो रे, पूज्या न दीये साद ॥बं॥४॥ नाइ नाइ करतो नमे रे, तरुने घाले बाथ ॥बं॥ करतां तें की, किस्युं रे, श्राज विगेड्यो साथ ॥ बंग ॥५॥ चिंतकीयो कांश नवि हु रे, अणचिंतवीयो थाय ॥ बं० ॥ सरल निशास सरली देतो घाद ॥ बं०॥६॥के ना रे, के ले गयो आकाश ॥ बं० ॥ बल बुद्धि तुज हुती घणी रे, क्या थव ग ते नाश ॥ बं० ॥७॥ पग जोवे चिहुं दिशि फिरे रे, तरुतल दीगे साध ॥बंग॥ तप करी काया शोषवी रे, राने रहे निर्बाध ॥ बं० ॥ ॥त्रण प्रदक्षिणा देश्ने रे, वंदे मुनिना पाय ॥ बंग ॥ कहो मुज ना किहां गयो रे, तव जंपे मुनिराय ॥ बं० ॥ ए॥ ना तुज कुंती गयो रे, चंदन लेवा काज ॥ बंग ॥बए मासे मेलो हुशे रे, मलशे तिहां वराज ॥ बं॥१०॥ मुनि वांदीने नीकल्यो रे, कुंती नगरे जाय ॥ बं० ॥ बार जोयण नगरी वमी रे, वर्णन न कडं जाय ॥ बं० ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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