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________________ रे, कांटा पमीया कंठ ॥ नासीने थमे श्रावीया रे, बे कीधा तिहां रे ॥२६॥ का॥ सर्व गाथा ॥५॥ ॥ दोहा ॥ ॥ राजा मनमां चिंतवे, वात हुइ सहु फोक ॥ कामज कोश्नाव हुवा, मनमें धरतो शोक ॥१॥ एक उपाय करशुं वली, तिणथी सरशे काज ॥ आहेमा मिष तेमगुं, साथे श्रीवराज ॥२॥ पुप्फदंतने राय दीयो, तेजी वमो तुखार ॥ नर देखीने उडले, को न हुवे श्रसवार ॥३॥ ॥ ढाल श्रामी॥ ॥ मनोहरना गीतनी देशी ॥ अथवा तप सरिखं जग को नहीं ॥ ए देशी॥ ॥वाजी आणायो हो वालथी, मिले श्रति परचंम ॥ हो नरवर ॥ तेजी न खमे हो ताजणो, पामी करे शत खंग॥ हो नरवर ॥१॥ कुंवर तेमाव्यो हो तालमें, रमत रमवा काज ॥ हो न० ॥ ए शांकणी ॥ आदर दीधो हो अति घणो, बेठगे राजा पास ॥ हो न ॥ तीना तुरीय पलाणीया, दीधा राय उदास ॥ हो न०॥ कुं० ॥२॥ सहुको जन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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