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________________ (१०६) ॥ बं० ॥ कुशल देम इहां श्रावीयारे ॥ बंग॥ जा जणावी वात रे ॥ बं०॥ हं० ॥ ए ॥ राजा सांजली हरखीयो रे॥०॥ हरख्यां सहुको लोक रे ॥६॥ नगरे हुश्रां वधामणां रे ॥ ॥ नागे सविहु शोक रे ॥ बं॥ हं० ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ ६॥ ॥ ढाल चौदमी ॥ ॥ फुमखडानी देशी ॥ राणी वात सुणी तिसे रे, श्राया हंस वछराज ॥ मनोहर पूरणा ॥ रोम राय विकसी सह रे, सिधां वांछित काज ॥ म॥१॥ श्राज दिवस धन्य उगीयो रे, सफल फली मन श्राश ॥ म० ॥ कष्ट गयुं हवे माहरुं रे, नाठी मनही उदास ॥ म ॥२॥ धन आगम हरखे घणुं रे, नाचे नाटक मोर ॥ म ॥ मेघ तणे मनही नहीं रे, करे बपैया सोर ॥ म ॥३॥ तेम राणी सुत आगमे रे, धरती अंग नबाह ॥ म ॥ हरखे शरीर शीतल हुईं रे, नागे फुःखनो दाद ॥ म०॥४॥ राजा राणी बे जणां रे, मनकेसरी पण साथ ॥ म०॥ लोक सहु मलवा गया रे, आम्बर कर। नाथ ॥म०॥५॥ सामा आव्या सादरे रे, प्रणम्या नरवर पाय ॥म०॥ हंसावलि हरखी घणुं रे, दीठी नजरे माय ॥ म० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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