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( १७५) पूरे सविहु श्राश रे ॥ बं० ॥ १॥ हंस कहे हंसावलि रे॥बं॥पुःख जर दाधी देह रे॥६॥ चकवा चकवी प्रीतमी रे॥॥ तेहवो राणीनो नेह रे ॥ बं॥ हं॥२॥ जिम गयवर रेवा नदी रे ॥ बं॥ जेदवो चंद चकोर रे॥ बंग ॥ जिम सुरनि ने वाउडो रे॥बंग॥जेदवी प्रीति मेह मोर रे॥बंग॥हं०॥३॥ मान सरोवर हंसलोरे॥०॥ जेहवी कोयल यांबरे ॥बंगाजेहवी जलमां माउली रे॥ बं॥जेहवी प्रद्युम्न सांबरे॥बंजाहं॥॥ जेहवी कंत ने कामिनी रे॥बं॥ क्रौंच बच्चाशुं चित्त रे ॥ बंग॥ तेम आपणशं माननी रे ॥ बं० ॥ रहेती हशे प्रीत रे ॥ ६ ॥ हं० ॥५॥ एम बालोची आपसमां रे ॥ बं० ॥ केव्हणने सोंपी राज रे॥बं०॥ हंस कुमर साथे दुवो रे॥बं॥चाल्यो श्री वलराज रे ॥ बंग ॥ ॥६॥ शुन लग्ने शुन वासरे रे॥बंग॥नारी लीधी साथ रे॥बंाहय गय रथ परिवारशुंरे ॥ बंग ॥लेश बहुली आप रे ॥बंग ॥ हं० ॥७॥ पुरपेठगणे आवीयो रे ॥ बंग ॥ कीधो तिहां मेव्हाण रे॥बं॥डेरा तंबू ताणीया रे ॥ बं॥ को नवि कीध प्रयाण रे॥ बंग॥ हं० ॥ ॥ पागल मूके आदमी रे ॥ बं०॥ तात जणावी वात रे
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