________________
(६४) तिसे, कीधा सोल शणगार ॥ दासी साथे बेश्ने, श्रावी तिहांकिणे नार ॥४॥ ॥ ढाल पांचमी ॥राग सोरठ॥ काबीयानी॥
अथवा देखी कामनी दोय ॥ ए देशी ॥ ॥ संवरामंडप मांहे, हे सखि संवरामंम्प मांहे॥ गयगमणी निरखे सहु जी ॥ आरिसो बेहाथ, हे सखि आ॥ दासीय नाम कहे बहु जी॥१॥वाजे गुहिर निशाण, हे सखि वा ॥ नादे अंबर गाजीयां जी ॥ वाजे ताल कंसाल, हे सखि वाजे॥ महेल मंदिर सहु गाजीयां जी॥२॥ माला बेश हाथ, हे सखि माला ॥ राय राणा सहु निरखतां जी॥ रिकि नगरी ने नाम ॥ हे०॥ रि॥ गुण अवगुण सहु परखती जी ॥३॥ जे जे मूके राय ॥ हे० ॥ जे ॥ ते ते विलखा थर रहे जी ॥ जिम जिम आधी जाय ॥ हे ॥ जिम० ॥ ते राजा मन जम्महे जी ॥४॥ पुप्फत पासे थाय ॥ हे॥ पुप्फ ॥ मन मांहे ते आणंदीयो जी॥कुमरी अनुपम देख ॥ हे०॥ कु०॥ पोते पुण्य पूरा कायो जी ॥ ५॥ मुज वरशे सही एह ॥ हे० ॥ मुजः ॥ राजा सहु पूठे रह्यो जी ॥ निरख्यो निज जरतार ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org