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(६५) हे॥ निर ॥ बोलबंध जिणशुं कीया जी॥६॥ घाली गलामें माल ॥ हे० ॥ घाण ॥ पुप्फदंत मन विलखो हुई जी, विलखाणा सहु राय ॥ हे०॥ वि०॥ कनकन्रम राजा जुठ जी ॥७॥ फिट फिट करे सहु लोक ॥ हे० ॥ फि० ॥ राजा सहु मूकी करी जी ॥ कुमरी मूरख एह ॥ हेण ॥ कुम॥ पामर गले माला धरी जी ॥ ७॥ धमधमीया सहु राय ॥ हे० ॥ धम० ॥ माला तुज जे नहीं जी॥ जो जीवणरी याश ॥ हे ॥ जो० ॥ दे माला अमने सही जी ॥ए ॥ बोले तव वडराज ॥ हे॥ बो० ॥ कोप करी कांव कारिमो जी ॥ जेहने सरजी नार ॥ हे॥ जे०॥ तेहने कर्म पोते समो जी ॥ १० ॥ सर्व गाथा ॥ ५३६ ॥
॥दोहा॥ ॥ कुमरी कहे सहुको सुणो, कांश करो विखवाद ॥ महारे मन ए मानीयो, फोकट करो बो वाद ॥१॥ मौन करी सहुको रह्या, प्राणे न हुवे प्रीति ॥ लोक सहु निंदे घणुं, जोजो कुंवरी रीति ॥२॥ सहुको निज स्थानक गया, लहुमा महोटानूप॥मुंह विलखाणुं सर्वन, कन्या देखी सरूप ॥ ३ ॥ निरांत हुश
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