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( ६६ ) राजा जणी, कुमरी थाप्यो कंत || हथेवालो तिहां मेलव्यो, बेहुनी पहोंची खंत ॥ ४ ॥
॥ ढाल बडी ॥ राग धन्याश्री ॥
॥ मोरी कुमरी रे, राजा दीव्रं रूप ॥ कंबलडो वम पहेरणे ॥ मो० ॥ मोरी कुमरी रे, तुं दुती अधिक सुजाण, कहो इम किम हुए तुम तो ॥ मो० ॥ १ ॥ मो० ॥ तें दीतुं अधिक स्वरूप, तुं सतीनी परे सुंदरु | मो० ॥ मो० ॥ किदां कल्पद्रुम रुख, किहां एरंग धतुरतरु || मो० ॥ २ ॥ मो० ॥ किहां सूरज किहां चंद, किहां खजवानो चांदणो ॥ मो० ॥ मो० ॥ अरह वहे बारे मास, क्षण एक जलधर वरसो ॥ मो० ॥ ३ ॥ मो० ॥ सहु राजाने बांदी, इने तें किम यादस्यो । मो० ॥ मो० ॥ आप हापि जग हांसी, एको काज न तें कस्यो । मो० ॥ ४ ॥ मो० ॥ पासे वे शेठ, रूप कला गुण आगलो ॥ मो० ॥ मो० ॥ जे तें कीधो कंत, हाथे तेहने बागलो ॥ मो० ॥ ५ ॥ मो० ॥ राजा पूबे शेठ, कोण नर बे एह ताहरो || मो० ॥ मो० ॥ राजाजी कहुं साच, ए पांव बे माहरो ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ राजा पूढे वात, वंश कहो तुम एहनो ॥ मो० ॥ मो० ॥
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