________________
(६७) खामी न जाणुं वात, रूप रुडंडे एहनुं ॥ मो० ॥७॥ मो० ॥ हुँ राखुं बुं पूर, मन संदेह बे माहरे ॥मोग ॥ मो० ॥ कीधो कुमरी कंत, शुं पूजा ने ताहरे ॥ मो० ॥ ७॥ मो० ॥ वात सुणी तव राय, है है कुमरी शुं कीयो ॥ मो० ॥ मो॥ आप विटाल्यो देह, आप जाण्यो आपे कीयो ॥ मो० ॥ए॥मो॥ ए पुत्री नहीं मुज, कुलवंडण कीधो सही॥ मो०॥ मो० ॥ एहनुं मुह म दीउ, श्राज पड़ी जोवू नहीं ॥ मो० ॥ १० ॥ मो० ॥ तें पामी मुज माम, लोक माहे हांसो कीयो ॥ मो० ॥ मो० ॥ ए अंतेजर मांहि, में तुजने उत्तर दीयो ॥ मो० ॥ ११॥ मो॥ तुं मुज मुश् समान, जीवंती केथी करूं ॥ मो० ॥ मो० ॥ लोक हुवे अपवाद, लोक थकी पण हुं महें ॥ मो० ॥ १२ ॥ मो० ॥ नगरथी बाहिर जा, बेहडे घर मामी रहे ॥ मो० ॥ भो ॥ सांजली तातनी वात, कुमरी कंत जणी कहे ॥ मो० ॥ १३ ॥ सर्व गाथा ॥ ५५३ ॥
॥दोहा॥ ॥ सुण स्वामी मुज विनति, मानो नरवर वात ॥ नहींतर रीसाणो थको, निश्चे करशे घात ॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org