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( १०५ )
रोष नहीं कांही आज ॥ सो० ॥ १ ॥ बे पुत्र महारे जोमले ॥ सो० ॥ हंस अने ववराज ॥ सो० ॥ पमतो खान जाले जिस्या ॥ सो० ॥ सारे उत्तम काज ॥ सो० ॥ २ ॥ राते सुतो चिंतवे ॥ सो० ॥ नरवाहन ते राय ॥ सो० ॥ जो मुनिवर यावे इहां ॥ सो० ॥ सेतुं तेहना पाय ॥ सो० ॥ ३ ॥ एम चिंतवतां हवे || सो० ॥ एहने उग्यो सूर ॥ सो० ॥ पंचसया परिवारशुं ॥ सो० ॥ श्राव्या धर्मघोष सूरि ॥ सो० ॥ ४ ॥ नरवाहन राजा हवे ॥ सो० ॥ वंदण देते जाय ॥ सो० ॥ हंस वछ हंसावलि ॥ सो० ॥ वंदे मुनिना पाय || सो० ॥ ५ ॥ सूरि दीये तिहां देशना ॥ सो० ॥ जलधर सम ते वाण ॥ सो० ॥ सुख दुःख कर्मे पाइए ॥ सो० ॥ कर्म तणे परिणाम ॥ सो० ॥ ६ ॥ जब हुई पूरी देशना || सो० ॥ नरवाह्न तब राय ॥ सो० ॥ चरण नमी पूढे इस्युं ॥ सोना केहो पुण्यपसाय ॥ सो० ॥ ७ ॥ रमणी इद्धि लीला घणी ॥ सो० ॥ हंस अने ववराज ॥ सो० ॥ संशय जांगो सद्गुरु ॥ सो० ॥ श्राया पूढ काज ॥ सो ॥ ८ ॥ सद्गुरु कहे तुम सांजलो ॥ सो० ॥ पूरव जवनी वात ॥ सो० ॥ धनपुर नगरे तिहां वसे ॥ सो० ॥
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