SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८४ ) एहवी वाणी, सुणीने मन हरखित हुइ || मो० ॥ मो० ॥ दवे हुइ जीवन याश, मरण थकी सुसती थइ । मो० ॥ ५ ॥ मो० ॥ ज्यां लगे मले मुज कंत, शरीर सनान करूं नहीं ॥ मो० ॥ मो० ॥ लेशुं निरस श्राहार, चीर नवुं पड़ेरुं नहीं ॥ मो० ॥ ६ ॥ मो० ॥ तेहवे आयो शेठ, मन दृढ कर तुं कामिनी ॥ मो० ॥ मो० ॥ में नवि जाणी वात, जल बूको वच जामिनी ॥ मो० ॥ ७ ॥ मो० ॥ शेठ जणे सुप नारी, बडी रात्रे लख्यो इस्यो || मो० ॥ मो० ॥ ते किए टाल्यो जाय, कहो पशोष कीजे किस्यो । मो० ॥ (नावे सही वश्वराज, मूवाशुं दुःख की जे किस्यो ) । मो० ॥ ८ ॥ मो० ॥ ढुं हुं तहारो दास, जे जोइए ते पूरशुं ॥ मो० ॥ मो० ॥ ज्यां जीवे त्यां सीम, माथे कीधे राखशुं ॥ मो० ॥ ॥ मो० ॥ मोशुं धर तुं राग, मो सरखो सही नहीं मिले ॥ मो० ॥ मो० ॥ जिणे नाख्या मुज कंत, तिपशुं मन कहो किम मले ॥ मो० ॥ १० ॥ मो० ॥ तव तेथे जाणी वात, इण पापीए पति माहरो ॥ मो० ॥ मो० ॥ नाख्यो समुद्र मकार, दिवे कंत थाये माहरो ॥ मो० ॥ ११ ॥ मोनारी चिंते एम, शीयल किविध राखशुं ॥मो० ॥ मो० ॥ ताया जाशे बेह, मधुर वचन हुं जाखशुं ॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Educationa International
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy