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________________ ( ४४ ) लतां रे लाल, विषमा लंघे घाट रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ ११ ॥ विष विशामे चालता रे लाल, नूख तृषा सहे देह रे ॥ ली० ॥ शीत ताप सघलो सहे रे लाल, सुख दुःख नहीं को बेह रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १२ ॥ बेनाइ रमां फिरे रे लाल, मनुष्य मात्र नहीं कोय रे ॥ ली० ॥ किहां चढीया पाला पले रे लाल, कर्म तणां फल जोय रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १३ ॥ वनखंग तरुवर देखतां रे लाल, कायर बांडे प्राण रे ॥ ली० ॥ एक एक मांडे मिल्या रे लाल, जिहां नविदी से जाए रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १४ ॥ वाघ सिंह गुजे घणा रे लाल, मृगलां देतां फाल रे ॥ ली० ॥ सूर सावर रोजडां रे लाल, देखे नाग विकराल रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १५ ॥ एम पटवी लंघी घणी रे लाल, वातो करता जाय रे ॥ ली० ॥ हंस जणे वत्सराजने रे लाल, लागी तरष मुज जाय रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १६ ॥ नगरथी आपण नीकल्या रे लाल, थाक्या जेवा आज रे || बी० ॥ एड्वा कद्रीय न थाकता रेलाल, बोले तव वराज रे ॥ ली० ॥ रो० ॥ १७ ॥ इ मतलीये थें विशमो रे लाल, जोवुं पाणी गम रे ॥ ली० ॥ इमां आणी पावशुं रे लाल, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International तो वच www.jainelibrary.org
SR No.005393
Book TitleHansraj Vacchraj no Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages114
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size7 MB
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